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झाबुआ में केंद्र-राज्य के बीच सियासी घमासान, गढ़ गिराने-बचाने की कवायद में जुटी बीजेपी-कांग्रेस - ticket for jhabua election

झाबुआ उप-चुनाव के लिए कांग्रेस-बीजेपी तैयार हैं. कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया टिकट की रेस में आगे हैं तो बीजेपी भी अपना किला मजबूत करने में जुट गई है.

झाबुआ का गढ़ गिराने-बचाने की कवायद में जुटी बीजेपी-कांग्रेस
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Published : Jun 9, 2019, 6:12 PM IST

झाबुआ। लोकसभा चुनाव में झाबुआ विधायक गुमान सिंह डामोर के सांसद निर्वाचित होने के बाद विधायक के पद से इस्तीफा देने से ये सीट रिक्त हुई है. ऐसे में कांग्रेस यहां अपना जनाधार मजबूत करने में जुट गई है तो बीजेपी अपने किले को मजबूत करने में लगी है.

झाबुआ का गढ़ गिराने-बचाने की कवायद में जुटी बीजेपी-कांग्रेस

झाबुआ विधानसभा सीट पर नवंबर-दिसंबर में उप चुनाव के कयास लगाए जा रहे हैं. मालवा अंचल की ये सीट कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन कांग्रेस के आपसी मतभेदों के चलते बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हो गई. इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया को करारी शिकस्त मिली है. प्रेदश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद इस सीट से हारना कांतिलाल भूरिया को नागवार लगा क्योंकि केंद्र और राज्य के मंत्रिमंडल में रहने के बाद बिना पद के रहने से उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

यही वजह है कि कांतिलाल भूरिया की नजर झाबुआ विधानसभा उप चुनाव पर टिकी है और वो टिकट की दावेदारी में सबसे आगे हैं. वहीं, बात करें बीजेपी की तो जीएस डामोर ने केवल 200 दिनों के अंतराल में ही कांग्रेस के किले को ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया था. पहले झाबुआ विधानसभा फिर रतलाम संसदीय सीट पर कब्जा जमाकर डामोर यहां बीजेपी में पावर सेंटर के रूप में उभर चुके हैं. उप चुनाव में डामोर की पसंद के उमीदवार को टिकट मिलना तय माना जा रहा है.

झाबुआ विधानसभा उपचुनाव केंद्र व राज्य सरकारों के बीच होगा. कांग्रेस एक बार फिर कांतिलाल भूरिया और बीजेपी जीएस डामोर के सहारे इस सीट को जिताने का प्रयास करेगी.

झाबुआ। लोकसभा चुनाव में झाबुआ विधायक गुमान सिंह डामोर के सांसद निर्वाचित होने के बाद विधायक के पद से इस्तीफा देने से ये सीट रिक्त हुई है. ऐसे में कांग्रेस यहां अपना जनाधार मजबूत करने में जुट गई है तो बीजेपी अपने किले को मजबूत करने में लगी है.

झाबुआ का गढ़ गिराने-बचाने की कवायद में जुटी बीजेपी-कांग्रेस

झाबुआ विधानसभा सीट पर नवंबर-दिसंबर में उप चुनाव के कयास लगाए जा रहे हैं. मालवा अंचल की ये सीट कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन कांग्रेस के आपसी मतभेदों के चलते बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हो गई. इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया को करारी शिकस्त मिली है. प्रेदश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद इस सीट से हारना कांतिलाल भूरिया को नागवार लगा क्योंकि केंद्र और राज्य के मंत्रिमंडल में रहने के बाद बिना पद के रहने से उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

यही वजह है कि कांतिलाल भूरिया की नजर झाबुआ विधानसभा उप चुनाव पर टिकी है और वो टिकट की दावेदारी में सबसे आगे हैं. वहीं, बात करें बीजेपी की तो जीएस डामोर ने केवल 200 दिनों के अंतराल में ही कांग्रेस के किले को ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया था. पहले झाबुआ विधानसभा फिर रतलाम संसदीय सीट पर कब्जा जमाकर डामोर यहां बीजेपी में पावर सेंटर के रूप में उभर चुके हैं. उप चुनाव में डामोर की पसंद के उमीदवार को टिकट मिलना तय माना जा रहा है.

झाबुआ विधानसभा उपचुनाव केंद्र व राज्य सरकारों के बीच होगा. कांग्रेस एक बार फिर कांतिलाल भूरिया और बीजेपी जीएस डामोर के सहारे इस सीट को जिताने का प्रयास करेगी.

Intro:झाबुआ: देश और प्रदेश में चर्चा में रहने वाले झाबुआ में एक बार फिर से राजनीतिक द्वंद शुरू हो गया है । यहॉ कांग्रेश अपना खोया हुआ जनाधार पाने और भाजपा अपने किले को और मजबूत करने के लिए चुनावी संग्राम में उतरने की तैयारी कर रही है । हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में झाबुआ विधायक के सांसद निर्वाचित होने ओर उनके इस्तीफे के बाद यह सीट हुई। साल के आखरी में होने वाले झाबुआ विधानसभा सीट दोनों ही दलों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई है । इन चुनावों भूरिया के लिए डामोर किसी दुश्मन से कम नहीं ,क्योंकि डामोर ने कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ विक्रांत का राजनीतिक जीवन शुरू होने से पहले ही ढहा दिया वहीं खुद भूरिया के सिहासन को हिला कर वे खुद उस पर काबिज हो गए ।


Body:झाबुआ में होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस जहां प्रदेश में सरकार को मजबूत करने के लिए और झाबुआ में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने के लिए मैदान में उतरेगी तो भाजपा अपने इस गढ़ को और अधिक मजबूत बनाने के लिए मैदान में उतरेगी। फिलहाल प्रदेश की 230 संख्या वाली विधानसभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस के 114 विधायक हैं । यदि कांग्रेस इस उप चुनाव को जीतती है तो संख्या बल बढ़कर 115 हो जाएगा जो पूर्ण बहुमत के आंकड़े से केवल एक अंक कम रहेगा। इधर भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है विधानसभा में भाजपा के 108 विधायकों में से झाबुआ से जी एस डामोर के इस्तीफे के बाद यह संख्या घटकर 107 रह गई है यदि भाजपा यहां से जीती दर्ज भी करती है तो उसे कोई बढ़त नहीं मिलेगी यानी संख्या बल वहीं रहेगा।


Conclusion:प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के बावजूद झाबुआ से कांतिलाल भूरिया का सफाया भूरिया को काफी खल रहा है ।भूरिया की नजर अब झाबुआ उपचुनाव पर टिकी हुई है। केंद्र और राज्य मंत्रिमंडल में रहने के बाद बिना पद के कांतिलाल भूरिया की राजनीति में उतनी धाक नहीं रह जाएगी जितनी बनी हुई थी, लिहाजा भूरिया झाबुआ विधानसभा का उपचुनाव चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं। भाजपा के जीएस डामोर ने केवल 200 दिनों के अंतराल में कांग्रेस के किले को ताश के पत्तों की तरह दिया । पहले झाबुआ विधानसभा फिर रतलाम संसदीय सीट पर कब्जा जमाकर डामोर पार्टी में पावर सेंटर के रूप में उभर चुके हैं। उप चुनाव में डामोर की पसंद के उमीदवार को टिकट मिलना तय माना जा रहा है ऐसे में झाबुआ विधानसभा का उपचुनाव केंद्र व राज्य सरकारों के बीच होगा । काँग्रेस एक बार फिर कांतिलाल भूरिया और भाजपा जीएस डामोर के सहारे इस सीट को जीतने का प्रयास करेगी ।
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