जबलपुर। जिले में जब से खाद्य सुरक्षा अधिनियम (food security act) लागू हुआ है, तब से खाने-पीने की सभी चीजों पर बड़ी कड़ाई से निगरानी रखी जा रही है, जो भी सामान खाद्य सुरक्षा अधिनियम के नियमों का पालन नहीं करता उसके खिलाफ कार्रवाई कर दी जाती है.
हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
जब इस मामले में शराब ठेकेदारों पर कड़ाई बरती गई और उनसे कहा गया कि शराब के लिए उन्हें फूड लाइसेंस (Food License) लेना होगा, तो ठेकेदार गुरुवार को कोर्ट पहुंच गए. कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया है. हाईकोर्ट (MP High Court) ने मामले में केन्द्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि अगर वाकई शराब खाद्य सामग्री है, तो मध्यप्रदेश में इसकी बिक्री के लिए फूड लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन का पालन क्यों नहीं किया जा रहा.
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इधर शराब ठेकेदारों ने भी मामले में हाईकोर्ट की शरण ली थी. शराब ठेकेदारों ने भी एक याचिका दायर करते हुए खाद्य अधिनियम की उस धारा को अवैध घोषित करने की मांग की है, जिसमें शराब को खाद्य सामग्री की सूची में शामिल किया गया है. इस मामले पर भी हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार (Central government) से जवाब मांगा है. हाईकोर्ट ने इस मामले में केन्द्र सरकार को जवाब देने के लिए छह हफ्तों का वक्त दिया है, जिसके बाद मामले पर अगली सुनवाई की जाएगी. अब इस मामले में राज्य सरकार को अपना जवाब पेश करना होगा.
क्या होता है फूड लाइसेंस
बता दें कि खाद्य पदार्थ तैयार करने और बेचने वालों के लिए फूड सेफ्टी का लाइसेंस बनवाना अनिवार्य होता है. इसमें सामान्य ठेली लगाने वालों से लेकर बड़े होटल और उद्योग तक शामिल होते हैं. खाद्य सुरक्षा अभिकरण के लाइसेंस के बिना खाद्य पदार्थों की बिक्री नहीं की जा सकती है. फूड लाइसेंस को एफएसएसएआई जारी करता है. शराब के फूड लाइसेंस को लेकर एक बड़ा विवाद बना हुआ है. एफएसएसएआई के नियमों के मुताबिक खाद्य और पेय पदार्थों का फूड लाइसेंस लेना आवश्यक है. क्योंकि शराब एक पेय पदार्थ है, ग्राही उसे कंज्यूम करता है, तो उसका फूड लाइसेंस होना चाहिए.