जबलपुर। प्रदेश में फायर एंड इमरजेंसी सर्विस एक्ट अब तक लागू न किए जाने की याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. मामले में चीफ जस्टिस मोह.रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने सुनवाई की. इस दौरान उन्होंने सरकार से पूछा कि बहुमंजिला इमारतों, अस्पताल और हॉस्टलों में अग्नि दुर्घटना रोकने के क्या उपाय किए जा रहे हैं और उनके क्या मापदंड हैं. युगलपीठ ने मामले में नगरीय प्रशासन विकास विभाग के सचिव को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं.
- मप्र में अब तक नहीं बना फायर एंड इमरजेंसी सर्विस
यह जनहित याचिका रामपुर निवासी समाजसेवी राम उर्फ नीलू कुशवाहा की ओर से दायर की गई है. इसमें कहा गया है कि मध्यप्रदेश में फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेस एक्ट लागू किए जाने की राहत चाही गई है. आवेदक का कहना है के देश के 24 राज्यों में फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेस एक्ट बना हुआ है, लेकिन मध्यप्रदेश में अब तक नहीं बना है. इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी यह एक्ट लागू है. याचिका में कहा गया है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार प्रदेश में अग्नि हादसों से होने वाली मौतों की संख्या अन्य प्रदेशों की संख्या से काफी अधिक है.
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पिछले 10 सालों की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई
इस संबंध में NCRB की पिछले 10 सालों की रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश की गई है. इसी के साथ कहा गया है कि भारत सरकार ने 16 सितंबर 2019 को देश के सभी प्रमुख सचिवों को मॉडल बिल फायर एंड इमरजेंसी सर्विस एक्ट लागू करने के लिए कहा था. इसके बावजूद भी मध्य प्रदेश में इसका पालन नहीं हुआ है. आवेदक की ओर से अधिवक्ता मनोज कुशवाहा ने पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि उक्त बिल लागू न होने से अग्नि हादसे रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं. मामले में आवेदक की ओर से कहा गया कि जहां पंडाल लगाए जाते है, स्कूल, शासकीय और अर्द्धशासकीय कार्यालयों में अग्नि सुरक्षा संबंधी उपाये नहीं किए जा रहे हैं. मामले को गंभीरता से लेते हुए न्यायालय ने नोटिस जारी कर अनावेदक को जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं.