जबलपुर। शहर के डूंड़ी गांव का पुल ढाई साल से टूटा हुआ पड़ा है. आलम ये है कि इस पुल का नाम ही टूटा पुल पड़ गया है. पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा एक दो नहीं बल्कि 15 गांव के लोग भुगत रहे हैं.
कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा
जबलपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर पाटन तहसील में एक सड़क पाटन से डूंड़ी गांव के लिए जाती है. इस सड़क से 15 गांव के लोगों का आना जाना है. आगे यह सड़क भोपाल जाने वाले हाईवे से मिल जाती है, इस पर लगभग 60 मीटर लंबा एक पुल है. यह बीते ढाई साल से टूटा हुआ पड़ा है. रखरखाव के अभाव में इसका एक मोटा पिलर टूट गया और एक छोटे से पत्थर पर अटका हुआ है. अगर यह पत्थर नीचे खिसक गया तो कोई भी बड़ी अनहोनी हो सकती है.
15 गांव को जोड़ने वाला एक ही पुल
15 गांव के लिए आने-जाने का यही एकमात्र रास्ता है. इसलिए लोग इसी टूटे हुए पुल के ऊपर से आते जाते हैं, अगर किसी दिन नीचे का पत्थर खिसक गया तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है. टूटे हुए पुल को ढाई साल से ज्यादा का समय हो गया है. लेकिन अभी तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने इसकी सुध नहीं ली है.
लापरवाही का आलम
यह पुल जबलपुर के पीडब्ल्यूडी विभाग के पास था, लेकिन अब पीडब्ल्यूडी विभाग के दो अलग-अलग ऑफिस है, यह पीडब्ल्यूडी संभाग क्रमांक 2 में आता है. इस विभाग के एसडीओ का ऑफिस पुल से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर है. इसके बाद भी यह विभाग ना तो पुल की मरम्मत करवा पाया और ना ही पुल को बनाने में इसमें रुचि ली और अब पीडब्ल्यूडी का संभाग क्रमांक 2 जबलपुर का फ्लाईओवर बनवाने जा रहा है, जिसकी लागत साढ़े तीन सौ करोड़ रूपये है और जो 7 किलोमीटर लंबा है. हैरान कर देने वाली बात ये है कि जो विभाग अपने अधीन एक 60 मीटर का पुल नहीं बनवा पाया वह 7 किलोमीटर लंबा फ्लाईओवर कितनी गंभीरता से बनवा पाएगा.
पीडब्ल्यूडी विभाग ने झाड़ा पल्ला
पीडब्ल्यूडी संभाग क्रमांक 2 ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए डूडी का यह पुल अब पीडब्ल्यूडी विभाग के पुल विभाग को दे दिया है. इसके अधिकारी ने आनन-फानन में पुल की वित्तीय स्वीकृति की और लगभग तीन करोड़ 75 लाख रूपए की लागत से जल्द ही इस पुल का टेंडर किया जाएगा, उनके अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही यह समस्या खत्म हो जाएगी. लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग के लापरवाह अधिकारियों और कर्मचारियों की वजह से ग्रामीणों को लगभग ढाई साल से समस्या झेलनी पड़ रही है. अभी ये कहना भी मुश्किल है कि ये ग्रामीणों की यह समस्या कब तक खत्म हो जाएगी.