जबलपुर। आत्मविश्वास और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल शख्स को फतह पाने से रोक नहीं सकती. इसकी मिसाल पेश की है जबलपुर के छोटे से गांव की विक्रम अवार्ड से सम्मानित दिव्यांग जूडो खिलाड़ी जानकी ने. जानकी ने अपनी प्रतिभा का परचम देश-विदेश में लहराकर भारत को अलग पहचान दी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरों को लोहा मनवाने वाली दिव्यांग जूडो खिलाड़ी कैसे हालातों में जीवनयापन करती हैं, ये कोई नहीं जानता. सरकार की अनदेखी के चलते जानकी आर्थिक संकटों से जूझ रही हैं, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े अवॉर्डों से सम्मानित होने वाली जानकी की एक अलग ही दुनिया है.
कभी नहीं मिली कोई मदद
विक्रम अवार्डी जानकी ने प्रदेश सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. जानकी ने बताया कि अन्य प्रदेशों में जब कोई खिलाड़ी प्रदेश का और देश का नाम रोशन करता है तो उसे काफी तरह की सुविधाएं दी जाती हैं. अगर खिलाड़ी का परिवार आर्थिक तंगी से गुजरता है तो उसे आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराई जाती है लेकिन उसने अपने सामान्य जीवन से लेकर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने तक के सफर में प्रदेश सरकार से मिलने वाली मदद को खुद से दूर ही पाया है.
शासन-प्रशासन के काटे बहुत चक्कर
जानकी ने बताया कि साल 2019 तुर्की में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता हो या बीते सालों में आयोजित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता, सब में शामिल होने के लिए जानकी ने सिहोरा से जबलपुर कलेक्ट्रेट कार्यालय तक कई बार चक्कर लगाए हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. ऐसे में फिर चंदा इकट्ठा करके वह देश का नाम रोशन करने गई हैं.
नहीं है पानी, टूटा है मकान
हाल ही में जानकी को विक्रम अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है लेकिन उसके गांव में पीने के पानी के लिए कई किलोमीटर दूर का सफर तय करना पड़ता है. देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रोशन करने के बावजूद उसे अपने टूटे और जर्जर घर में ही अपना जीवनयापन करना पड़ रहा है. जानकी ने बताय कि वह एक गरीब परिवार से आती है, इसलिए कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आता. सरकार ने उन्हें विक्रम अवार्ड से सम्मानित तो किया है लेकिन उसके परिवार और उसकी आर्थिक तंगी पर कभी ध्यान नहीं दिया गया.
सरकार से लगाई मदद की गुहार
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग जूडो खिलाड़ी जानकी ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है. जानकी की मांग है कि सरकार उन्हें हर महीने ज्यादा नहीं फिर भी चार से पांच हजार रुपए की मदद करे या फिर एक नौकरी मुहैया कराए. जानकी का यह भी कहना है कि वह पढ़ना चाहती है लेकिन परिवार की आर्थिक तंगी के चलते वह सिर्फ पांचवी तक ही पढ़ पाई. ऐसे में अब वह पढ़ना चाहती है, जिसके लिए प्रदेश सरकार उसकी मदद करे.
किए कई पदक हासिल
महज पांच साल के खिलाड़ी करियर में ही जानकी ने कई बडे़-बड़े खिताब अपने नाम किए हैं, आइए जानें उन खिताबों के बारे में-
- 2016 से जूडो को सीखा और शुरुआत हुई पदकों को जीतने के सिलसिले की.
- साल 2016 लखनऊ में आयोजित पैरा जूडो नेशनल प्रतियोगिता में सिल्वर पदक.
- 2017 में गुड़गांव में आयोजित पैरा जूडो नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड पदक.
- 2018 उज्बेकिस्तान में आयोजित पैरा जूडो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक में कांस्य पदक.
- 2019 तुर्की में आयोजित पैरा जूडो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में गोल्ड पदक.
- स्टेट स्तर की कई प्रतियोगिताओं में 12 से ज्यादा पदक.
जानकी की मां को सरकार से मदद की आस
जानकी की मां ने बताया कि उनकी बेटी ने प्रदेश और देश के लिए कई पदक जीते हैं. देश का परचम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लहराया है, लेकिन उसके परिवार और उसकी आर्थिक तंगी को दूर करने कभी किसी ने जरा भी कोशिश नहीं की, जिस कारण वे अंदर से भी काफी टूट चुकी हैं. उनका कहना है कि पदक जीतने और विक्रम अवार्ड दिए जाने के दौरान लोगों ने कार्यक्रमों में बुलाकर सम्मानित तो किया लेकिन आर्थिक तंगी के दंश को कोई दूर नहीं करता.
दूसरे खिलाड़ी आए आगे
जानकी और उसके परिवार की बदहाली के समर्थन में हाल ही आर्चरी में विक्रम अवार्ड से सम्मानित मुस्कान किरार भी उतर आई है. उन्होंने एक खिलाड़ी की पीड़ा को भी जाहिर किया है. मुस्कान का कहना है कि जब एक खिलाड़ी पदक जीतकर आता है तो रैली निकालकर कार्यक्रमों तक में सम्मानित किया जाता है लेकिन उसके बाद जानकी जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी लोगों की सोच से गुम हो जाते हैं. ऐसे में एक खिलाड़ी का मनोबल काफी कमजोर होता है. मुस्कान ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि जानकी की आर्थिक तंगी को दूर करने के साथ उसे एक अच्छा आशियाना उपलब्ध कराया जाए ताकि उसे बदहाली की जिंदगी में गुजर बसर ना करना पड़े.
जल्द मिलेगी मदद
जानकी की हालत से रूबरू होने के बाद जबलपुर के संभागीय कमिश्नर महेश चंद्र चौधरी ने उसे आर्थिक मदद दिलाने के साथ ही आशियाने जैसी तमाम व्यवस्थाओं को उपलब्ध कराने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजने की बात कही है. बता दें, जब जानकी तुर्की जाने वाली थी तब संभागीय कमिश्नर जबलपुर में बतौर तत्कालीन कलेक्टर के रूप में पदस्थ थे. उस दौरान राज्य सरकार से समय पर आर्थिक मदद न मिल पाने के कारण महेश चंद्र चौधरी ने अपने स्तर पर साथी अधिकारियों और कर्मचारियों के जरिए जानकी के लिए करीब 75 हजार रुपए का फंड इकट्ठा कराया था, जिसके जरिए वह तुर्की खेलने गई थी.
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सांसद ने भी किया मदद का वादा
जबलपुर सांसद राकेश सिंह ने भी जानकी की प्रतिभा और प्रदेश के साथ देश-विदेश में नाम रोशन करने के बाद भी बदहाली और आर्थिक तंगी के दौर से गुजरने के हालात को बेहद गंभीर माना है. उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बात कर हर संभव मदद जल्द से जल्द उपलब्ध कराने की बात कही है.
जानकी देख नहीं सकतीं लेकिन उनका जूडो के लिए जुनून और देश को नई पहचान दिलाना एक अलग मुकाम है. जानकी के दांव के आगे दूसरे देशों के खिलाड़ी नतमस्तक हो चुके हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते जानकी हर पल दूसरों के सामने झुकने को मजबूर है.