जबलपुर। आदिवासी समुदाय में पाई जाने वाली सिकल सेल एनीमिया की बीमारी को हराने के लिए अब मेडिकल टीमों के साथ-साथ एकेडमिक संस्थाएं भी काम कर रही हैं. प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के आह्वान के बाद प्रदेश के विश्वविद्यालय सिकल सेल एनीमिया को हराने के अभियान में जुट गए हैं. प्रदेश के 20 जिलों के 42 आदिवासी गांवों में पैर पसार चुकी सिकल सेल एनीमिया बीमारी को हराने में तीन विश्वविद्यालय लगे हैं. जबलपुर के जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय ने 31 गांव, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने 5 और वेटरनरी विश्वविद्यालय ने 8 गांवों को गोद लिया है. (sickle cell disease in jabalpur)
घातक बीमारी है सिकल सेल एनीमिया
पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार को अपनी जकड़ में लेने वाली घातक बीमारी सिकल सेल एनीमिया को हराने में अब विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभा रहे हैं. प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल के आह्वान के बाद प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य गांवों में सिकल सेल एनीमिया को हराने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. 20 जिलों के 42 आदिवासी गांवों के आदिवासियों को सिकल सेल एनीमिया की बीमारी से बचाने के लिए उच्च शिक्षा के लिए समर्पित विश्वविद्यालयों ने कमर कस ली है. (mp university adopted village for sickle cell treatment)
आदिवासियों का लिया जा रहा सैंपल
जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने 31 गांव, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने 5 और वेटरनरी विश्वविद्यालय ने 8 गांवों को गोद लिया है. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में विश्वविद्यालयों के द्वारा जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही उन्हें उचित इलाज भी मुहैया कराया जा रहा है. ग्रामीणों की सैंपलिंग के साथ ही उनके इलाज की व्यवस्था की जा रही है. (sickle cell sample in jabalpur)
टीम में एनसीसी और एनएसएस के विद्यार्थी भी शामिल
जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की ही बात की जाए तो विश्वविद्यालय ने मंडला जिले के 5 गांव को गोद लिया है, जिनमें करवानी, औरैया, समनापुर, जमुनिया और धोबी गांव शामिल हैं. यहां अब तक विशेष शिविर लगाकर 75 लोगों के नमूने लिए जा चुके हैं. उन्हें उचित दवाइयां भी उपलब्ध कराई गई हैं. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कपिल देव मिश्रा के मुताबिक, सिकल सेल एनीमिया बीमारी के उन्मूलन के संकल्प के साथ कई टीमों का गठन किया गया है. इनमें एनसीसी और एनएसएस के विद्यार्थी भी शामिल हैं. (symptoms of sickle cell)
वंशानुगत बीमारी है सिकल सेल
कुलपति प्रोफेसर कपिल देव मिश्रा ने बताया कि सिकल सेल एनीमिया की बीमारी से पीड़ित आदिवासियों को उचित इलाज और दवाइयां मुहैया कराने के साथ-साथ उनके परिवारों को इस बीमारी से जागरूक भी किया जा रहा है. ताकि यह वंशानुगत बीमारी के प्रति आदिवासियों में जागरूकता फैले और वे अपने रहन-सहन और खान-पान को सुधार कर इस बीमारी से बच सकें. (treatment of sickle cell)
सिकलसेल उपचार शिविर का हुआ शुभारंभ, हजारों मरीजों को मिलेगा उपचार
दिलचस्प बात तो यह कि सिकल सेल एनीमिया की बीमारी वंशानुगत है. परिवार में 1 सदस्य के इसकी जकड़ में आने के बाद दूसरे सदस्य भी धीरे-धीरे इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं, लेकिन जब तक परिजनों को इसकी खबर लगती है तब तक काफी देर हो चुकी होती है. लिहाजा जागरुकता के जरिये आदिवासी परिवारों को सिकल सेल एनीमिया की बीमारी से दूर रखा जा सकता है.
छिंदवाड़ा में मरीजों को नहीं मिल रहीं दवाएं
एक ओर जहां विश्वविद्यालय सामने आकर सिकल सेल के लिए काम कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर छिंदवाड़ा जिले में सिकलसेल और थैलेसीमिया से पीड़ित जिले के लगभग 250 मरीजों को दवाई नहीं मिल रही है. जिला अस्पताल के दवा काउंटर से मरीजों को लौटाया जा रहा है. समय पर दवा नहीं मिलने से सिकलसेल मरीजों को शारीरिक दर्द से जूझना पड़ रहा है. दवाओं की किल्लत से जूझ रहे मरीजों ने सिविल सर्जन से दवाओं की उपलब्धता के लिए गुहार लगाई है. इसके बाद भी मरीजों को समय पर दवाइयां नहीं मिल रहीं. इस बीमारी से जूझ रही एक पेशेंट ने बताया कि ब्लड पतला करने के लिए बेहद जरूरी दवा हाई डॉग्स यूरिया फोलिक एसिड है.