जबलपुर। सर्दियों में लोग गुड़ का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में और बाजार के प्रभाव में आम आदमी मिलावट वाला रासायनिक गुण का इस्तेमाल कर रहा है. इसलिए हम आपको इस खबर के माध्यम से गुड़ बनाने वाली उन इकाइयों से परिचित करवा रहे हैं. जहां परंपरागत तरीके से शुद्ध गुड़ बनाया जाता है. सर्दियों में सभी की इच्छा होती है कि वह गुड़ का इस्तेमाल करें. कुछ लोग गुण को चाय में डालकर इस्तेमाल करते हैं. वहीं कुछ लोग गुड़ के लड्डू बनाकर खाते हैं. आयुर्वेद में भी गुड़ का विशेष महत्व बताया गया है. आजकल डॉक्टर भी शक्कर की जगह गुड़ खाने के बारे में कहते हैं.
कलर देखकर ना खरीदें गुड़: गुड़ के महत्व और गुड़ के स्वाद की वजह से गुड़ का चलन बढ़ गया है, लेकिन बाजार में जो गुड़ बिकने के लिए आता है. उसमें सामान्य तौर पर आम आदमी गुड़ के कलर को देखकर गुड़ खरीदता है. कलर के मामले में ज्यादातर लोगों की सोच यह है कि जो माल जितना साफ हो चमकदार है, इस पर जाकर लोगों की नजर टिकती है. गुड़ के मामले में यह सोच गलत है.
करेली के आसपास परंपरागत गुड़ निर्माण: भारत में कई जगहों पर गुड़ बनाया जाता है. हमने मध्य प्रदेश में सबसे अच्छे किस्म का गुड़ बनाने वाले जिले नरसिंहपुर के करेली कस्बे के गांव का दौरा किया. यहां बटेसरा नामक एक गांव में शंकर लाल पटेल के खेत पर पहुंचे. यहां शंकर लाल पटेल अपने परिवार के साथ रहते हैं. इनका पूरा परिवार मिलकर एक छोटी सी गन्ना उत्पादक इकाई चलाता है. स्थानीय भाषा में इसे कुल्हौर कहा जाता है. इसमें एक चरखी है, जिससे गन्ने का रस निकाला जाता है.
इसके बाद रस को छानकर लगभग 6 फीट व्यास की गोलाकार कढ़ाई में इस रस को 3 घंटे तक उबाला जाता है. इस बीच में रस में आने वाली गंदगी को निकाल कर अलग किया जाता है. 3 घंटे बाद इसे ठंडा करके छोटे बड़े पात्रों में भर दिया जाता है.
गुड़ की कुल्हौर: शंकर लाल पटेल ने बताया कि वे सदियों से इसी तरीके से गुड़ बनाते आ रहे हैं. यह विधि उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी थी. इसमें जो गुण बनाया जाता है. उसमें किसी भी किस्म का कोई केमिकल नहीं डाला जाता. इसकी वजह से गुड़ का कलर कॉफी के कलर का बनता है, लेकिन इसमें बहुत अच्छा स्वाद होता है. साथ ही इसकी गुणवत्ता ऐसी होती है कि इसे कई सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है. शंकर लाल पटेल का पूरा माल उनके इस छोटे से घर से ही बिक जाता है. खाने वाले उसे ले जाते हैं. फिलहाल शंकर लाल पटेल अपने शुद्ध गुड़ की कीमत ₹40 प्रति किलो ले रहे हैं.
शिव शंकर रजक का प्राकृतिक गुड़: इसके बाद हम एक दूसरे किसान शिव शंकर रजक के यहां पहुंचे. शिव शंकर रजक ने गुड़ के मामले में कुछ थोड़ा सा नया प्रयोग किया है. शिव शंकर रजक का गुड़ उनके ही घर से लगभग 90 रुपया प्रति किलो बिक रहा है. इसकी वजह जानने के लिए शिव शंकर ने सबसे पहले हमें अपना गन्ने का खेत दिखाया. शिव शंकर रजक का कहना है कि वह अपने खेतों में बीते कई सालों से किसी भी रासायनिक खाद या पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. उनका पूरा गन्ना उत्पादन पूरी तरह से ऑर्गेनिक है.
वहीं वे गुड़ निर्माण के दौरान भी परंपरागत पद्धति का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि ऑर्गेनिक की वजह से उनका उत्पादन कुछ काम जरूर आता है, लेकिन स्वास्थ्य और स्वाद के शौकीन लोग उनका गुड़ बाजार से 2 गुने ज्यादा दाम में खरीदने को तैयार रहते हैं. इसलिए उन्हें नुकसान नहीं होता बल्कि वह अपने काम से लोगों के स्वास्थ्य को सुरक्षित बना रहे हैं.
सफेद दिखने वाले गुड़ में डाला जाता है केमिकल: करेली में भी बड़े पैमाने पर प्रदेश के बाहर से गुड़ बनाने वाले व्यापारी पहुंचते हैं, लेकिन इन लोगों की पद्धति से बना हुआ ज्यादा सफेद और चमकदार होता है. इसमें हाइड्रो नाम का एक पाउडर डाला जाता है. जिसका इस्तेमाल कपड़ा इंडस्ट्री में ब्लीचिंग के लिए किया जाता है, लेकिन हाइड्रो के डालने से गुड़ में चमक आ जाती है. ब्लीचिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला यह केमिकल शरीर को कितना नुकसान पहुंचता होगा. इसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है.
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इसलिए यदि इस ठंड में आप गुड़ का इस्तेमाल करें तो उसके कलर पर ध्यान मत दीजिएगा, बल्कि डार्क कलर का दानेदार गुड़ ही खरीदिएगा. यह गुड़ शुद्ध है. इसमें किसी किस्म के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया गया है. इससे आपका स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा.