जबलपुर। लॉकडाउन के दौरान की स्कूल फीस का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. पहले यह विवाद स्कूल संचालकों और अभिभावकों के बीच शुरू हुआ और स्कूल संचालकों ने पेरेंट्स को फीस के नोटिस भेजना शुरू किए. पेरेंट्स ने अपने स्तर पर फीस देने से मना किया, तो मामला सरकार तक पहुंचा. सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए केवल ट्यूशन फीस देने की बात कही. सरकार के इस फैसले के खिलाफ स्कूल संचालक इंदौर हाई कोर्ट पहुंच गए. इंदौर हाईकोर्ट ने स्कूल संचालकों के पक्ष में फैसला देते हुए पूरी फीस देने का फैसला सुना दिया, एक बार फिर लोग पशोपेश में पड़ गए. इसी बीच में भोपाल के एक शख्स ने निजी स्कूल की फीस के विरोध में ही जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है.
जबलपुर की एक समाज सेवी संस्था ने इन दोनों ही याचिकाओं में अपना आवेदन पेश किया है. जिसके तहत समाज सेवी संस्था का कहना है इंदौर हाईकोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने जो फैसले दिए हैं वह आपस में विरोधाभासी हैं. इसलिए इस पूरे मामले को हाईकोर्ट की दो जजों की पीठ सुनवाई करे. वहीं इस मामले में अभी सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है, इसलिए उसका इंतजार करना चाहिए.
समाज सेवी संस्था का कहना है कि राज्य सरकार के महाधिवक्ता ने हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के निजी स्कूलों की फीस के कानून का ब्यौरा पेश नहीं किया गया, जिसके तहत निजी स्कूल केवल 10% फीस ही वसूल सकते हैं, इसलिए इस मामले को इन आवेदनों के अलावा एक जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में भी लगा दिया गया है.
लॉकडाउन में लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. ऐसे हालात में स्कूलों को अपना स्वार्थी रवैया बदलना चाहिए, क्योंकि शिक्षा का कानून भी स्कूलों को कमाई का जरिया बनाने की अनुमति नहीं देता और यह सभी समझ रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान कोई खर्च नहीं हुआ तो फिर स्कूल किस बात की फीस ले रहे हैं.