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गोंडवाना की ऐसी वीरांगना जिन्होंने गुलामी की जगह मरना किया पसंद... जानें कुशल योद्धा व अर्थशास्त्री रानी दुर्गावती के शौर्य की कहानी - अर्थशास्त्री रानी दुर्गावती के शौर्य की कहानी

एमपी की सियासत में इन दिनों वीरांगना रानी दुर्गावती का जिक्र खूब हो रहा है. पिछले दिनों ही सीएम शिवराज ने जबलपुर में रानी दुर्गावती का स्मारक बनाने का ऐलान किया था. वहीं अब आज 5 अक्टूबर को भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होने पीएम मोदी जबलपुर आ रहे हैं. ईटीवी भारत के संवाददाता विश्वजीत सिंह की इस रिपोर्ट में जानते हैं रानी दुर्गावती की वीरता की कहानी...

know story of rani Durgavati Shaurya
शौर्य की मिसाल रानी दुर्गावती
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 3, 2023, 8:57 PM IST

Updated : Oct 5, 2023, 8:52 AM IST

इतिहासकार की जुबानी वीरांगना दुर्गावती की कहानी

जबलपुर। एमपी की संस्कारधानी जबलपुर में रानी दुर्गावती की याद में एक स्मारक बनाया जा रहा है. जबलपुर के मदन महल पर उनकी 51 फीट ऊंची मूर्ति लगाई जा रही है. खास बात यह है कि इस भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबलपुर आ रहे हैं. पीएम मोदी आज यानि 5 अक्टूबर को जबलपुर दौरे पर आ रहे हैं. भारत की कुछ महान वीरांगनाओं में से रानी दुर्गावती भी एक थी. दूरदर्शी, कुशल योद्धा, बेहद सुंदर, अर्थशास्त्री और स्वाभिमान से जीने वाली रानी दुर्गावती की कहानी में आखिर ऐसा क्या है की 450 साल बाद भी देश उनकी वीरता को याद कर रहा है.

गोंडवाना साम्राज्य: जबलपुर के इतिहासकार डॉक्टर आनंद राणा गोंडवाना साम्राज्य के अच्छे जानकार हैं. उनका दावा है कि दुनिया की कुछ बेहतरीन रानियों में से रानी दुर्गावती एक थी. जो बेहद सुंदर थीं और एक कुशल योद्धा भी थीं. उन्होंने अपने 17 साल के शासन के दौरान यह भी साबित कर दिया था कि वह एक अच्छी अर्थशास्त्री थीं. उनकी सोच विकास वाली थी. उस दौरान पूरे गोंडवाना साम्राज्य में लोग सुख और शांति के साथ रह रहे थे.

रानी दुर्गावती का वॉटर मैनेजमेंट: जबलपुर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है. जिस जगह पर जबलपुर बना हुआ है, वहां कई छोटी नदियां थी. जो आज नालों के रूप में पहचानी जाती है. उन्ही में से मोती नाम की एक नदी जबलपुर के बीचों बीच से बहती थी. इसी में कुछ दूसरी सहायक छोटी नदियां थी. जिनके आसपास रानी दुर्गावती ने तालाब खुदवाए. इन तालाबों में सबसे ऊंचाई पर बना हुआ तालाब ठाकुर लाल है. जो जबलपुर में शक्ति भवन के बाजू में बना हुआ है. ठाकुर लाल के नीचे संग्राम सागर है. संग्राम सागर के ठीक नीचे सुपा ताल गंगासागर देवताल है. ऐसे कई तालाब हैं, जो इस तकनीक से बनाए गए थे कि यदि एक तालाब का पानी सूख भी जाता है, तो नीचे के तालाबों में पानी बचा रहे.

Rani Durgavati Memorial
रानी दुर्गावती के युद्ध की तस्वीर

शहर के अंदर करीब 52 ताल-तलैया मौजूद: वहीं शहर के भीतर भी अलग-अलग स्थान पर लगभग 52 ताल तलैया थे. इनमें से कुछ के तो अब केवल नाम ही शेष रह गए हैं. भान तलैया, माढो ताल, अधारताल तिलक भूमि की तलैया, फूटा ताल यह वे कुछ नाम हैं. जहां अब कॉलोनी हैं. तालाबों को लोगों ने पूरी तरह से कंक्रीट से पाट दिया है. वहीं रानीताल बालसागर, गंगासागर, गुलौआ तालाब जैसे कुछ तालाब हैं, जिन्हें सौंदर्य के नाम पर आधा कर दिया गया. हालांकि आज भी इनमें साल भर पानी रहता है. इन तालाबों के अलावा जबलपुर शहर में कई बावड़ियां होती थी. जो आम लोगों के निस्तार में काम आती थी.

रानी दुर्गावती के समय के पूजा स्थल: रानी दुर्गावती के समय जबलपुर आज से भी बड़ा शहर रहा होगा, क्योंकि उस समय ज्यादातर घर मिट्टी के थे. उनके अवशेष तो अब नहीं बचे, लेकिन पूजा स्थल आज भी जिंदा है. इनमें बजाना मठ, बुद्धि खीर में बड़ी खेरमाई, चंडाल भाटा, अघोरी बाबा का मंदिर यह सभी पूजा स्थल आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र है. यह जबलपुर के एक बड़े भूभाग में फैले हुए हैं. किसी जमाने में इस पूरे इलाके में लोग रहा करते थे, क्योंकि इन सभी स्थानों के आसपास कई पत्थर की बावड़ियां भी पाई गई है.

रानी दुर्गावती का टैक्स सिस्टम: डॉ आनंद राणा का कहना है कि उन्होंने इतिहास की कई पुस्तकों में इस बात का जिक्र पढ़ा था. जिसमें रानी दुर्गावती के टैक्स सिस्टम को दुनिया के कुछ बेहतरीन टैक्स सिस्टम में से एक माना गया. गोंडवाना साम्राज्य के अधीन लगभग 70000 गांव थे. इनमें लाखों एकड़ जमीन पर खेती होती थी और खेती की उपज वाला एक तिहाई हिस्सा राज्य को दिया जाता था. इसलिए रानी दुर्गावती के खजाने में बहुत पैसा था. जिसका उपयोग वे इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था में करती थीं. इसकी वजह से गोंडवाना साम्राज्य के कई किले बने. जिनमें दमोह में संग्रामपुर का किला, जबलपुर में मदन महल किला, मंडला में रामगढ़ का किला, नरसिंहपुर में दिलहरी का किला ऐसे कई किले गोंडवाना साम्राज्य के दौरान बनाए गए. इन सभी किलों को बनाने के पीछे एक बड़ा अर्थशास्त्र काम करता था.

Rani Durgavati Memorial
योद्धा की वेशभूषा में रानी दुर्गावती

आसिफ खान की लूट का जिक्र: ऐसा बताया जाता है कि जब आसिफ खान ने रानी दुर्गावती के खजाने को लूट तो उसे लूटने के बाद आसिफ खान खुद को इतना अमीर समझने लगा था कि उसने अकबर के साथ बेईमानी कर दी थी और अकबर को लूटा हुआ खजाना लेने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा था. इस खजाने में कई बहुमूल्य रतन सोना चांदी और जेवरात थे.

बाज बहादुर को खदेड़ा: रानी दुर्गावती की शादी के लगभग 5 साल बाद ही उनके पति दलपत शाह का निधन 1548 में हो गई थी. वह 1565 तक इस पूरे साम्राज्य की रानी रहीं. हालांकि उनके पुत्र वीर नारायण को राजा माना जाता था, लेकिन सभी को पता था कि राज रानी दुर्गावती कर रही थीं. गोंडवाना का राज मालवा तक फैला हुआ था. उस समय मालवा का राजा बाज बहादुर था. यह वही पंच बहादुर था, जिसकी कहानी आपने रानी रूपमती और बाज बहादुर के नाम से सुनी होगी. बाज बहादुर आशिक मिजाज था और उसे रानी दुर्गावती के विधवा होने और उनके सौंदर्य को लेकर कोई गलतफहमी थी. इसलिए उसने गोंडवाना पर हमला बोल दिया, लेकिन रानी ने उसे इतना खदेड़ा की उसके बाद इतिहास में उसका नाम कहीं नहीं मिलता. बाज बहादुर को मिली शिकस्त की जानकारी जब मुगलों को मिली, तब उन्होंने अपने साम्राज्य विस्तार में गोंडवाना को शामिल कर लिया था.

Rani Durgavati Memorial
1954 में बना रानी दुर्गावती का पहला चित्र

तोप की वजह से हारी रानी: रानी दुर्गावती के शासन में सोने की मुहर के जरिए लेनदेन होता था. इस समय पैसे के विनिमय का दूसरा साधन हाथियों के जरिए किया जाता था और बड़ी रकम के एवज में हाथी दे दिए जाते थे. ऐसा माना जाता है कि उस जमाने में इस इलाके में बड़े पैमाने पर हाथी पाले जाते थे. देश के दूसरे इलाके के लोग उन हाथियों को खरीद कर यहां से ले जाते थे, लेकिन भारतीय राजाओं की हार का कारण भी यही हाथी बने. जब उनके सामने तलवार चलते थे, तो यह विधिक जाते थे और भागने लगते थे. इसकी वजह से यह मजबूती होने की बजाय कमजोरी साबित हुए. कुछ ऐसा ही रानी दुर्गावती के साथ भी हुआ और उन्हें अपनी फौज को लेकर आसिफ खान से पीछे हटना पड़ा.

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अपनी जान दे दी लेकिन समर्पण नहीं किया: हालांकि उसके पहले जो चार युद्ध आसिफ खान के साथ उनके हुए. वह शहर के बीचों-बीच हुए. इसके बाद के युद्ध में रानी ने आसिफ खान को बरेला के जंगलों में फंसाने की तैयारी की थी. वे जाकर नारे के पास पहाड़ों में अपने सैनिकों के साथ बैठ गईं थीं. रणनीति यह थी कि आसिफ खान अपनी सेवा के साथ वहां पहुंचेगा और जंगल की जानकारी न होने की वजह से उस पर अचानक हमला बोलकर मार दिया जाएगा, लेकिन रानी के बीच के ही किसी शख्स ने इसकी मुखबरी आसिफ खान को कर दी. जिसके परिणाम स्वरूप रानी पर तीरों से हमला किया गया. उसके बाद उन्होंने अपना ही गला काटकर खुद की जान ले ली.

शहीद होना ठीक समझा गुलाम होना नहीं: इसके बाद वीर नारायण भी युद्ध करते हुए मारे गए और इस पूरी घटना के बाद गोंडवाना साम्राज्य का पतन हो गया. रानी को शहीद हुए लगभग 450 साल हो गए हैं, लेकिन उस वीरांगना ने गुलामी बर्दाश्त नहीं की थी, वह लड़ी थीं और आत्म सम्मान के लिए उसने अपनी जान दे दी थी. यदि रानी ने समर्पण कर दिया होता तो हो सकता है कि गोंडवाना साम्राज्य समृद्धसाली हो सकता था, लेकिन उसकी महानता इसी में है कि उस वीरांगना ने मरना पसंद किया था, लेकिन गुलामी नहीं की थी. इसीलिए 450 साल बाद भी उन्हें याद किया जाता है.

इतिहासकार की जुबानी वीरांगना दुर्गावती की कहानी

जबलपुर। एमपी की संस्कारधानी जबलपुर में रानी दुर्गावती की याद में एक स्मारक बनाया जा रहा है. जबलपुर के मदन महल पर उनकी 51 फीट ऊंची मूर्ति लगाई जा रही है. खास बात यह है कि इस भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबलपुर आ रहे हैं. पीएम मोदी आज यानि 5 अक्टूबर को जबलपुर दौरे पर आ रहे हैं. भारत की कुछ महान वीरांगनाओं में से रानी दुर्गावती भी एक थी. दूरदर्शी, कुशल योद्धा, बेहद सुंदर, अर्थशास्त्री और स्वाभिमान से जीने वाली रानी दुर्गावती की कहानी में आखिर ऐसा क्या है की 450 साल बाद भी देश उनकी वीरता को याद कर रहा है.

गोंडवाना साम्राज्य: जबलपुर के इतिहासकार डॉक्टर आनंद राणा गोंडवाना साम्राज्य के अच्छे जानकार हैं. उनका दावा है कि दुनिया की कुछ बेहतरीन रानियों में से रानी दुर्गावती एक थी. जो बेहद सुंदर थीं और एक कुशल योद्धा भी थीं. उन्होंने अपने 17 साल के शासन के दौरान यह भी साबित कर दिया था कि वह एक अच्छी अर्थशास्त्री थीं. उनकी सोच विकास वाली थी. उस दौरान पूरे गोंडवाना साम्राज्य में लोग सुख और शांति के साथ रह रहे थे.

रानी दुर्गावती का वॉटर मैनेजमेंट: जबलपुर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है. जिस जगह पर जबलपुर बना हुआ है, वहां कई छोटी नदियां थी. जो आज नालों के रूप में पहचानी जाती है. उन्ही में से मोती नाम की एक नदी जबलपुर के बीचों बीच से बहती थी. इसी में कुछ दूसरी सहायक छोटी नदियां थी. जिनके आसपास रानी दुर्गावती ने तालाब खुदवाए. इन तालाबों में सबसे ऊंचाई पर बना हुआ तालाब ठाकुर लाल है. जो जबलपुर में शक्ति भवन के बाजू में बना हुआ है. ठाकुर लाल के नीचे संग्राम सागर है. संग्राम सागर के ठीक नीचे सुपा ताल गंगासागर देवताल है. ऐसे कई तालाब हैं, जो इस तकनीक से बनाए गए थे कि यदि एक तालाब का पानी सूख भी जाता है, तो नीचे के तालाबों में पानी बचा रहे.

Rani Durgavati Memorial
रानी दुर्गावती के युद्ध की तस्वीर

शहर के अंदर करीब 52 ताल-तलैया मौजूद: वहीं शहर के भीतर भी अलग-अलग स्थान पर लगभग 52 ताल तलैया थे. इनमें से कुछ के तो अब केवल नाम ही शेष रह गए हैं. भान तलैया, माढो ताल, अधारताल तिलक भूमि की तलैया, फूटा ताल यह वे कुछ नाम हैं. जहां अब कॉलोनी हैं. तालाबों को लोगों ने पूरी तरह से कंक्रीट से पाट दिया है. वहीं रानीताल बालसागर, गंगासागर, गुलौआ तालाब जैसे कुछ तालाब हैं, जिन्हें सौंदर्य के नाम पर आधा कर दिया गया. हालांकि आज भी इनमें साल भर पानी रहता है. इन तालाबों के अलावा जबलपुर शहर में कई बावड़ियां होती थी. जो आम लोगों के निस्तार में काम आती थी.

रानी दुर्गावती के समय के पूजा स्थल: रानी दुर्गावती के समय जबलपुर आज से भी बड़ा शहर रहा होगा, क्योंकि उस समय ज्यादातर घर मिट्टी के थे. उनके अवशेष तो अब नहीं बचे, लेकिन पूजा स्थल आज भी जिंदा है. इनमें बजाना मठ, बुद्धि खीर में बड़ी खेरमाई, चंडाल भाटा, अघोरी बाबा का मंदिर यह सभी पूजा स्थल आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र है. यह जबलपुर के एक बड़े भूभाग में फैले हुए हैं. किसी जमाने में इस पूरे इलाके में लोग रहा करते थे, क्योंकि इन सभी स्थानों के आसपास कई पत्थर की बावड़ियां भी पाई गई है.

रानी दुर्गावती का टैक्स सिस्टम: डॉ आनंद राणा का कहना है कि उन्होंने इतिहास की कई पुस्तकों में इस बात का जिक्र पढ़ा था. जिसमें रानी दुर्गावती के टैक्स सिस्टम को दुनिया के कुछ बेहतरीन टैक्स सिस्टम में से एक माना गया. गोंडवाना साम्राज्य के अधीन लगभग 70000 गांव थे. इनमें लाखों एकड़ जमीन पर खेती होती थी और खेती की उपज वाला एक तिहाई हिस्सा राज्य को दिया जाता था. इसलिए रानी दुर्गावती के खजाने में बहुत पैसा था. जिसका उपयोग वे इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था में करती थीं. इसकी वजह से गोंडवाना साम्राज्य के कई किले बने. जिनमें दमोह में संग्रामपुर का किला, जबलपुर में मदन महल किला, मंडला में रामगढ़ का किला, नरसिंहपुर में दिलहरी का किला ऐसे कई किले गोंडवाना साम्राज्य के दौरान बनाए गए. इन सभी किलों को बनाने के पीछे एक बड़ा अर्थशास्त्र काम करता था.

Rani Durgavati Memorial
योद्धा की वेशभूषा में रानी दुर्गावती

आसिफ खान की लूट का जिक्र: ऐसा बताया जाता है कि जब आसिफ खान ने रानी दुर्गावती के खजाने को लूट तो उसे लूटने के बाद आसिफ खान खुद को इतना अमीर समझने लगा था कि उसने अकबर के साथ बेईमानी कर दी थी और अकबर को लूटा हुआ खजाना लेने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा था. इस खजाने में कई बहुमूल्य रतन सोना चांदी और जेवरात थे.

बाज बहादुर को खदेड़ा: रानी दुर्गावती की शादी के लगभग 5 साल बाद ही उनके पति दलपत शाह का निधन 1548 में हो गई थी. वह 1565 तक इस पूरे साम्राज्य की रानी रहीं. हालांकि उनके पुत्र वीर नारायण को राजा माना जाता था, लेकिन सभी को पता था कि राज रानी दुर्गावती कर रही थीं. गोंडवाना का राज मालवा तक फैला हुआ था. उस समय मालवा का राजा बाज बहादुर था. यह वही पंच बहादुर था, जिसकी कहानी आपने रानी रूपमती और बाज बहादुर के नाम से सुनी होगी. बाज बहादुर आशिक मिजाज था और उसे रानी दुर्गावती के विधवा होने और उनके सौंदर्य को लेकर कोई गलतफहमी थी. इसलिए उसने गोंडवाना पर हमला बोल दिया, लेकिन रानी ने उसे इतना खदेड़ा की उसके बाद इतिहास में उसका नाम कहीं नहीं मिलता. बाज बहादुर को मिली शिकस्त की जानकारी जब मुगलों को मिली, तब उन्होंने अपने साम्राज्य विस्तार में गोंडवाना को शामिल कर लिया था.

Rani Durgavati Memorial
1954 में बना रानी दुर्गावती का पहला चित्र

तोप की वजह से हारी रानी: रानी दुर्गावती के शासन में सोने की मुहर के जरिए लेनदेन होता था. इस समय पैसे के विनिमय का दूसरा साधन हाथियों के जरिए किया जाता था और बड़ी रकम के एवज में हाथी दे दिए जाते थे. ऐसा माना जाता है कि उस जमाने में इस इलाके में बड़े पैमाने पर हाथी पाले जाते थे. देश के दूसरे इलाके के लोग उन हाथियों को खरीद कर यहां से ले जाते थे, लेकिन भारतीय राजाओं की हार का कारण भी यही हाथी बने. जब उनके सामने तलवार चलते थे, तो यह विधिक जाते थे और भागने लगते थे. इसकी वजह से यह मजबूती होने की बजाय कमजोरी साबित हुए. कुछ ऐसा ही रानी दुर्गावती के साथ भी हुआ और उन्हें अपनी फौज को लेकर आसिफ खान से पीछे हटना पड़ा.

ये भी पढ़ें...

अपनी जान दे दी लेकिन समर्पण नहीं किया: हालांकि उसके पहले जो चार युद्ध आसिफ खान के साथ उनके हुए. वह शहर के बीचों-बीच हुए. इसके बाद के युद्ध में रानी ने आसिफ खान को बरेला के जंगलों में फंसाने की तैयारी की थी. वे जाकर नारे के पास पहाड़ों में अपने सैनिकों के साथ बैठ गईं थीं. रणनीति यह थी कि आसिफ खान अपनी सेवा के साथ वहां पहुंचेगा और जंगल की जानकारी न होने की वजह से उस पर अचानक हमला बोलकर मार दिया जाएगा, लेकिन रानी के बीच के ही किसी शख्स ने इसकी मुखबरी आसिफ खान को कर दी. जिसके परिणाम स्वरूप रानी पर तीरों से हमला किया गया. उसके बाद उन्होंने अपना ही गला काटकर खुद की जान ले ली.

शहीद होना ठीक समझा गुलाम होना नहीं: इसके बाद वीर नारायण भी युद्ध करते हुए मारे गए और इस पूरी घटना के बाद गोंडवाना साम्राज्य का पतन हो गया. रानी को शहीद हुए लगभग 450 साल हो गए हैं, लेकिन उस वीरांगना ने गुलामी बर्दाश्त नहीं की थी, वह लड़ी थीं और आत्म सम्मान के लिए उसने अपनी जान दे दी थी. यदि रानी ने समर्पण कर दिया होता तो हो सकता है कि गोंडवाना साम्राज्य समृद्धसाली हो सकता था, लेकिन उसकी महानता इसी में है कि उस वीरांगना ने मरना पसंद किया था, लेकिन गुलामी नहीं की थी. इसीलिए 450 साल बाद भी उन्हें याद किया जाता है.

Last Updated : Oct 5, 2023, 8:52 AM IST
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