जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में जल्द ही हिंदू कर्मकांड सिखाने का कोर्स और रामचरितमानस पर डिप्लोमा कराने की तैयारी शुरू कर दी गई है.इसके लिए कक्षाएं भी जल्द ही शुरू की जाएंगी. इस कोर्स को यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में शुरू किया जा रहा है और कोर्स की अवधि 6 महीने और 1 साल की रखी जाएगी.
सिखाई जाएंगी जीवन के लिए उपयोगी बातें
जबलपुर का रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जो दो नए कोर्स शुरू करने जा रहा है उसमें यह अपनी तरह का पहला कोर्स होगा. इसे यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में शुरू किया जा रहा है. यहां रामचरितमानस का सर्टिफिकेट कोर्स करने की अवधि 6 महीने की होगी. कोर्स में रामचरितमानस के इतिहास और उसमें जीवन के उपयोगी जानकारी से जुड़ी बातें शामिल की जाएंगी. जिसमें मानस का अध्यनन और भारतीय दर्शन में उससे जुड़ी चरित्र निर्माण की घटनाओं को शामिल किया जाएगा. हालांकि रामचरितमानस का अध्ययन करके छात्रों को कहां नौकरी मिलेगी या फिर इस कोर्स को करने के बाद जीवन यापन का कौन सा रास्ता खुलेगा यह किसी को नहीं पता.
कर्मकांड भी सिखाया जाएगा
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में एक और महत्वपूर्ण सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया जा रहा है जिसमें कर्मकांड पढ़ाया जाएगा. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के एचओडी राधिका प्रसाद मिश्र का कहना है यह रोजगार से जुड़ा हुआ कोर्स है. हमारे समाज में कर्मकांड में निपुण पंडितों की बहुत जरूरत होती है. इसलिए यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कर्मकांड में छात्रों को दक्ष करेंगे. कर्मकांड से जुड़े पूजापाठ को सिखाने का यह कोर्स 1 साल का है. जिसमें कोई भी ग्रेजुएट छात्र कर्मकांड का अध्यनन कर सकता है.यूनिवर्सिटी ने इन कोर्सेस में एडमिशन के लिए जाति का कोई बंधन नहीं रखा है, मिश्र का कहना है कि किसी भी धर्म या जाति का छात्र कर्मकांड सीख सकता है. हालांकि अभी तक एडमिशन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है.
जानकारों का मानना है कि यूनिवर्सिटी के इस फैसले का विरोध होना तय है, क्योंकि यह दोनों ही विषय राजनैतिक भी हैं और ऐसा माना जा रहा है कि राज्य सरकार यूनिवर्सिटी के जरिए धार्मिक शिक्षा देने की तैयारी कर रही है. बहस का मुद्दा यह भी हो सकता है कि शैक्षणिक संस्थाओं के जरिए धर्म से जुड़े हुए कोर्सेस का संचालन करने पर दूसरे धर्माचार्य भी ऐसी ही मांग कर सकते हैं. राज्य सरकार ने इसे शुरू करने का फैसला तो कर लिया है लेकिन अब देखना यह होगा कि क्या सरकार की मंशा के मुताबिक इन कोर्सेस का संचालन हो पाता या फिर विरोध के चलते सरकार खुद ही पीछे हटने पर मजबूर होती है.