जबलपुर। लोकतंत्र के सियासी महाभारत में एक महारथी पर सबकी निगाहें टिकी हैं. इसी महारथी के कंधों पर सेना की अगुवाई की जिम्मेदारी भी है और अपना सियासी मुस्तकबिल मुकम्मल करने का मौका भी. हालांकि, पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में जीत के बिल्कुल करीब पहुंचकर भी चूक गये थे. बावजूद इसके पार्टी ने भरोसा कायम रखा और इस महारथी को उस हार का बदला लेने का एक बार फिर मौका दिया.
बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह की. जिनकी अगुवाई में विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी पार्टी का भरोसा कायम है और प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालते हुए राकेश सिंह मां नर्मदा की गोद में बसे महाकौशल के सियासी केंद्र जबलपुर से फिर ताल ठोक रहे हैं. अब राकेश के सामने प्रदेश में कमल खिलाने की चुनौती भी है. इस चुनौती से यदि राकेश सिंह पार पाते हैं तो उनकी खोई हुई प्रतिष्ठा भी वापस मिल सकती है, नहीं तो उन्हें दोबारा मुंह की खानी पड़ेगी.
राकेश सिंह की संगठन क्षमता का लोहा दिग्गज भी मानते हैं. यही वजह है कि विधानसभा चुनाव की हार के बाद भी वे प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज हैं. राकेश सिंह को सूबे की राजनीति में छुपा रुस्तम कहा जाये तो गलत नहीं होगा. सूबे की सियासी फिजा में अनजाने से चेहरे राकेश सिंह जबलपुर से तीन बार से लगातार सांसद हैं, जबकि चौथी बार फिर मैदान में हैं. उन्हें पार्टी में संगठन के सबसे मजबूत सिपाहियों में से एक माना जाता है. यही वजह है कि दिग्गजों को दरकिनार कर अमित शाह ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है.
2004 में राकेश सिंह पहली बार जबलपुर से सांसद बने
लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे
संससदीय समिति के कई प्रमुख पदों पर रहे
2018 में मध्यप्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने
भले ही कुछ वक्त पहले तक राकेश सिंह का नाम लोगों को अनजाना लगा हो, पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वे मध्यप्रदेश बीजेपी के कद्दावर नेताओं में से एक हो गये. बीजेपी की केंद्रीय राजनीति में भी राकेश सिंह का दबदबा कम नहीं है. वे संसदीय कमेटी में कई प्रमुख पदों पर रह चुके हैं. विधानसभा चुनाव में हार झेल चुके महाकौशल के इस कद्दावर नेता पर एक तीर से कई निशाने साधने की जिम्मेदारी है. उन्हें एक तरफ जहां कांग्रेस के बढ़ते कदमों को रोकना है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी को एक बार फिर सूबे की सियासत का सिरमौर बनाना है.