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New Innovation: जबलपुर में गेहूं की फसल पर ड्रोन के जरिए नैनो यूरिया का छिड़काव

जबलपुर के मगरमुहा में ड्रोन से नैनो यूरिया का स्प्रे किया गया. नई पहल के तहत गेहूं की फसल पर सरकार नैनो यूरिया का चलन बढ़ाने का प्रयास कर रही है. ये सिस्टम काफी कारगर है. लेकिन किसान इतने सक्षम नहीं हैं कि वे अपने दम पर नैनो यूरिया का छिड़काव करा सकें.

Spraying of nano urea through drone
गेहूं की फसल पर ड्रोन के जरिए नैनो यूरिया का छिड़काव
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Published : Mar 17, 2023, 3:54 PM IST

गेहूं की फसल पर ड्रोन के जरिए नैनो यूरिया का छिड़काव

जबलपुर। जबलपुर क्षेत्र में गेहूं की फसल मटर की फसल लेने के बाद लगाई जाती है. इसकी वजह से गेहूं लेट हो जाता है. बिना रासायनिक खाद के गेहूं की उपज संभव नहीं है. इस साल मौसम में गर्मी जल्दी आ गई और लेट बोनी वाले गेहूं की फसल कमजोर बालियों के साथ जल्दी पक जाएगी. फसल की उत्पादकता कम होगी और गेहूं गुणवत्ता में भी ठीक नहीं होगी. इसी के मद्देनजर किसान खेतों में ज्यादा यूरिया डाल रहे हैं. जिससे फसल जल्द ना पके और गुणवत्ता अच्छी मिले.

नैनो यूरिया समस्या का निदान : कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि नैनो यूरिया तरल अवस्था में आता है और मात्र 1 लीटर की बोतल एक बोरी यूरिया के बराबर काम करता है. इस नैनो तकनीक से बनाए गए यूरिया को जमीन में डालने की बजाय इसका स्प्रे फसल के ऊपर किया जाता है. जबलपुर के मगरमुहा गांव में सरकार द्वारा ड्रोन के जरिए स्प्रे करवाया जा रहा है. वहीं, किसान धर्म सिंह का कहना है कि सरकार यदि ऐसी मेहरबानी हमेशा करती रहे तो किसानों का भला हो जाए. बता दें कि यूरिया की उपलब्धता सरकार के लिए हमेशा चुनौती होती है. इसलिए सरकार चाहती है यूरिया का कोई दूसरा विकल्प मिले.

यूरिया से बढ़ता है आर्थिक बोझ: सरकार नैनो यूरिया का इस्तेमाल बढ़ाना चाहती है, क्योंकि दानेदार यूरिया खरीदने में देश के खजाने पर बोझ पड़ता है. अभी भी भारत केवल 1.3 मिलीयन टन यूरिया का उत्पादन करता है. अभी भी 7 से 8 मिलियन टन की जरूरत हर साल रहती है. भारत अपनी जरूरत का केवल 15% यूरिया ही उत्पादित कर पाता है. बाकी यूरिया विदेशों से आयात करना पड़ता है. इसलिए सरकार चाहती है यदि नैनो यूरिया का चलन बढ़ जाए तो देश के खजाने पर बोझ नहीं पड़ेगा.

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यूरिया से भूमिगत जल में प्रदूषण : वहीं जमीन में जो यूरिया डाला जाता है उसका केवल 20% हिस्सा ही पौधा खींच पाता है. बाकी पानी के साथ घुलकर जमीन के भीतर चला जाता है. इसी के चलते जमीन के भीतर मौजूद भूमिगत जल में लगातार नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ रही है. पंजाब और हरियाणा में जहां यूरिया का ज्यादा उपयोग किया गया, वहां भूमिगत जल तक प्रदूषित हो गया है. इसलिए खेती में नवाचार जरूरी है लेकिन इसके लिए किसान तैयार नहीं हैं. क्योंकि किसान के पास खेती के नए सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं. पहले ही खेती की लागत बढ़ चुकी है. इसलिए ड्रोन जैसी तकनीक किसानों के बजट में नहीं है. बेशक इसका फायदा होगा लेकिन फिलहाल ड्रोन की उड़ान किसान की पहुंच से ऊपर है.

गेहूं की फसल पर ड्रोन के जरिए नैनो यूरिया का छिड़काव

जबलपुर। जबलपुर क्षेत्र में गेहूं की फसल मटर की फसल लेने के बाद लगाई जाती है. इसकी वजह से गेहूं लेट हो जाता है. बिना रासायनिक खाद के गेहूं की उपज संभव नहीं है. इस साल मौसम में गर्मी जल्दी आ गई और लेट बोनी वाले गेहूं की फसल कमजोर बालियों के साथ जल्दी पक जाएगी. फसल की उत्पादकता कम होगी और गेहूं गुणवत्ता में भी ठीक नहीं होगी. इसी के मद्देनजर किसान खेतों में ज्यादा यूरिया डाल रहे हैं. जिससे फसल जल्द ना पके और गुणवत्ता अच्छी मिले.

नैनो यूरिया समस्या का निदान : कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि नैनो यूरिया तरल अवस्था में आता है और मात्र 1 लीटर की बोतल एक बोरी यूरिया के बराबर काम करता है. इस नैनो तकनीक से बनाए गए यूरिया को जमीन में डालने की बजाय इसका स्प्रे फसल के ऊपर किया जाता है. जबलपुर के मगरमुहा गांव में सरकार द्वारा ड्रोन के जरिए स्प्रे करवाया जा रहा है. वहीं, किसान धर्म सिंह का कहना है कि सरकार यदि ऐसी मेहरबानी हमेशा करती रहे तो किसानों का भला हो जाए. बता दें कि यूरिया की उपलब्धता सरकार के लिए हमेशा चुनौती होती है. इसलिए सरकार चाहती है यूरिया का कोई दूसरा विकल्प मिले.

यूरिया से बढ़ता है आर्थिक बोझ: सरकार नैनो यूरिया का इस्तेमाल बढ़ाना चाहती है, क्योंकि दानेदार यूरिया खरीदने में देश के खजाने पर बोझ पड़ता है. अभी भी भारत केवल 1.3 मिलीयन टन यूरिया का उत्पादन करता है. अभी भी 7 से 8 मिलियन टन की जरूरत हर साल रहती है. भारत अपनी जरूरत का केवल 15% यूरिया ही उत्पादित कर पाता है. बाकी यूरिया विदेशों से आयात करना पड़ता है. इसलिए सरकार चाहती है यदि नैनो यूरिया का चलन बढ़ जाए तो देश के खजाने पर बोझ नहीं पड़ेगा.

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