जबलपुर। MPPSC 2019 की रद्द हुई परीक्षा के मामले में हाई कोर्ट ने याचिका दायर करने वालों को आदेश दिए हैं कि तीन दिन में जवाब पेश करें. मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी. बता दें कि आरक्षण मामले में हाई कोर्ट के फैसले के बाद एमपीपीएससी ने राज्य सेवा एवं राज्य वन सेवा परीक्षा 2019 पूरी तरह से निरस्त कर दी थी. एमपीपीएससी के इस फैसले को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.
परीक्षा निरस्त करने की गई थी कोर्ट में चुनौती : इसके बाद हाईकोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए पूछा था कि पीएससी परीक्षा-2019 की संपूर्ण चयन प्रक्रिया को निरस्त क्यों किया गया. इस मामले में राज्य शासन व पीएससी को जवाब पेश करने के निर्देश दिए गए थे. हाईकोर्ट ने 2015 के पूर्व नियम अनुसार पीएससी 2019 की रिजल्ट करने के निर्देश दिए थे. मुख्य परीक्षा में चयनित छात्रों ने इस मामले में इंटरविनर याचिका दायर कर कोर्ट से अपने उक्त आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया.
संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती : गौरतलब है कि किशोरी चौधरी,डीएल चौधरी सहित 55 याचिकाकर्ताओं की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में 17 फरवरी 2020 को किये गये संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती दी गयी थी. याचिका में कहा गया था कि संशोधित नियम आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यार्थियों का अनारक्षित वर्ग में चयन से रोकते हैं. यह निर्णय इंद्रा साहनी केस के निर्णय से असंगत है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 तथा 21 का उल्लंघन करते हुए कम्युनल आरक्षण लागू करता है.याचिकाओं में कहा गया था कि अनारक्षित वर्ग में सिर्फ अनारक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को ही रखा गया जबकि पुराने नियमों के अनुसार अनारक्षित वर्ग में आरक्षित एवं अनारक्षित वर्ग के प्रतिभावान छात्रों का ही चयन किया जाता था.
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पोस्टमॉर्टम व फॉरेसिंक रिपोर्ट मामले में सुनवाई : आपराधिक प्रकरणों में पोस्टमॉर्टम व फॉरेसिंक रिपोर्ट की टाइप तथा डिजिटल कॉपी न्यायालय में उपलब्ध करवाने संबंधी मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिये हैं. अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि मेडिको लीगल प्रकरण में पोस्टमॉर्टम, फॉरेंसिक सहित अन्य रिपोर्ट हस्तलिपि होती है. हस्तलिपि स्पष्ट नहीं होने के कारण उसे ठीक से पढ़ा नहीं जा सकता है. न्यायालय में प्रकरण की सुनवाई के दौरान मेडिको लीगल रिपोर्ट अहम साक्ष्य होता है. हस्तलिपि स्पस्ष्ट नहीं होने के कारण रिपोर्ट के अर्थ का अनर्थ निकाल कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है. युगलपीठ ने सरकार को स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई 21 दिसंबर को निर्धारित की है.