जबलपुर। पिछले साल 27 अप्रैल को सूरज आग बरसा रहा था और जबलपुर में अधिकतम तापमान 42.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था लेकिन इस साल 27 अप्रैल का अधिकतम तापमान 36.5 डिग्री सेल्सियस रहा. एक स्वस्थ मानव शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है और इससे अधिक तापमान यदि वातावरण में है तो आम आदमी को गर्मी का एहसास होता है. 42.5 डिग्री सेल्सियस शरीर के सामान्य तापमान से बहुत अधिक माना जाता है इसलिए यह तेज गर्मी का सूचक है वहीं न्यूनतम तापमान की बात करें तो जबलपुर में बीते 2 दिनों का न्यूनतम तापमान 19 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है मतलब रातें बहुत ठंडी हो रही है.
अब तक 25 मिलीमीटर बारिश: जबलपुर के आसपास बीते 24 घंटों में 7 मिलीमीटर बारिश हुई है मौसम विभाग के प्रभारी अधिकारी बीजू जॉन जैकब के अनुसार इस साल अभी तक 25 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जा चुकी है जबकि बीते साल अप्रैल के महीने में एक बूंद भी पानी नहीं बरसा था. जबलपुर में बीते 24 घंटों में कुछ जगह बारिश हुई है और कुछ जगह ओले भी गिरे हैं इसलिए मौसम में ठंडक है. जबलपुर में इस मौसम परिवर्तन की वजह विदर्भ से तमिलनाडु तक बना हुआ लो प्रेशर एरिया है. इसकी वजह से बारिश हो रही है और 1 मई तक ऐसा ही मौसम बना रहेगा. 1 मई के बाद तेज गर्मी की संभावना जताई जा रही है.
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जायद की फसलों के लिए फायदेमंद: मौसम में इस ठंड की वजह से गर्मी की फसलों को फायदा है. इसमें मूंग उड़द की फसलें इन दिनों खेतों में है और जहां भी ओले नहीं गिरे हैं. फसलें अच्छी तरह से लहलहा रही हैं. गन्ने की फसल को भी गर्मी के मौसम में लगातार हो रही बारिश से फायदा मिल रहा है. इसका दूसरा असर सामाजिक जनजीवन पर देखने को मिल रहा है और जहां इन दिनों स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां हो जाती थी वहां अभी भी स्कूल लग रहे हैं और ऐसी संभावना जताई जा रही है कि 1 मई तक स्कूल लगेंगे. वहीं दूसरी ओर इसका फायदा बिजली विभाग को भी मिल रहा है और बिजली की मांग में ठंडक की वजह से कमी है.
स्कूलों की छुट्टियां नहीं: इतनी ठंडी गर्मी अप्रैल के महीने में कई सालों से देखने को नहीं मिली है लेकिन ऐसा माना जाता है कि यदि गर्मियों में धरती अच्छे से नहीं सकती तो इसका असर बारिश के मौसम पर पड़ता है और बारिश कम होती है वहीं दूसरी ओर कृषि कार्य करने वाले लोगों के लिए भी गर्मी कम पढ़ना अनुकूल नहीं माना जाता क्योंकि इससे खेतों के खरपतवार खत्म नहीं होते और खेत आने वाली फसलों के लिए सही तरीके से तैयार नहीं हो पाते.