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वरिष्ठ नागरिक बच्चों से भरण-पोषण पाने के हकदार नहीं, अगर..., हाईकोर्ट का अहम फैसला - ORISSA HC

उड़ीसा हाईकोर्ट ने भरण-पोषण न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज कर दिया, जिसने बेटे को 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने निर्देश दिया था.

senior citizen does not automatically entitled to receive maintenance from children Orissa HC
वरिष्ठ नागरिक बच्चों से भरण-पोषण पाने का हकदार नहीं, अगर..., हाईकोर्ट का अहम फैसला (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 15, 2025, 7:49 PM IST

Updated : Feb 15, 2025, 9:05 PM IST

कटक: उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसला में कहा कि केवल वरिष्ठ नागरिक होने से ही कोई व्यक्ति अपने बच्चों से भरण-पोषण पाने का हकदार नहीं हो जाता, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह अपनी कमाई या संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है.

जस्टिस शशिकांत मिश्रा की पीठ ने 14 फरवरी को यह फैसला सुनाया और माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया. हाईकोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का आदेश केवल तभी पारित किया जा सकता है जब यह स्थापित हो जाए कि बच्चों ने वरिष्ठ नागरिक, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, का भरण-पोषण करने में लापरवाही की है या मना कर दिया है.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में 2007 के अधिनियम की धारा 4 की पड़ताल की, जिसमें कहा गया है कि कोई वरिष्ठ नागरिक केवल तभी भरण-पोषण की मांग कर सकता है, जब वह आर्थिक रूप से खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो. अदालत ने पाया कि न तो न्यायाधिकरण और न ही अपीलीय प्राधिकरण ने यह जांच की कि पिता के पास वित्तीय संसाधनों की कमी है या नहीं.

इसके अलावा, अदालत ने पाया कि अधिनियम की धारा 9 के अनुसार भरण-पोषण केवल तभी दिया जा सकता है, जब बच्चों द्वारा उपेक्षा या इनकार का सबूत हो. लेकिन, न्यायाधिकरण और अपीलीय प्राधिकरण इस संबंध में कोई विशेष निष्कर्ष निकालने में विफल रहे.

मामले में नए सिरे से सुनवाई का आदेश
अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को खारिज करते हुए उड़ीसा हाईकोर्ट ने मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए भरण-पोषण न्यायाधिकरण को वापस भेज दिया. अदालत ने कहा कि न्यायाधिकरण दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का अवसर देगा. याचिका लंबित रहने तक बेटे द्वारा हाईकोर्ट के आदेशानुसार जमा की गई राशि न्यायाधिकरण के निर्णय तक स्थायी जमा रहेगी. न्यायाधिकरण एक माह के भीतर मामले का निर्णय करेगा.

उच्च न्यायालय ने कहा है कि पिता-पुत्र दोनों 24 फरवरी को न्यायाधिकरण के समक्ष उपस्थित होंगे.

क्या है मामला

69 वर्षीय पिता पर आरोप है कि उनके बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया है और भरण-पोषण नहीं कर रहा है. पीड़ित पिता ने बेटे के खिलाफ रायगड़ा उप-जिला कलेक्टर एवं भरण-पोषण न्यायाधिकरण में शिकायत दर्ज कर 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग की थी. इसके बाद न्यायाधिकरण ने मामले की सुनवाई की और 16 फरवरी 2024 को बेटे को घर की चाबी पिता को देने के साथ 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया.

इस फैसले के खिलाफ बेटे ने रायगड़ा जिला कलेक्टर एवं अपीलीय प्राधिकरण में अपील की. जिला कलेक्टर ने 16 फरवरी 2024 के आदेश को बरकरार रखते हुए 23 जुलाई 2024 को फैसला सुनाया. इस फैसले को चुनौती देते हुए बेटे ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसने अपनी याचिका में कहा कि जब न्यायाधिकरण के सामने इस बात का कोई सबूत पेश नहीं किया गया है कि पिता खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो मासिक भरण-पोषण राशि के भुगतान का आदेश देना कानून के तहत जायज नहीं है.

यह भी पढ़ें- डेंगू फैलाने वालों के खिलाफ हाईकोर्ट सख्त: सरकार को कड़े नियम लागू करने के आदेश

कटक: उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसला में कहा कि केवल वरिष्ठ नागरिक होने से ही कोई व्यक्ति अपने बच्चों से भरण-पोषण पाने का हकदार नहीं हो जाता, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह अपनी कमाई या संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है.

जस्टिस शशिकांत मिश्रा की पीठ ने 14 फरवरी को यह फैसला सुनाया और माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया. हाईकोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का आदेश केवल तभी पारित किया जा सकता है जब यह स्थापित हो जाए कि बच्चों ने वरिष्ठ नागरिक, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, का भरण-पोषण करने में लापरवाही की है या मना कर दिया है.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में 2007 के अधिनियम की धारा 4 की पड़ताल की, जिसमें कहा गया है कि कोई वरिष्ठ नागरिक केवल तभी भरण-पोषण की मांग कर सकता है, जब वह आर्थिक रूप से खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो. अदालत ने पाया कि न तो न्यायाधिकरण और न ही अपीलीय प्राधिकरण ने यह जांच की कि पिता के पास वित्तीय संसाधनों की कमी है या नहीं.

इसके अलावा, अदालत ने पाया कि अधिनियम की धारा 9 के अनुसार भरण-पोषण केवल तभी दिया जा सकता है, जब बच्चों द्वारा उपेक्षा या इनकार का सबूत हो. लेकिन, न्यायाधिकरण और अपीलीय प्राधिकरण इस संबंध में कोई विशेष निष्कर्ष निकालने में विफल रहे.

मामले में नए सिरे से सुनवाई का आदेश
अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को खारिज करते हुए उड़ीसा हाईकोर्ट ने मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए भरण-पोषण न्यायाधिकरण को वापस भेज दिया. अदालत ने कहा कि न्यायाधिकरण दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का अवसर देगा. याचिका लंबित रहने तक बेटे द्वारा हाईकोर्ट के आदेशानुसार जमा की गई राशि न्यायाधिकरण के निर्णय तक स्थायी जमा रहेगी. न्यायाधिकरण एक माह के भीतर मामले का निर्णय करेगा.

उच्च न्यायालय ने कहा है कि पिता-पुत्र दोनों 24 फरवरी को न्यायाधिकरण के समक्ष उपस्थित होंगे.

क्या है मामला

69 वर्षीय पिता पर आरोप है कि उनके बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया है और भरण-पोषण नहीं कर रहा है. पीड़ित पिता ने बेटे के खिलाफ रायगड़ा उप-जिला कलेक्टर एवं भरण-पोषण न्यायाधिकरण में शिकायत दर्ज कर 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग की थी. इसके बाद न्यायाधिकरण ने मामले की सुनवाई की और 16 फरवरी 2024 को बेटे को घर की चाबी पिता को देने के साथ 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया.

इस फैसले के खिलाफ बेटे ने रायगड़ा जिला कलेक्टर एवं अपीलीय प्राधिकरण में अपील की. जिला कलेक्टर ने 16 फरवरी 2024 के आदेश को बरकरार रखते हुए 23 जुलाई 2024 को फैसला सुनाया. इस फैसले को चुनौती देते हुए बेटे ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसने अपनी याचिका में कहा कि जब न्यायाधिकरण के सामने इस बात का कोई सबूत पेश नहीं किया गया है कि पिता खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो मासिक भरण-पोषण राशि के भुगतान का आदेश देना कानून के तहत जायज नहीं है.

यह भी पढ़ें- डेंगू फैलाने वालों के खिलाफ हाईकोर्ट सख्त: सरकार को कड़े नियम लागू करने के आदेश

Last Updated : Feb 15, 2025, 9:05 PM IST
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