जबलपुर. 2023 का विधानसभा चुनाव जबलपुर की सिहोरा विधानसभा की तस्वीर बदल देगा, ऐसी उम्मीद फिलहाल यहां का मतदाता कर रहा है. यहां के लोगों की मांग है, सिहोरा को अलग जिला बनाना, अब जो पार्टी इन मांगों पर खरा उतरेगी, तो उसे यहां की जनता का आशीर्वाद मिलेगा. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों मतदाताओं को लुभाने के लिए सियासी दांव चलने को आतुर हैं. इस सीट पर दोनों पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला है...
हर विधानसभा चुनाव में यह मांग उठती रही है. सिहोरा से कांग्रेस विधायक रहे नित्य निरंजन खमरिया ने 2003 में तत्कालीन दिग्विजय सिंह की सरकार के दौरान सिहोरा को जिला बनाने की पूरी तैयारी कर ली थी. जबलपुर की दो तहसील और कटनी की दो तहसील मिलकर एक नया जिला बनाने की कवायत लगभग पूरी हो गई थी.
ये भी पढ़ें... |
लेकिन इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार आ गई. हर बार यहां सिहोरा को जिला बनाने की मांग को लेकर आंदोलन होता है. नेता आश्वासन देते हैं, लेकिन सिहोरा जिला नहीं बन पाता. इस बार भी चुनाव के ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी के ही नेता अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं.
यहां तक की मीसा बंदियों ने सरकार से मांग की है, कि यदि वह सिहोरा को जिला नहीं बना सकते, तो उनकी पेंशन वापस कर दी जाए. कांग्रेस भी इस मुद्दे को खूब हवा दे रही है, इसलिए 2023 की विधानसभा का चुनाव इस इलाके में नए जिले की मांग को लेकर ही लड़ा जाएगा.
चुनाव के खिलाड़ी: सिहोरा विधानसभा अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित विधानसभा है, इसलिए यहां से आदिवासी ही चुनाव लड़ते हैं. इसमें भारतीय जनता पार्टी से सबसे मजबूत उम्मीदवार नंदनी मरावी हैं. नंदनी मरावी 2008 से अब तक तीन बार विधानसभा में चुनकर जा चुकी हैं.
उन्होंने सबसे पहले 2008 में कांग्रेस प्रत्याशी मुन्ना मरावी को हराया. 2013 में उन्होंने जमुना मरावी को हराया. 2018 में कांग्रेस के खिलाड़ी सिंह आर्मी को हराया. अब 2023 में भी ऐसी संभावना जताई जा रही है कि, उन्हें ही विधानसभा का टिकट भारतीय जनता पार्टी की ओर से मिलेगा.
खिलाड़ी सिंह आर्मी जो कांग्रेस छोड़कर दोबारा भारतीय जनता पार्टी में वापस आ गए हैं, उनके नाम पर भी विचार किया जा सकता है. वहीं, इस विधानसभा से कांग्रेस में एक बार फिर किसी नए उम्मीदवार को मैदान में उतरने की तैयारी की जा रही है.
दरअसल, सिहोरा विधानसभा में सिहोरा नगर पंचायत के अलावा कुंडम के आसपास का आदिवासी बहुल इलाका शामिल है. नंदनी मरावी कुंडम क्षेत्र से आती हैं इसलिए कांग्रेस की कोशिश है कि सिहोरा क्षेत्र से किसी को विधानसभा का टिकट दिया जाए, जिससे भारतीय जनता पार्टी के वर्चस्व को खत्म किया जा सकता है.
यहां बीते दिनों कांग्रेस को एक सफलता मिली. सिहोरा नगर पंचायत भारतीय जनता पार्टी हार गई थी. यहां कांग्रेस नेता अमोल चौरसिया के परिवार ने चुनाव जीत लिया था. इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि सिहोरा की तरफ से इस विधानसभा में परिवर्तन लाया जा सकता है.
कांग्रेस की ओर से पूर्व मंत्री कौशल्या गोटिया दावेदारी कर रही हैं, वह सिहोरा की ही रहने वाली हैं. साथ ही लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं.
दिग्विजय शासनकाल में भी मंत्री भी रही. दूसरा नाम एकता ठाकुर का है. एकता ठाकुर पिछले चुनाव के बाद से ही लगातार इस विधानसभा में सक्रिय हैं. एकता ठाकुर लंबे समय तक NSUI और युवक कांग्रेस की राजनीति करती रही हैं.
इसलिए, एक नए चेहरे के रूप में एकता ठाकुर को भी मौका दिया जा सकता है. जमुना मरावी भी अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं, हालांकि वे 2013 का चुनाव हार चुकी है.
सिहोरा की आर्थिक स्थिति: सिहोरा विधानसभा की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है. ऐसा नहीं है कि यहां उद्योग व्यापार नहीं है, बल्कि सिहोरा के आसपास मार्बल की कई खदानें हैं.
बड़े पैमाने पर आयरन ओर की खुदाई भी सिहोरा विधानसभा में होती है. इसका फायदा यहां के स्थानीय लोगों को नहीं मिलता. वह केवल इन खदानों में मजदूरी करते ही नजर आते हैं. दूसरी ओर इस इलाके के ज्यादातर आदिवासी लोग आज भी खेती और पशुपालन से अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं. इसलिए यहां पर गरीबी है और बुनियादी सुविधाओं की दरकार है.
सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं होने की वजह से आदिवासियों के पलायन की समस्या भी यहां बनी रहती है. सूखाग्रस्त इलाकों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बीते 5 सालों में यहां दो मिट्टी के बाँध भी बनाए गए हैं. उनके बहुत अच्छे परिणाम सामने नहीं आए हैं.
नर्मदा की बरगी बांध परियोजना के दक्षिण तट की नहर का काम पूरा नहीं हुआ है. इसकी वजह से बरगी बांध की सिंचाई परियोजना का फायदा सिहोरा के लोगों को नहीं मिल पा रहा है. सिहोरा विधानसभा के ज्यादातर इलाके जबलपुर की दूसरी सात विधानसभाओं की अपेक्षा ज्यादा पिछड़े हुए हैं, आश्चर्यजनक को रूप से इसके बाद भी सिहोरा के लोग भारतीय जनता पार्टी को तीन बार जीत चुके हैं.