जबलपुर। याचिकाकर्ता महिला सोना बाई की तरफ से दायर अवमानना याचिका में कहा गया था कि वह रायपुरा जिला बुरहानपुर स्थित अनुसूचित जाति बॉयज हॉस्टल में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में खाना बनाने का काम करती है. उसने सरकार द्वारा सन् 1978 में जारी सर्कुलर के अनुसार सामान वेतन दिये जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. 1992 में उक्त याचिका दायर की गयी थी. न्यायालय ने साल 2013 में उसके पक्ष में धन्नू बाई विरुद्ध राज्य सरकार के प्रकरण में पारित आदेश तथा सर्कुलर के अनुसार लाभ प्रदान करने के आदेश जारी किये थे.
कलेक्टर ने खारिज किया था आवेदन: जिला कलेक्टर ने उसका आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि अराक्षित वर्ग के नियमितीकरण के लिए कोई पद रिक्त नहीं है. जिसके खिलाफ 2014 में उक्त आवमानना याचिका दायर की गयी थी. अवमानना याचिका के दौरान अतिरिक्त आयुक्त आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा पेश किये गये जवाब में भी यही बात कहीं गयी थी. पूर्व में याचिका की सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने जनवरी 2021 में पारित आदेश में कहा था कि सात सालों में आदेश परिपालन के लिए सरकार के जिम्मेदार लोगों को कई अवसर दिये गए. इसके वावजूद भी आदेश का परिपालन नहीं न्यायालय ने उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई नहीं की.
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आजीविका मिशन योजना का मामला : केंद्र सरकार की आजीविका मिशन योजना में भ्रष्टाचार तथा अवैधानिक तरीके से की गयी नियुक्तियों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी. हाईकोर्ट जस्टिस शील नागू तथा जस्टिस डीडी बसंल ने राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई तय करें. युगलपीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रखने के आदेश जारी किए. याचिकाकर्ता भूपेन्द्र कुमार प्रजापति की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि प्रदेश में पिछले पांच सालों में आजीविका मिशन के तहत हुए भ्रष्टाचार का खुलासा उनके द्वारा किया गया था. नियम विरुध्द तरीके से साल 2017 में 29 जिलों में सूक्ष्य बीमा योजना के तहत महिलाओं के सेल्फ ग्रुप बनाकर बीमा के नाम पर 1 करोड 78 लाख रुपये की राशि एकत्र की गयी थी. उक्त राशि बैंक में जमा नहीं की गयी और किसी प्रकार का कोई बीमा नहीं करवाया गया.