जबलपुर। मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी से जुड़ी एक और परीक्षा कानूनी दांव-पेंच में उलझ गई है. हाई कोर्ट ने साल 2018 में हुई प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के तहत होने वाली नियुक्तियों को याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन कर दिया है. चीफ जस्टिस रवि विजय मलिमठ व जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने मामले में प्रमुख सचिव मानव संसाधन विभाग, नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन, पीएस स्कूल शिक्षा विभाग, आयुक्त लोक संचनालय, कमिश्नर आदिवासी विकास विभाग व चेयरमेन प्रोफेशन एग्जाम बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं. युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च को निर्धारित की है.
रिजल्ट को चुनौती: यह मामला डीएलएड छात्र सतना निवासी विपिन द्विवेदी और नीलेश कुमार की ओर से दायर किया गया है. जिसमें एनसीईटी की अधिसूचना 26 अगस्त 2018 तथा राज्य के शिक्षक भर्ती नियम 2018 सहित रिजल्ट को चुनौती दी गई है. आवेदकों की ओर से कहा गया कि प्राथमिक शिक्षकों की काउंसलिंग में डीपीआई द्वारा बीएड डिग्री धारियों को भी मौका दिया जा रहा है, जबकि अभ्यर्थियों द्वारा एनसीईटी द्वारा निर्धारित 6 माह का ब्रिज कोर्स नहीं किया गया है, ना ही आज दिनांक तक ब्रिज कोर्स का सिलेबस एनसीईटी द्वारा निर्धारित ही नहीं किया गया है. यदि अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जाती तो 6 वर्ष से 14 वर्ष के छात्रों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा. जो संविधान के अनुच्छेद 21-ए का उल्लंघन सहित शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लंघन है.
इन कोर्ट के फैसलों का हवाला: आवेदकों की ओर से कहा गया कि, डीएलएड डिग्री धारियों को छोटे बच्चो को अध्यापन कार्य कराने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. जबकि बीएड डिग्री धारियों को उच्च कक्षा में अध्यापन कार्य का प्रशिक्षण दिया जाता है. तर्कों के समर्थन में आवेदकों की ओर से सकों व राजस्थान, नई दिल्ली, हिमाचल प्रदेश के हाई कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया गया. जिसमें कहा गया है कि राजस्थान में बीएड डिग्री धारियों की प्राथमिक शिक्षकों के रूप में की गई नियुक्तियों को हाईकोर्ट द्वारा निरस्त किया गया है. मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद न्यायालय ने प्राथमिक शिक्षकों की भर्तियां याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रखने के निर्देश देते हुए अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह तथा अंजनी कोरी ने पक्ष रखा.
ट्रिपल आईटी वन भूमि मामला: एक दूसरे मामले में शासन की तरफ से हाई कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि, ट्रिपल आईटी को वन भूमि की 47 हैक्टेयर भूमि साल 2006 में प्रदान की गयी थी. भूमि का पद परिवर्तन साल 2014 में सार्वजनिक व अर्ध्द सार्वजनिक किया गया. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विषाल मिश्रा की युगलपीठ ने खंदारी जलाशय संबंधित चार याचिका की सुनवाई पृथक से किए जाने के आदेश जारी किए हैं. तालाब संबंधित अन्य याचिकाओं की सुनवाई 14 फरवरी को निर्धारित की गई है.
तालाब का अतिक्रमण: इस मामले में वर्ष 1997 में गढ़ा गौड़वाना संरक्षण समिति, नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्षक मंच सहित 13 याचिकाएं दायर की गई थी. हाई कोर्ट ने भी माढोताल तालाब के अतिक्रमण को संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के निर्देश दिए थे.याचिकाओं में खंदारी जलाशय सहित तालाबों के संरक्षण की राहत चाही गई थी. याचिका में कहा गया था कि, अतिक्रमण के कारण तालाब विलुप्त हो रहे हैं. जबलपुर के 37 तालाबों से सात विलुप्त हो गये हैं. दस जल तालाब व्यक्तिगत हैं. 20 तालाब के संरक्षण की जिम्मेदारी सरकार की है.
खंदारी जलाशय का संरक्षण: सरकार द्वारा सिर्फ 14 जलस्त्रोत के लिए राशि का आवंटन किया गया था. हाई कोर्ट ने साल सितम्बर 2014 में एस्पो को तालाब संरक्षण के लिए निर्देशित किया था. योजना के कार्यवाहन के लिए एस्पो को 6 माह का समय दिया गया था. कर्नल एके रामनाथन की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि खंदारी जलाशय से शहर में पानी की जल सप्लाई की जाती है. खंदारी जलाशय कई दशकों से शहर के लोगों की प्यास बुझा रहा है. भारत राजपत्र 1908, खंदारी झील का जलग्रहण क्षेत्र 13.597 वर्ग किमी. जो 3.360 एकड़ के लगभग है. हवाई अड्डा विस्तार सहित परियोजनाओं के लिए खंदारी जलाशय की 40.88 प्रतिशत जमीन आवंटित की गयी है. 59.12 क्षेत्र ही बचा है. इसके अलावा अन्य योजनाओं के तहत नगर निगम जमीन का आवंटन किया गया है, जो प्रारंभ नहीं हुई है. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि इन योजनाओं के लिए दूसरी जगह जमीन प्रदान की जाये के निर्देश जारी किये थे.
निर्माण कार्य पर रोक: पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने एस्पो व नीरी को अनावेदक बनाये जाने के आवेदन को स्वीकार करते हुए उन्हें नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. युगलपीठ ने डुमना विस्तारीकरण के लिए आवंटित जमीन में ही निर्माण जारी रखने के अलावा अन्य निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी. नीरी की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि डुमना क्षेत्र में प्रस्तावित स्पोटर्स सिटी निर्माण का जो दूसरा प्रस्ताव प्रस्तुत किया है, उसे खंदारी जलाशय के वॉटर कैचमेंट का एरिया आ रहा है. इसके अलावा ट्रिपल आईटी का क्षेत्र भी इस क्षेत्र में आता है. युगलपीठ ने सरकार को डुमान विमानतल के विस्तार के लिए तथा ट्रिपल आईटी को आंवटित की गयी भूमि के संबंध में विवरण पेष करने निर्देश दिए थे. युगलपीठ ने संज्ञान याचिका की सुनवाई करते हुए पूरे प्रदेश में जल स्त्रोत के संरक्षण के निर्देश जारी करते हुए स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए थे.
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सुनवाई के निर्देश: सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से भूमि आवंटन के संबंध में पेश की गई रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए युगलपीठ को बताया गया कि ट्रिपल आईटी को साल 2006 में 100 हेक्टेयर भूमि आवंटित की गई थी. इसमें से 47 हेक्टेयर वन भूमि थी. जिसका भूमि पद साल 2014 में परिवर्तित किया गया था. जिसके बाद युगलपीठ ने तालाब व खंदारी जलाशय से संबंधित याचिकाओं की पृथक-पृथक सुनवाई के निर्देश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पैरवी की.