प्रयागराज (शिफाली पांडे) : प्रयागराज में जारी महाकुंभ में पूरा देश एक डुबकी के लिए उमड़ पड़ा है. ये कैसी आस्था और विश्वास है? भारत का वो कौन सा आध्यात्म है, जो नदी को मां का दर्जा देता है. मशीनी हो चुकी जिंदगी में ठहरकर फिर लौटने की चाह भी है, जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से सैलानियों को गंगा के घाट पर पहुंचा रही है. मिडलैंड यूके के शॉन और शेरोन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से प्रयाग पहुंच रहे सैलानियों में से ही हैं.
भारत के अध्यात्म से सीखना चाहते हैं विदेशी
यूके से कुंभ में पहुंचे इनमें से एक ह्यूमन रिसोर्स की नौकरी में हैं तो दूसरे आईटी सेक्टर से. ये यात्रा उनकी उस भागती जिंदगी से ब्रेक भी है. एशावन कहती हैं "हम बहुत प्रेशर वाली नौकरी में हैं. इसलिए हमने महाकुंभ में आने का फैसला किया, जो भारत का सेंटर पाइंट है इन दिनों. हम अपने काम के तनाव से ब्रेक भी चाहते थे और फिर भारत के अध्यात्म से सीखना चाहते हैं कि कैसे मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति से निपटा जा सकता है."
आईटी के जॉब का तनाव, पॉज लेकर आए प्रयाग
प्रयागराज के महाकुंभ में अपार भीड़ के बीच ये चेहरे भी हैं. जिनके लिए संगम की डुबकी से लेकर सिर पर थैला गठरी लिए भागती भीड़ सब एक कौतुहल है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से प्रयागराज पहुंच रहे ये सैलानी ये समझने और देखने आए हैं कि ऐसा क्या है भारत के आध्यात्म में ? ये कैसी आस्था और विश्वास है कि जिसकी लगन में भूख-प्यास सब भूले भीड़ बने लोग डुबकी के लिए चले आ रहे हैं. शेरॉन और शान उन्ही सैलानियों में से हैं. दोनों अपने दो और दोस्तों के साथ यूके से यहां आए हैं. इन्होंने जब अपनी यात्रा प्लान की थी तो पहला और जरूरी स्टॉपेज प्रयागराज को ही रखा.
भारत का दौरा प्रयागराज से ही क्यों शुरू किया
शेरॉन बताती हैं "हमने तय कर लिया था कि भारत की हमारी यात्रा उस सेंटर से शुरू होगी, जहां पूरा भारत समा गया है. हम सबसे पहले प्रयाग जाएंगे. मैं स्प्रिचुअल ग्रोथ के लिए यहां आई हूं. मैं एचआर के जॉब में हूं. बहुत प्रेशर में रहती हूं. ये भी एक वजह थी उस प्रेशर से ब्रेक चाहिए था. फिर यहां से हम बहुत कुछ सीखकर जाएंगे. कैसे इस प्रेशर को डील किया जाए. कमोबेश यही जवाब शॉन का भी है. शॉन आईटी के जॉब में है. वे कहते हैं मैं बहुत ही प्रेशर में काम करता हूं. यहां आने के बाद बहुत रिलैक्स फील कर रहा हूं."
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भारत की पहली यात्रा ऐसे बन गई यादगार
शेरॉन और शॉन की ये भारत की पहली यात्रा है. शैरोन कहती है 'मैं पहली बार भारत आई हूं. कुंभ मेले का भी ये मेरा पहला मौका है. लेकिन ये मेरे लिए अद्भुत है. यहां की जो आध्यात्मिकता है, जो लोगों का अध्यात्म में विश्वास है और इसके उनका त्याग अद्भुत व अविश्सनीय है. मैं पहली बार भारत के इस कुंभ मेले में आई हूं. ये मेरा कुंभ मेले का पहला अनुभव है और मेरे लिए अद्वितीय अनुभव है. यहां की आध्यात्मिकता भी अद्भुत है. इस पर लोगों का इतना यकीन भी अद्भुत है."
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30 लाख विदेशियों की थी उम्मीद, आए इससे ज्यादा
महाकुंभ की शुरुआत के मौके पर 30 लाख विदेशियों के आने का अनुमान था. लेकिन माघी पूर्णिमा बीत जाने के बाद भी विदेश से सैलानियो के यहां पहुंचने का सिलसिला जारी है. यानि आंकड़ा 30 लाख के पार भी जा सकता है. ये पहली बार है कि महाकुंभ में एक साथ करीब 68 विदेशी नागरियों ने सनातन धर्म को धारण किया. इनमें सबसे ज्यादा 40 अमेरिका से थे. बाकी आस्ट्रेलया, फ्रांस, बेल्जियम, नार्वे, जापान, जर्मनी, इटली, आयरलैंड, कनाडा से भी लोग पहुंचे.