जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में खेल निदेशक की नियुक्ति के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने याचिका की सुनवाई के बाद पाया कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति में नियमों का पालन नहीं किया गया है. एकलपीठ ने नियुक्ति को निरस्त करने के आदेश जारी किए हैं. डॉ. रविंद्र कुमार यादव तथा डॉ. विशाल बन्ने ने याचिका दायर की थी. प्रदेश सरकार द्वारा मार्च 2019 में मॉडल साइंस कॉलेज में खेल अधिकारी के पद पर पदस्थ डॉ. रमेश प्रसाद शुक्ला को विश्विविद्यालय में खेल निदेशक के पद पर पदस्थ किया गया था.
दायर याचिका में दिए गए ये तर्क: दायर की गई याचिका में कहा गया था कि वह रानी दुर्गावती विश्विद्यालय में शारीरिक शिक्षा विभाग में प्रोफेसर व अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद पर पदस्थ है. याचिका में कहा गया था कि निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने के कारण उनकी नियुक्ति अवैध है. याचिका की सुनवाई के दौरान शासकीय अधिवक्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि तत्कानील उच्च शिक्षा मंत्री ने शैक्षणिक संवर्ग अंतर्गत स्थानांतरण प्रस्ताव लागू किया था. जिसके बाद संबंधित अधिकारियों के अनुमोदन के बाद डॉ. रमेश प्रसाद शुक्ला की नियुक्ति की गई है.
याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि मप्र विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 18 की सूची में खेल निर्देशक पद भी शामिल है. जिनकी नियुक्ति धारा 49, 2 के तहत कुलपति द्वारा गठित कमेटी का करना है. विधान 20 के तहत शासकीय महाविद्यालय में पदस्थ कर्मचारियों का स्थानांतरण विश्वविद्यालय में कर सकता है परंतु धारा 18 में जिन पदों को रखा गया है, उसमें सीधे तौर पर नियुक्ति नहीं कर सकते है. सुनवाई के बाद एकलपीठ ने नियुक्ति को अवैध मानते हुए उसे निरस्त करने के आदेश दिए.
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नहीं होगा अतिरिक्त प्रभार: प्रदेश के शासकीय मेडिकल कॉलेज में अधीक्षक को अतिरिक्त प्रभार देने को लेकर कोर्ट ने सरकार को 2 हप्तों का समय दिया है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा ने अधीक्षक पद पर स्वतंत्र नियुक्ति के लिए सरकार को दो सप्ताह की मोहलत प्रदान की है. नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि प्रदेश के शासकीय मेडिकल कॉलेज में पदस्थ अधीक्षकों को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. अतिरिक्त कार्य होने के कारण अधीक्षक अपना पूरा समय अस्पताल की व्यवस्थाओं को नहीं दे पाते है. जिसके कारण शासकीय अस्पतालों की स्वास्थ्य व्यवस्थों पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है. याचिका पर पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया था कि शीघ्र ही मेडिकल अस्पतालों में अधीक्षक पद पर स्वतंत्र नियुक्तियां कर दी जायेगी. याचिका की सुनवाई के बाद सरकार के आग्रह पर युगलपीठ ने दो सप्ताह का समय प्रदान किया है.