जबलपुर। हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि पति पर बहन व अन्य महिलों से अवैध संबंध का झूठ आरोप लगाना मानिसक क्रूरता की श्रेणी में आता है. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की युगलपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित न्यायिक पृथक्करण के आदेश को खारिज करते हुए तलाक की डिग्री पारित करने के आदेश जारी किये हैं. युगलपीठ ने पत्नी द्वारा दायर वैवाहिक संबंध पुनर्स्थापित करने के आवेदन को खारिज कर दिया है.
फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती : भोपाल निवासी अभिषेक परासर की तरफ से दायर अपील में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित न्यायिक पृथक्करण के आदेश को चुनौती दी गयी थी. पत्नी नेहा परासर द्वारा फैमिली कोर्ट द्वारा वैवाहिक संबंध पुनः स्थापित के आवेदन को खारिज किये जाने को चुनौती दी गयी थी. दोनों आवेदन की सुनवाई युगलपीठ द्वारा संयुक्त रूप की गयी. युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि दोनों साल 2014 से अलग हैं. दोनों के बीच पिछले आठ सालों से कोई संबंध नहीं हैं. फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में पाया है कि पति के खिलाफ पत्नी ने बेंगलूरु में प्रकरण दर्ज करवाया था.
सगी बहन के साथ संबंध का आरोप : इसके अलावा पत्नी ने किसी एक अन्य महिला व सगी बहन के साथ अवैध संबंध के आरोपी भी लगाये हैं. इसके अलावा पति के नपुंसक होने तथा पति और उनके परिवार द्वारा दहेज की मांग और क्रूरता करने के आरोप भी लगाये हैं. पति ने फैमिली कोटे में तलाक के लिए आवेदन दायर किया था. फैमिली कोर्ट ने पत्नी के आवेदन को खारिज कर दिया था और न्यायिक पृथक्करण के आदेश जारी किये थे.
पुनर्मिलन की संभावना नहीं : युगलपीठ ने अपने आदेश में पाया कि दोनों के बीच पुनर्मिलन की संभावना नहीं है. इसके साथ ही बहन तथा अन्य महिला के साथ अवैध संबंध के आरोप को मानसिक क्रूरता मानते हुए युगलपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए तलाक की डिग्री पारित करने के आदेश जारी किये हैं. युगलपीठ ने भारण-भोषण के संबंध में आदेश पारित नहीं करते हुए इसके लिए पृथक से आवेदन प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता महिला को प्रदान की है.