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हाईकोर्ट ने अवैध हिरासत और स्टेट मेंटल हैल्थ अथाॅरिटी के गठन के मामले में की सुनवाई - Madhya Pradesh High Court

हाईकोर्ट में दर्ज दो मामलों में सुनवाई हुई, इसमें एक इललीगल कस्टडी और दूसरा स्टेट मेंटल हैल्थ अथाॅरिटी के गठन संबंधित था.

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Published : Oct 16, 2020, 8:01 PM IST

जबलपुर। एक अवैध हिरासत में टीआई के खिलाफ मानव अधिकार आयोग की अनुशंसा पर की गई कार्रवाई के बाद दूसरी चार्जशीट जारी किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जस्टिस सुजय पाल की एकलपीठ ने मामले का निराकरण करते हुए आवेदक को स्वतंत्रता दी है कि वे अपनी आपत्ति संबंधित प्राधिकारी के समक्ष उठाये, जिस पर वह उचित निर्णय लेंगे, इसके बाद ही मामले में जांच अधिकारी की नियुक्ति होगी.

ये मामला वर्तमान में छिंदवाड़ा में पदस्थ एसएचओ कोमल दियावर की ओर से दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि निरीक्षक पद पर रहते हुए उनके खिलाफ शिकायत की गई थी कि उन्होंने एक व्यक्ति को दो दिन तक अवैध रूप से हिरासत मेंं रखा और उसके साथ मारपीट की. मामले की शिकायत पर मानव अधिकार आयोग की अनुशंसा पर उनके खिलाफ विभागीय जांच हुई और उन्हें बतौर सजा एक वेतन वृद्धि रोकने के निर्देश दिए.

मानव अधिकार आयोग ने दूसरा पत्र जारी किया कि सिर्फ अवैध हिरासत के तहत ही उनके खिलाफ कार्रवाई की, मारपीट के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई और जिस पर उन्हें दोबारा चार्जशीट जारी कर दी गई, इस घटना के बाद हाईकोर्ट की शरण ली गई है. आवेदक की ओर से कहा गया कि एक ही मामले में दो चार्जशीट देना अवैधानिक है. वहीं शासन की ओर से कहा गया कि भले ही मामला एक है, लेकिन अवैध कस्टडी के मामले में कार्रवाई तो हुई, लेकिन मारपीट के मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. इतना ही नहीं सक्षम अथॉरिटी के समक्ष आपत्ति दर्ज कराने की बजाए मामले में सीधे हाईकोर्ट का रुख कर लिया गया. सुनवाई के बाद न्यायालय ने मामले का निराकरण करते हुए उक्त निर्देश दिये. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डीके त्रिपाठी व शासन की ओर से अधिवक्ता जसनीत सिंह होरा ने पक्ष रखा.

स्टेट मेंटल हैल्थ अथाॅरिटी पर हाईकोर्ट का आदेश

स्टेट मेंटल हैल्थ अथाॅरिटी के गठन के संबंध में सरकार द्वारा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है. अथाॅरिटी के गठन के अलावा एक्ट के अन्य प्रावधानों के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किये गये थे. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पाॅल और जस्टिस अंजली पालो की युगलपीठ ने प्रावधानों के संबंध में जवाब पेश करने के लिए एक हफ्ते की मोहलत दी गई है.

मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रपति की मंजूरी 7 अप्रैल 2017 को मिलने के बाद प्रत्येक राज्य में उक्त अथॉरिटी का गठन 9 माह में होना था, लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ जो अवैधानिक है. याचिका में जबलपुर स्थित डुमना में मिली एक विक्षिप्त महिला को उपचार के लिए ग्वालियर भेजे जाने के घटना का भी उल्लेख किया गया था. पिछली सुनवाई के दौरान सरकार के तरफ से बताया गया था कि स्टेट मेंटल हैल्थ अथॉरिटी के गठन तथा उसके नियम के संबंध में सरकार द्वारा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है.

युगलपीठ को बताया गया कि एक्ट के अनुसार मानसिक स्वास्थ समीक्षा बोर्ड को गठन भी किया जाना है. इसके लिए प्रशिक्षित स्टाॅफ के अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरत है याचिका पर शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी किए. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य अधिकारी व अधिवक्ता सत्यम अग्रवाल मौजूद रहे.

जबलपुर। एक अवैध हिरासत में टीआई के खिलाफ मानव अधिकार आयोग की अनुशंसा पर की गई कार्रवाई के बाद दूसरी चार्जशीट जारी किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जस्टिस सुजय पाल की एकलपीठ ने मामले का निराकरण करते हुए आवेदक को स्वतंत्रता दी है कि वे अपनी आपत्ति संबंधित प्राधिकारी के समक्ष उठाये, जिस पर वह उचित निर्णय लेंगे, इसके बाद ही मामले में जांच अधिकारी की नियुक्ति होगी.

ये मामला वर्तमान में छिंदवाड़ा में पदस्थ एसएचओ कोमल दियावर की ओर से दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि निरीक्षक पद पर रहते हुए उनके खिलाफ शिकायत की गई थी कि उन्होंने एक व्यक्ति को दो दिन तक अवैध रूप से हिरासत मेंं रखा और उसके साथ मारपीट की. मामले की शिकायत पर मानव अधिकार आयोग की अनुशंसा पर उनके खिलाफ विभागीय जांच हुई और उन्हें बतौर सजा एक वेतन वृद्धि रोकने के निर्देश दिए.

मानव अधिकार आयोग ने दूसरा पत्र जारी किया कि सिर्फ अवैध हिरासत के तहत ही उनके खिलाफ कार्रवाई की, मारपीट के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई और जिस पर उन्हें दोबारा चार्जशीट जारी कर दी गई, इस घटना के बाद हाईकोर्ट की शरण ली गई है. आवेदक की ओर से कहा गया कि एक ही मामले में दो चार्जशीट देना अवैधानिक है. वहीं शासन की ओर से कहा गया कि भले ही मामला एक है, लेकिन अवैध कस्टडी के मामले में कार्रवाई तो हुई, लेकिन मारपीट के मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. इतना ही नहीं सक्षम अथॉरिटी के समक्ष आपत्ति दर्ज कराने की बजाए मामले में सीधे हाईकोर्ट का रुख कर लिया गया. सुनवाई के बाद न्यायालय ने मामले का निराकरण करते हुए उक्त निर्देश दिये. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डीके त्रिपाठी व शासन की ओर से अधिवक्ता जसनीत सिंह होरा ने पक्ष रखा.

स्टेट मेंटल हैल्थ अथाॅरिटी पर हाईकोर्ट का आदेश

स्टेट मेंटल हैल्थ अथाॅरिटी के गठन के संबंध में सरकार द्वारा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है. अथाॅरिटी के गठन के अलावा एक्ट के अन्य प्रावधानों के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किये गये थे. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पाॅल और जस्टिस अंजली पालो की युगलपीठ ने प्रावधानों के संबंध में जवाब पेश करने के लिए एक हफ्ते की मोहलत दी गई है.

मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रपति की मंजूरी 7 अप्रैल 2017 को मिलने के बाद प्रत्येक राज्य में उक्त अथॉरिटी का गठन 9 माह में होना था, लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ जो अवैधानिक है. याचिका में जबलपुर स्थित डुमना में मिली एक विक्षिप्त महिला को उपचार के लिए ग्वालियर भेजे जाने के घटना का भी उल्लेख किया गया था. पिछली सुनवाई के दौरान सरकार के तरफ से बताया गया था कि स्टेट मेंटल हैल्थ अथॉरिटी के गठन तथा उसके नियम के संबंध में सरकार द्वारा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है.

युगलपीठ को बताया गया कि एक्ट के अनुसार मानसिक स्वास्थ समीक्षा बोर्ड को गठन भी किया जाना है. इसके लिए प्रशिक्षित स्टाॅफ के अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरत है याचिका पर शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी किए. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य अधिकारी व अधिवक्ता सत्यम अग्रवाल मौजूद रहे.

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