जबलपुर। जिल में आज अमलकी एकादशी के मौके पर जबलपुर के बड़ा फुहारा इलाके में एक अनोखा आयोजन किया गया. यहां हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एसएस झा और शरद अग्रवाल ने भगवान धन्वंतरी की पूजा की. उन्हें 56 प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं का भोग लगाया. जस्टिस एसएस झा ने बताया भगवान धन्वंतरी हर काल में प्रासंगिक रहे हैं. न्होंने ही हमें औषधियां दी और औषधियों को इस्तेमाल करने का ज्ञान दिया है.
छप्पन प्रकार की दवाओं का भोग: जस्टिस एसएस झा का कहना है की सामान्य आदमी जो पूजा करता है, वह एक किस्म की अंधभक्ति है. केवल आंख बंद करके और अगरबत्ती घुमाने से पूजा नहीं होती, बल्कि लोगों को धर्म ग्रंथों का ज्ञान भी अर्जित करना चाहिए. जस्टिस झा ने कहा कि भगवान धन्वंतरी हर काल में प्रासंगिक रहे हैं. उन्होंने ही हमें औषधियां दी और औषधियों को इस्तेमाल करने का ज्ञान दिया, लेकिन लोग देवताओं की केवल पूजा करते हैं. उनके बारे में अध्ययन नहीं करते, इसलिए ज्ञान का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है. आयुर्वेद में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. इसीलिए हमने यह विशेष आयोजन रखा था. जिसमें शुक्रवार को एकादशी के दिन भगवान धन्वंतरी को आयुर्वेदिक औषधियों का भोग लगाया. शाम में इन्हें जरूरतमंद मरीजों को बांट दिया गया. इसके लिए एक आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी मरीजों की जांच करेंगे और उन्हें दवाएं बाटेंगे. आमलकी एकादशी को मनाने का यह एक नया तरीका था.
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आमलकी एकादशी: सामान्य तौर पर अमलकी एकादशी मनाने के लिए आंवले की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत भी रखती हैं. आंवले के वृक्ष को भगवान मानकर उसकी पूजा की जाती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा के जन्म के साथ ही भगवान विष्णु ने आंवले को भी जन्म दिया था. आंवले में कायाकल्प की शक्ति होती है. आयुर्वेद कि कई दबाव में आंवले के इस्तेमाल के बारे में वर्णन दिया गया है. वहीं धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान धन्वंतरी धनधान्य के साथ ही औषधियों के देवता हैं. इसलिए आज के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर दिन का कोई ना कोई विशेष महत्व है, लेकिन लोग धर्म की बातों पर सवाल खड़े नहीं करते और तर्क वितर्क करने से बचते हैं. इसीलिए कई धार्मिक आयोजनों का स्वरूप बदल जाता है. उनका सही इस्तेमाल नहीं हो पाता. तुलसी, पीपल, बेलपत्र, आंवला जैसे पेड़ पौधों की पूजा केवल इसलिए नहीं की जाती किस में देवताओं का वास है बल्कि इनके आयुर्वेदिक लक्षणों की वजह से भी की जाती है. अब इनका आयुर्वेदिक उपयोग कम और धार्मिक उपयोग ज्यादा हो रहा है.