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जबलपुरः कन्नी चलाने वाले हाथों ने दिखाया कमाल, राज मिस्त्री से बना आईएएस ऑफिसर

जबलपुर के सुमित विश्वकर्मा कि यूपीएससी में 53वीं रैंक लगी है. बीई पास कर चुके सुमित को परीक्षा की तैयारियों के लिए पिता के साथ राज मिस्त्री का काम करना पड़ा था. उसने अपने बुलंद हौंसले के दम पर ही ये कामयाबी हासिल की है.

राज मिस्त्री बना आईएएस अफसर
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Published : Apr 7, 2019, 2:55 PM IST

जबलपुर। अगर हौंसले बुलंद हों तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता है. जबलपुर का एक राज मिस्त्री अपने बुलंद हौंसलों के दम पर आईएएस अफसर बन गया है. हम बात कर रहे हैं जबलपुर के सुमित कुमार विश्वकर्मा की जिसने यूपीएससी परीक्षा में 53 वीं रैंक हासिल की है.

राज मिस्त्री बना आईएएस अफसर

हिंदी मीडियम से स्कूली पढ़ाई करने वाले सुमित ने इंग्लिश मीडियम से बीई की. वो इंजीनीयर बने और नौकरी भी की. लेकिन कुछ परेशानियों के चलते वो नौकरी पर जा नहीं सके, जिसके बाद कंपनी ने उन्हें टरमीनेशन लेटर थमा दिया. फिर क्या था सुमित ने सरकारी अफसर बनने की ठानी और यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे, तो उसने अपने पिता के साथ मजदूरी शुरू कर दी.

कन्नी चलाने से उसे जो पैसे मिले उसी से अपने लिए किताबे खरीदी और यूपीएससी की तैयारी की. फिर क्या था सुमित की मेहनत रंग लाई और उसने 53 वीं रैंक हासिल कर ली. सुमित ग्रामीणों के लिए कुख करना चाहते हैं, सरकार की नीतियों में बदलाव लाना चाहते हैं. सुमित कहते हैं चाहे कितनी भी असफलता मिले एक दिन सफलती मिल ही जाती है इसलिए हमें हमेशा प्रोत्साहित रहना चाहिए.

जबलपुर। अगर हौंसले बुलंद हों तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता है. जबलपुर का एक राज मिस्त्री अपने बुलंद हौंसलों के दम पर आईएएस अफसर बन गया है. हम बात कर रहे हैं जबलपुर के सुमित कुमार विश्वकर्मा की जिसने यूपीएससी परीक्षा में 53 वीं रैंक हासिल की है.

राज मिस्त्री बना आईएएस अफसर

हिंदी मीडियम से स्कूली पढ़ाई करने वाले सुमित ने इंग्लिश मीडियम से बीई की. वो इंजीनीयर बने और नौकरी भी की. लेकिन कुछ परेशानियों के चलते वो नौकरी पर जा नहीं सके, जिसके बाद कंपनी ने उन्हें टरमीनेशन लेटर थमा दिया. फिर क्या था सुमित ने सरकारी अफसर बनने की ठानी और यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे, तो उसने अपने पिता के साथ मजदूरी शुरू कर दी.

कन्नी चलाने से उसे जो पैसे मिले उसी से अपने लिए किताबे खरीदी और यूपीएससी की तैयारी की. फिर क्या था सुमित की मेहनत रंग लाई और उसने 53 वीं रैंक हासिल कर ली. सुमित ग्रामीणों के लिए कुख करना चाहते हैं, सरकार की नीतियों में बदलाव लाना चाहते हैं. सुमित कहते हैं चाहे कितनी भी असफलता मिले एक दिन सफलती मिल ही जाती है इसलिए हमें हमेशा प्रोत्साहित रहना चाहिए.

Intro:कन्नी चलाने वाला मिस्त्री बना आईएएस जबलपुर सुमित कुमार विश्वकर्मा ने यूपीएससी मैं 53 वी रैंक हासिल की सुमित के पिता भी हैं मिस्त्री


Body:जबलपुर भारत का सबसे कठिन और सब से महत्वाकांक्षी परीक्षा यूपीएससी मैं जबलपुर के सुमित विश्वकर्मा ने 53 वी रैंक हासिल की है

कन्नी चलाने वाले हाथों ने जब कलम पकड़ी तो कमाल कर दिया

राजमिस्त्री का बेटा बना आईएएस
सुमित कुमार विश्वकर्मा की सफलता की कहानी स्लमडॉग मिलेनियर जैसी है सुमित कुमार विश्वकर्मा सिवनी के घंसौर इलाके के एक छोटे से पिछड़े हुए गांव में रहते थे वहीं पर इनकी प्राथमिक शिक्षा हुई गांव में पीने तक का पानी नहीं है कोई रोजगार नहीं था इसलिए सुमित के पिता जबलपुर आ गए जबलपुर में वे मिस्त्री गिरी का काम करने लगे

सरकारी स्कूल और हिंदी मीडियम से की पढ़ाई
सुमित की स्कूली शिक्षा सरकारी स्कूल में और हिंदी माध्यम से हुई सुमित कहीं टॉपर नहीं था एक सामान्य श्रेणी का विद्यार्थी था लेकिन इसके बाद भी सुमित ने जबलपुर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की सुमित का कैंपस सिलेक्शन हुआ और सुमित को गुजरात में एक कंपनी में काम मिला लेकिन पारिवारिक वजह से सुमित नौकरी आगे नहीं कर पाए

बीते 9 सालों से सुमित खुद कर रहा है राजमिस्त्री का काम
इसके बाद सुमित ने ठान लिया था कि अब वह सरकारी नौकरी करेगा और सरकार में भी सबसे अब्बल दर्जे की नौकरी लिहाजा यूपीएससी की तैयारी शुरू की गई जबलपुर में ठेकेदार के घर में सुमित रहते हैं पिता मिस्त्री थे इसलिए सुमित भी उसी काम में लग गए और ईटों को जोड़ने और घर बनाने का काम करते हुए सुमित रोज कम से कम 6 घंटे की पढ़ाई करता था

यूपीएससी के लिए कोई कोचिंग नहीं ली
सुमित का कहना है कि उसने इंग्लिश सीखने के लिए जरूर ट्यूशन ली थी लेकिन आईएएस की परीक्षा के लिए कोई ट्यूशन नहीं ली पूरी पढ़ाई अपने दम पर और अपने भाई के मार्गदर्शन में की सुमित को यूपीएससी की मुख्य परीक्षा में 900 नंबर मिले थे परीक्षा देने के तुरंत बाद सुमित दोबारा अपने काम मतलब घरों की ईंटों की जुड़ाई में लग गया थ इंटरव्यू के दौरान भी सामान्य तौर पर 45 मिनट का जो इंटरव्यू होता है यूपीएससी के बोर्ड ने सुमित से लगभग 1 घंटे पूछताछ की क्योंकि ज्यादातर सवाल व्यक्तिगत थे लेकिन सुमित ने सभी सवालों का सही ढंग से जवाब दिया और जब नतीजा आया तो वह चौंकाने वाला था यूपीएससी में 53 वी रैंक पर सुमित का सिलेक्शन हुआ है यूपीएससी की 53 वीं रैंक का मतलब होता है कि सुमित अब आईएस हो गया है सुमित कहता है की मजदूरी करना कोई बुरी बात नहीं है बल्कि मजदूरी करने में तुरंत पैसा मिलता है और इस पैसे का इस्तेमाल उसने पुस्तके खरीदने फीस भरने और खुद का पेट भरने के लिए किया

कमलनाथ सरकार की ₹4000 की नीति ठीक नहीं
सुमित का कहना है कि सरकार बच्चों को ₹4000 महीना जो भत्ता रही है वह कम है इतने कम पैसे में पढ़ाई करने वाला पढ़ाई के लिए समय नहीं निकाल सकता इसलिए सरकार को इस नीति को बदल ना चाहिए यदि उसे मौका मिला तो वह इस नीति को बदलवाने की कोशिश करेगा

ग्रामीण जीवन में सुधार पहली प्राथमिकता
वहीं आईएएस बनने के बाद जब कोई बड़ी जिम्मेदारी सुमित को मिलेगी तो उसका कहना है कि उसकी पहली प्राथमिकता ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने की होगी क्योंकि वह जिस गांव से आता है वहां पर पानी जैसी बुनियादी सुविधा नहीं है रोजगार और बेहतर जिंदगी की तो बात दूर है सुमित जबलपुर में ठेकेदार के किराए के घर में रह रहा था सुमित की सफलता से ना सिर्फ सुमित का परिवार बल्कि समाज के सबसे निचले दर्जे के मजदूरों में भी खुशी है


Conclusion:यूपीएससी की परीक्षा किसी एक बच्चे के भविष्य की नहीं बल्कि पूरे देश का भविष्य होती है और यदि आम आदमी की तकलीफ जानने वाले लोग प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं तो हम उम्मीद कर सकते हैं कि जब यह प्रशासन में आएंगे तो आम आदमी का जीवन स्तर कुछ तो सुधरेगा
121 सुमित कुमार विश्वकर्मा
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