जबलपुर। आपने सुना होगा की 'दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है', कुछ ऐसा ही हाल जबलपुर पुलिस का हुआ. NSUI ने मंगलवार को जबलपुर पुलिस को ज्ञापन देने की सूचना दी थी. पिछली बार एनएसयूआई के ज्ञापन के दौरान जमकर लाठीचार्ज हुआ था, इसलिए पुलिस ने भारी-भरकम इंतजाम किया लेकिन NSUI के मात्र 7 कार्यकर्ता पहुंचे और वह भी पुलिस की मार के डर से खुद को प्रोटेक्ट करके आए थे.
खोदा पहाड़ निकली चूहिया: जबलपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में एक नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला. यहां जबलपुर के 7 थानों की पुलिस अपने अधिकारियों के साथ मौजूद थी. 100 से ज्यादा पुलिस का बल यहां वज्र और वाटर कैनन के साथ तैनात था. दरअसल एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने एसपी ऑफिस में ज्ञापन देने के लिए सूचना दी थी. इसी के चलते जबलपुर पुलिस को इस बात का अंदाजा था कि कहीं एनएसयूआई पुलिस अधीक्षक कार्यालय में हंगामा न मचा दे.
मात्र 7 कार्यकर्ता पहुंचे: लेकिन हुआ ठीक उल्टा एनएसयूआई के मात्र 7 कार्यकर्ता ज्ञापन देने के लिए पहुंचे और यह कार्यकर्ता भी कम नाट्य नहीं थे. इन्होंने भी क्रिकेट की पूरी किट पहन रखी थी और सिर पर हेलमेट था. लगभग 10 दिन पहले जबलपुर में एनएसयूआई ने जबलपुर कलेक्टरेट के घेराव को लेकर एक आंदोलन किया था. कार्यकर्ताओं की मांग थी कि मध्य प्रदेश कि भाजपा सरकार युवाओं के साथ धोखाधड़ी कर रही है और बेरोजगारों को ठगा जा रहा है एनएसयूआई ने इस मौके पर पटवारी भर्ती व्यापम घोटाला जैसे मुद्दों को उठाया था.
NSUI के अध्यक्ष की बर्बर पिटाई: इस दौरान जबलपुर एनएसयूआई के अध्यक्ष सचिन रजक को पुलिस ने बर्बर तरीके से पीटा था. सचिन रजक का आरोप है कि ''उसे टारगेट बनाकर जबलपुर कोतवाली के तत्कालीन थाना प्रभारी अनिल गुप्ता ने पहले उन्हें जमीन पर पटका और उसके बाद उन पर लाठियों की बारिश की.'' मंगलवार को एनएसयूआई के कार्यकर्ता अनिल गुप्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की मांग को लेकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे थे.
व्यक्तिगत होता जा रहा आंदोलन: सचिन रजक का कहना है कि ''उन्हें जिस तरीके से पीटा गया था वह कोई लोकतांत्रिक तरीका नहीं था बल्कि अनिल गुप्ता ने उन्हें व्यक्तिगत विरोध के चलते मारा था.'' इस मामले में पुलिस ने एनएसयूआई के खिलाफ कई गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की है. एनएसयूआई का आंदोलन जनहित में शुरू हुआ था और सभी को उम्मीद थी कि इसमें बेरोजगार युवाओं से जुड़ी हुई बातें उठाई जाएंगी. लेकिन धीरे-धीरे यह आंदोलन व्यक्तिगत होता जा रहा है. या तो इसको पुलिस ने और प्रशासन ने जानबूझकर व्यक्तिगत कर दिया है ताकि जनहित के मुद्दों की जगह व्यक्तिगत मुद्दे उठाए जाएं.