जबलपुर. शहर के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे कीड़े की खोज की है, जो तालाबों में फैले जलकुंभी को पूरी तरह से नाश कर देता है. इसके सफल प्रयोग जबलपुर, कटनी बिहार, और सारणी के तालाब में किया जा चुके हैं. वैज्ञानिकों का कहना है- यदि इस कीड़े का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाए, तो जलकुंभी को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है.
अंग्रेज महिला लाई थी पहली बार भारत में जलकुंभी का पौधा: भारत में सबसे पहले एक अंग्रेज महिला जलकुंभी के पौधे को विदेश से कोलकाता में लेकर आई थी. आज जलकुंभी ने भारत के कई बड़े तालाबों को अपनी चपेट में ले लिया है. अब यह सजावटी पौधा बड़ी समस्या बन गया है. बीते दिनों मध्य प्रदेश के सारणी विद्युत ताप गृह के हजारों एकड़ में फैले हुए तालाब में इस जलकुंभी ने एक आवरण ओढ़ लिया था.
इसकी वजह से तालाब का पानी प्रदूषित हो रहा था. इसके इस्तेमाल में समस्या हो रही थी. इसी के निदान के लिए विद्युत ताप के रहने जबलपुर के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय से मदद मांगी. खरपतवार अनुसंधान निदेशालय ने सारणी के इस तालाब में नियोकेटीना बुर्की नाम के एक कीट को छोड़ा था. इस कीड़े ने सारणी के पावर प्लांट के तालाब की जलकुंभी को लगभग 10 महीने में पूरी तरह से खत्म कर दिया है.
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कैसे जलकुंभी को नष्ट करता है ये कीड़ा: जबलपुर वैज्ञानिक खरपतवार अनुसंधान निदेशालय पीके सिंह प्रधान की मानें, तो बीवल जलकुंभी के अंदर घुस जाता है और अपने भोजन के लिए उसे खाने लगता है. इसकी वजह से जलकुंभी का पौधा पूरी तरह से खराब हो जाता है. साथ ही इसकी ग्रोथ रुक जाती है.
जलकुंभी का विस्तार बहुत तेजी से होता है. इसके एक पौधे में 5000 से ज्यादा फल होते हैं. वहीं फलों के अलावा यह वेजिटेटिव तरीके से भी फैलता है. इसे नष्ट करना आसान नहीं है. नियोकेटीना बुर्की बहुत ही सफल कीड़ा है. इसने न केवल सारणी के विद्युत ताप गृह के तालाब को जलकुंभी से मुक्त करवाया है, बल्कि बिहार में एक 400 एकड़ की तालाब से भी जलकुंभी को खत्म किया है. जबलपुर और कटनी के पास के कई तालाबों को जलकुंभी रहित किया है.
पानी में जहर नहीं डाला जा सकता: ऐसा नहीं है कि जलकुंभी को नष्ट करने के लिए केवल कीड़े का ही प्रयोग किया जाए, बल्कि कई रसायन भी इसे खत्म करने के लिए इस्तेमाल में लिए जाते हैं. इन रसायनों का उपयोग पानी में नहीं किया जा सकता, क्योंकि भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी तालाब में जहर नहीं डाला जा सकता. इसलिए, जलकुंभी पर रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता.