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राइट टू स्पीडी जस्टिस भी पक्षकारों का अधिकार, जबलपुर हाईकोर्ट में दायर याचिकाएं खारिज - जबलपुर हाईकोर्ट में याचिकाएं

प्रशासनिक व्यवस्था के तहत जिला न्यायालय को निर्धारित समय अवधि में 25 प्रकरणों का निराकरण किया जाने के संबंध में जबलपुर हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी गई. इस बारे में हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया.

Right to speedy justice is also right of parties
राइट टू स्पीडी जस्टिस भी है पक्षकारों का अधिका
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 21, 2023, 11:03 AM IST

जबलपुर। हाई कोर्ट की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रशासनिक तौर पर न्यायालयों को प्रकरणों के निराकरण संबंधित आदेश पारित किये जा सकते हैं. ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन तथा अन्य की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने समस्त जिला न्यायालय को तीन परिपत्र जारी किये थे. इसमें निर्धारित समय-सीमा में 25 प्रकरणों का निराकरण करने निर्देश जारी किये थे.

याचिका में ये तर्क दिया : याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि आपराधिक प्रकरणों को भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में विहित नहीं किया गया है. सर्वोच्च न्यायालय तथा हाईकोर्ट प्रशासनिक तौर पर इस तरफ के आदेश जारी नहीं कर सकते हैं. उक्त आदेश के कारण पक्षकारों को बचाव का मौका नहीं मिल रहा है. अधिवक्ता भी अपने पक्षकार का समुचित बचाव नहीं सक रहे हैं. जो संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

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सीमा निर्धारित करने का अधिकार किसे : ये भी कहा गया कि प्रकरणों के निराकरण के लिए समय सीमा निर्धारित करने का अधिकार सिर्फ संसद को है. युगलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि प्रशासनिक तौर पर प्रकरणों के निराकरण के संबंध में आदेश पारित किये जा सकते हैं. पक्षकारों के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका टर्च की होती है. पक्षकारों का राइट टू स्पीडी जस्टिस भी मौलिक अधिकार है.

जबलपुर। हाई कोर्ट की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रशासनिक तौर पर न्यायालयों को प्रकरणों के निराकरण संबंधित आदेश पारित किये जा सकते हैं. ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन तथा अन्य की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने समस्त जिला न्यायालय को तीन परिपत्र जारी किये थे. इसमें निर्धारित समय-सीमा में 25 प्रकरणों का निराकरण करने निर्देश जारी किये थे.

याचिका में ये तर्क दिया : याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि आपराधिक प्रकरणों को भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में विहित नहीं किया गया है. सर्वोच्च न्यायालय तथा हाईकोर्ट प्रशासनिक तौर पर इस तरफ के आदेश जारी नहीं कर सकते हैं. उक्त आदेश के कारण पक्षकारों को बचाव का मौका नहीं मिल रहा है. अधिवक्ता भी अपने पक्षकार का समुचित बचाव नहीं सक रहे हैं. जो संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

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सीमा निर्धारित करने का अधिकार किसे : ये भी कहा गया कि प्रकरणों के निराकरण के लिए समय सीमा निर्धारित करने का अधिकार सिर्फ संसद को है. युगलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि प्रशासनिक तौर पर प्रकरणों के निराकरण के संबंध में आदेश पारित किये जा सकते हैं. पक्षकारों के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका टर्च की होती है. पक्षकारों का राइट टू स्पीडी जस्टिस भी मौलिक अधिकार है.

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