जबलपुर। चुनाव में मौजूदा सरकार से 'एंटी इनकंबेंसी' का फैक्टर हमेशा काम करता है, कभी गम तो कभी ज्यादा. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि ''इस बार मौजूदा सरकार से जनता का मोहभंग ज्यादा काम करेगा और जनता बदलाव चाह रही है.'' हालांकि भारतीय जनता पार्टी ऐसा नहीं मानती. कांग्रेसियों का मानना है कि ''भारतीय जनता पार्टी की ज्यादा सक्रियता बता रही है कि उनके लिए आने वाला चुनाव सरल नहीं है. इसलिए वे ज्यादा एक्सरसाइज कर रहे हैं.'' भाजपा का कहना है कि ''वे हमेशा ही तैयारी करते रहते हैं.''
वादों पर खरीद नहीं उतरी शिवराज सरकार: मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद विवेक तंखा ने आने वाले विधानसभा चुनाव के बारे में बताते हुए कहा कि ''मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ 'एंटी इनकंबेंसी फैक्टर' काम करेगा. क्योंकि शिवराज सरकार अपने वादों पर खरीद नहीं उतरी. मध्यप्रदेश में रोजगार स्वास्थ्य शिक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों पर आम जनता परेशान हैं. आदिवासियों के ऊपर अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं. इसलिए भारतीय जनता पार्टी को anti-incumbency का डर सता रहा है. इसलिए भारतीय जनता पार्टी को ज्यादा मीटिंग आंदोलन और यात्राएं करनी पड़ रही हैं.''
भाजपा से उठा जनता का भरोसा: विवेक तंखा का कहना है कि ''कांग्रेस को इसकी बहुत जरूरत नहीं है क्योंकि जनता का भरोसा भारतीय जनता पार्टी से उठ गया है.'' वही, विवेक तंखा ने कहा कि ''पटवारी भर्ती परीक्षा में घोटाला आग में घी का काम कर रहा है और यह व्यापम का ही दूसरा पार्ट है. इसलिए अगली बार बीजेपी सरकार में आएगी ऐसी संभावना कम हैं.''
भाजपा का जवाब: जबलपुर के पूर्व महापौर और वर्तमान में जबलपुर नगर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रभात साहू का कहना है कि ''कांग्रेस नेता कुछ भी कहें लेकिन anti-incumbency उन्हें बिल्कुल भी नजर नहीं आ रही. जनता भाजपा की नीतियों का समर्थन कर रही है. जहां तक ज्यादा मीटिंग ज्यादा आंदोलन और सक्रियता की बात है तो भारतीय जनता पार्टी कभी शांत नहीं बैठती और हमेशा ही अपने कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं को सक्रिय रुप से जोड़े रखती है. इसलिए इसे कांग्रेसी नहीं समझ सकते. क्योंकि कांग्रेसी केवल चुनाव के समय सक्रिय होते हैं.'' प्रभात साहू का कहना है कि ''पटवारी भर्ती का मामला चुनाव पर बहुत प्रभाव नहीं डालेगा.''
भाजपा पार्टी का संगठन कमजोर: हालांकि भारतीय जनता पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है. पार्टी का संगठन कमजोर नजर आ रहा है. नेताओं को एक लाए में लाने के लिए अमित शाह को बार-बार मध्यप्रदेश आना पड़ रहा है. शिवराज सिंह चौहान का कुर्सी का मोह खत्म नहीं हो रहा है और उनके ही कद के दूसरे नेता मुख्यमंत्री के खिलाफ मुखर हो रहे हैं और इस पर पटवारी भर्ती जैसे घोटाले सामने आ जाते हैं तो नाव ज्यादा डगमगाने लगती है. बाहर हाल चुनावी समर करीब है और दोनों ही तरफ से लड़ाई की पूरी तैयारी हो चुकी है.