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इलाज के दौरान अस्पताल में मौत, पीड़ित को 22 लाख रुपया देनें होंगे अस्पताल-डॉक्टर को, जानें किसने दिया आदेश - जबलपुर अस्पताल डॉक्टर की लापरवाही मरीज की मौत

जबलपुर अस्पताल में इलाज के दौरान मौत को लेकर जिला उपभोक्ता आयोग ने कड़ा रुख अख्तियार किया है. आयोग ने बड़ा फैसला देते हुए अस्पताल और डॉक्टर को मिलकर पीड़ित परिवार को 22 लाख रुपए मुआवजा देने के आदेश दिए हैं. पीड़ित किडनी पर स्टोन के इलाज के लिए अस्पताल आया था जहां उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई.

mp Consumer court hospital penalty
जबलपुर अस्पताल डॉक्टर पर लाखों का फाइन
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Published : Mar 14, 2023, 7:31 PM IST

जबलपुर अस्पताल डॉक्टर पर लाखों का फाइन

जबलपुर। अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु सामान्य बात है, कम ही लोगों को इस बात की जानकारी है की अस्पताल मे यदि इलाज के दौरान किसी मरीज की मौत हो जाती है तो इसे उपभोक्ता फोरम मैं चुनौती दी जा सकती है, जबलपुर में एक ऐसा ही मामला सामने आया है. मध्य प्रदेश उपभोक्ता आयोग ने किडनी पर स्टोन का इलाज कराने के दौरान मरीज की मौत पर बड़ा फैसला देते हुए डॉक्टर और अस्पताल को जिम्मेदार ठहराया. आयोग ने माना कि अस्पताल और डॉक्टर ने लापरवाही की है. लिहाजा मरीज के परिजन को मुआवजा राशि में लाखों रुपए देने के आदेश दिए.

किडनी के इलाज के दौरान मौत: बीते साल 27 जनवरी 2022 को उमरिया जिले की युवा वकील सूरज खट्टर जबलपुर में इलाज करवाने के लिए आए थे. इनके पेट में दर्द था, आशीष अस्पताल में इलाज के दौरान पता लगा की 37 साल के सूरज खट्टर की किडनी में स्टोन है. सूरज कट्टर को किडनी के इलाज के स्पेशलिस्ट डॉ. फणेंद्र सोलंकी के पास भेजा गया और डॉक्टर ने आशीष अस्पताल में ही सूरज खट्टर का किडनी पर स्टोन का ऑपरेशन किया. डॉक्टर का दावा है कि उन्होंने किडनी से स्टोन निकाल दिए लेकिन अस्पताल में ही इलाज के दौरान सूरज कट्टर की तबीयत बिगड़ने लगी, अचानक से उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया और हार्ट अटैक की वजह से उनकी मृत्यु हो गई.

उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया: अस्पताल में मृत्यु का यह पहला मामला नहीं था, अक्सर अस्पतालों में इलाज के दौरान मरीजों की मौत हो जाती है लेकिन खट्टर परिवार पर अचानक कमाने वाले सदस्य की मौत की वजह से गंभीर संकट खड़ा हो गया. सूरज खट्टर उमरिया के एडवोकेट थे और इन्हीं की कमाई से परिवार की रोजी-रोटी चल रही थी. खट्टर परिवार सदमे में था और अपने कमाऊ पूत की मृत्यु के बाद इन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, लेकिन सूरज खट्टर वकील थे इसलिए युवा वकील की मौत के बाद परिवार से मिलने के लिए वकीलों का एक दल गया. इसी में उपभोक्ता मामलों के जानकार वकील पुष्पेंद्र सिंह भी थे. उन्होने सूरज कट्टर की मौत को इलाज में लापरवाही मानते हुए उपभोक्ता फोरम में एक केस दायर किया और उसमें सूरज कट्टर के इलाज में हुई लापरवाही को अपनी दलीलों के माध्यम से साबित किया.

Consumer Disputes Redressal Commission: गर्भवती महिला की चिकित्सा में लापरवाही के चलते डॉक्टर पर लगा 11 लाख का जुर्माना

जबलपुर उपभोक्ता आयोग ने सबूतों के आधार पर यह माना कि डॉक्टर और अस्पताल की गलती थी और जबलपुर जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष केके त्रिपाठी और सदस्य मनोज कुमार ने आदेश दिया है कि डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन सूरज खट्टर के परिवार को 22 लाख रुपया अदा करें. हालांकी परिवार ने 4000000 रुपए का दावा किया था. इस मामले में वकील पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि "उपभोक्ता मामलों में अभी भी आम आदमी की समझ कम है इसलिए ठगे जाने के बाद भी उपभोक्ता अदालत नहीं जाता यदि ठगे जाने के बाद लोक अदालत का दरवाजा खटखटाया तो मनमानी करने वाले कई संस्थानों किन नाक में नकेल डाली जा सकती है. यह मामला इसका एक जीता जागता उदाहरण है. अस्पताल ने लापरवाही की और उसे अब भुगतान करना ही होगा."

आम आदमी को सलाह: सामान्य तौर पर इलाज के दौरान मौत पर परिवार के लोग इस तरह का दावा नहीं करते और इसको नियति मानकर स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन उपभोक्ता मामलों के जानकारों का कहना है की इलाज के दौरान मौत यदि अस्पताल में होती है तो इसमें अस्पताल की जिम्मेदारी है, क्योंकि मरीज अस्पताल में मृत्यु के जोखिम को कम करने का ही पैसा देता है. यह उपभोक्ता का अधिकार है कि यदि किसी के साथ ऐसी घटना घटती है तो उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए की इलाज से जुड़े हुए तमाम दस्तावेज मरीज के परिजन को अपने पास रखना चाहिए. खास तौर पर दवाओं की पर्ची और यह किस अवस्था में मरीज को दी जा रही हैं. यदि उपभोक्ता केबल इतना रिकॉर्ड रख ले तो अस्पताल की लापरवाही को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.

जबलपुर अस्पताल डॉक्टर पर लाखों का फाइन

जबलपुर। अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु सामान्य बात है, कम ही लोगों को इस बात की जानकारी है की अस्पताल मे यदि इलाज के दौरान किसी मरीज की मौत हो जाती है तो इसे उपभोक्ता फोरम मैं चुनौती दी जा सकती है, जबलपुर में एक ऐसा ही मामला सामने आया है. मध्य प्रदेश उपभोक्ता आयोग ने किडनी पर स्टोन का इलाज कराने के दौरान मरीज की मौत पर बड़ा फैसला देते हुए डॉक्टर और अस्पताल को जिम्मेदार ठहराया. आयोग ने माना कि अस्पताल और डॉक्टर ने लापरवाही की है. लिहाजा मरीज के परिजन को मुआवजा राशि में लाखों रुपए देने के आदेश दिए.

किडनी के इलाज के दौरान मौत: बीते साल 27 जनवरी 2022 को उमरिया जिले की युवा वकील सूरज खट्टर जबलपुर में इलाज करवाने के लिए आए थे. इनके पेट में दर्द था, आशीष अस्पताल में इलाज के दौरान पता लगा की 37 साल के सूरज खट्टर की किडनी में स्टोन है. सूरज कट्टर को किडनी के इलाज के स्पेशलिस्ट डॉ. फणेंद्र सोलंकी के पास भेजा गया और डॉक्टर ने आशीष अस्पताल में ही सूरज खट्टर का किडनी पर स्टोन का ऑपरेशन किया. डॉक्टर का दावा है कि उन्होंने किडनी से स्टोन निकाल दिए लेकिन अस्पताल में ही इलाज के दौरान सूरज कट्टर की तबीयत बिगड़ने लगी, अचानक से उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया और हार्ट अटैक की वजह से उनकी मृत्यु हो गई.

उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया: अस्पताल में मृत्यु का यह पहला मामला नहीं था, अक्सर अस्पतालों में इलाज के दौरान मरीजों की मौत हो जाती है लेकिन खट्टर परिवार पर अचानक कमाने वाले सदस्य की मौत की वजह से गंभीर संकट खड़ा हो गया. सूरज खट्टर उमरिया के एडवोकेट थे और इन्हीं की कमाई से परिवार की रोजी-रोटी चल रही थी. खट्टर परिवार सदमे में था और अपने कमाऊ पूत की मृत्यु के बाद इन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, लेकिन सूरज खट्टर वकील थे इसलिए युवा वकील की मौत के बाद परिवार से मिलने के लिए वकीलों का एक दल गया. इसी में उपभोक्ता मामलों के जानकार वकील पुष्पेंद्र सिंह भी थे. उन्होने सूरज कट्टर की मौत को इलाज में लापरवाही मानते हुए उपभोक्ता फोरम में एक केस दायर किया और उसमें सूरज कट्टर के इलाज में हुई लापरवाही को अपनी दलीलों के माध्यम से साबित किया.

Consumer Disputes Redressal Commission: गर्भवती महिला की चिकित्सा में लापरवाही के चलते डॉक्टर पर लगा 11 लाख का जुर्माना

जबलपुर उपभोक्ता आयोग ने सबूतों के आधार पर यह माना कि डॉक्टर और अस्पताल की गलती थी और जबलपुर जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष केके त्रिपाठी और सदस्य मनोज कुमार ने आदेश दिया है कि डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन सूरज खट्टर के परिवार को 22 लाख रुपया अदा करें. हालांकी परिवार ने 4000000 रुपए का दावा किया था. इस मामले में वकील पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि "उपभोक्ता मामलों में अभी भी आम आदमी की समझ कम है इसलिए ठगे जाने के बाद भी उपभोक्ता अदालत नहीं जाता यदि ठगे जाने के बाद लोक अदालत का दरवाजा खटखटाया तो मनमानी करने वाले कई संस्थानों किन नाक में नकेल डाली जा सकती है. यह मामला इसका एक जीता जागता उदाहरण है. अस्पताल ने लापरवाही की और उसे अब भुगतान करना ही होगा."

आम आदमी को सलाह: सामान्य तौर पर इलाज के दौरान मौत पर परिवार के लोग इस तरह का दावा नहीं करते और इसको नियति मानकर स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन उपभोक्ता मामलों के जानकारों का कहना है की इलाज के दौरान मौत यदि अस्पताल में होती है तो इसमें अस्पताल की जिम्मेदारी है, क्योंकि मरीज अस्पताल में मृत्यु के जोखिम को कम करने का ही पैसा देता है. यह उपभोक्ता का अधिकार है कि यदि किसी के साथ ऐसी घटना घटती है तो उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए की इलाज से जुड़े हुए तमाम दस्तावेज मरीज के परिजन को अपने पास रखना चाहिए. खास तौर पर दवाओं की पर्ची और यह किस अवस्था में मरीज को दी जा रही हैं. यदि उपभोक्ता केबल इतना रिकॉर्ड रख ले तो अस्पताल की लापरवाही को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.

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