जबलपुर। हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन ने अपने आदेश में कहा है कि जिला अदालतें जमानत देने के मामलें सख्त है. निचली अदालत साइक्लोस्टाइल में जमानत आवेदन को खारिज कर देते है और इस बात की जांच नहीं करती है, कि निरंतर कारावास की आवश्यकता है कि नहीं. जिसके कारण हाई कोर्ट में जमानत प्रकरणों की संख्या में लगातार बढोत्तरी हो रही है. एकलपीठ ने 21 साल पूराने मामलें में ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज प्रकरण में वृध्द महिला को अग्रिम जमानत का लाभ देते हुए उक्त तल्ख टिप्पणी की.
- दो माह में बढ़े एक हजार से ज्यादा प्रकरण
भोपाल ईओडब्ल्यू ने 1989 में जमीन की हेराफेरी के मामलें में साल 2020 में आवेदिका जरीना बेगम के खिलाफ धोखाधडी और जालसाजी की धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था. आवेदिका ने गंभीर बिमारी का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत याचिका के लिए हाई कोर्ट में आवेदन दायर किया था. एकलपीठ द्वारा पारित आदेश में कहा गया है कि निचली अदालत जमानत देते के मामलें सख्त है. निचली अदालत साइक्लोस्टाइल में जमानत आवेदन को खारिज कर देते है. वह इस बात की जांच नहीं करती है कि निरंतर कारावास की आवश्यकता है कि नहीं. जिसके कारण हाई कोर्ट में जमानत के प्रकरणों में बढोत्तरी हो रही है. आंकडों का हवाला देते हुए एकलपीठ ने कहा कि 19 जनवरी 2021 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जमानत के 8,956 प्रकरण लंबित थे, जो 12 मार्च को बढकर 9,978 तक पहुंच गए थे. दो माह के कम समय में ही एक हजार से अधिक प्रकरणों की बढोत्तरी हुई है.
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- सुनवाई से पहले ही आवेदकों की हो जाती है सजा
एकलपीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि कई प्रकरण सुनवाई में आने से पहले ही वापस ले लिए जाते है. इसका मुख्य कारण यह है कि सुनवाई से पहले ही आवेदकों की सजा पूरी हो जाती है. साल 2020 में 89 प्रकरणों का हवाला भी आदेश में दिया गया है. एकलपीठ ने न्यायिक मजिस्ट्रेटों को जमानत आवेदनों का निस्तारण करने के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अर्नेश कुमार के फैसले में जारी दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए आदेश जारी किए है.