जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कोरोना कहर के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए दीवानी और फौजदारी मामलों में निकाय, फर्म बोर्ड और अधीनस्थ न्यायालयों की कार्रवाई के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने मंगलवार को संज्ञान याचिका की सुनवाई करते हुए रोक की अवधि 15 जुलाई तक बढा दी है. युगलपीठ ने इस दौरान सिर्फ जर्जर मकानों को तोड़ने की अनुमत्ति प्रदान की है.
न्यायालयों के कामकाज को प्रतिबंधित किया
हाई कोर्ट ने संज्ञान याचिका की सुनवाई करते हुए पहले 9 बिंदुओं पर व्यापक आदेश जारी किया था. हाई कोर्ट ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि कोविड की दूसरी लहर से प्रदेश की जनता को काफी संकटों का सामना करना पड़ रहा है. कोर्ट ने कहा कि सरकार ने लॉकडाउन और कोरोना कर्फ्यू लगा दिया है, जिससे साधारण तरीके के कामकाज में अभी और समय लग सकता है, इसलिए न्यायालयों में कामकाज को प्रतिबंधित किया गया है और सीमित स्टाफ के साथ प्रतिबंधित तरीके से काम हो रहा है. हाई कोर्ट ने कहा कि बड़े शहरों इंदौर, जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर और भोपाल में महामारी का प्रकोप ज्यादा है, जहां कुछ लोगों की बीमारी के कारण मृत्यु भी हो गई है. ऐसे में न्यायालयों को भी स्थगित किया गया है.
सरकारी संपत्ति की नीलामी पर रोक के लिए लगाई याचिका, हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
कुर्की और नीलामी पर रोक
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में नगर निगम, परिषद, बोर्ड, पंचायत और अन्य एजेंसियों को निर्देशित किया था कि वो किसी संपत्ति के निष्कासन, विध्वंस व वित्तीय संस्थान नीलामी जैसी प्रकिया का क्रियान्वयन 15 जून तक नहीं करने के आदेश भी दिए थे. इसके अलावा हाई कोर्ट ने उच्च न्यायालय और अधीस्थ न्यायालयों से पैरोल और अग्रिम जमानत पर लोगों को समयावधि 15 जून तक बढ़ा दी थी. जो कि 10 मार्च के बाद से प्रभावित है. कोर्ट ने पैरोल पर गए लोगों को कानून के रखरखाव के लिए गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं होने तक गिरफ्तारी नहीं किए जाने के आदेश दिये थे. कोर्ट ने कहा था कि कोविड-19 के नियमों का उल्लंघन और गंभीर मामलों में गिरफ्तारी की जा सकती है. युगलपीठ ने उक्त आदेश की कापी केन्द्र व राज्य सरकार सहित राज्य अधिवक्ता परिषद व जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर अधिवक्ता संघों को भेजकर उसका व्यापक प्रचार प्रसार के निर्देश जारी किये है.