जबलपुर। जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर गोमुख नाम का एक गांव है इस गांव का यह नाम पानी के एक प्राकृतिक स्रोत की वजह से मिला हुआ है. जबलपुर से निवास के लिए जाने वाला रोड पहाड़ी के ठीक नीचे नीचे चलता है और इस पूरे इलाके में पथरीले पठार हैं और गर्मी आते-आते इस पूरे इलाके में पानी की कमी हो जाती है. भूमिगत जल काफी गहराई में पहुंच जाता है और ट्यूबवेल भी सूख जाते हैं, वाटर लेवल 400 फीट से नीचे चला जाता है तालाब और कुएं भी सूख जाते हैं. यहीं गोमुख नाम का यह गांव है इस गांव में एक बरगद के ठीक नीचे से लगातार पानी निकलता रहता था इस झरने में पाइप लगाकर लोगों ने यहां गाय का मुंह बना दिया और अब यह पानी गाय के मुंह से निकलता हुआ नजर आता है.
गर्मी में पानी का इकलौता स्रोत: पानी की कमी की स्थिति में गोमुख का यह प्राकृतिक जलस्रोत ही लोगों की प्यास बुझाता है यहां पर साल भर लगभग एक सी गति में पानी निकलता रहता है और इसी पानी की वजह से इस झरने के ठीक नीचे बना हुआ एक छोटा सा तालाब भर जाता है और जिसका इस्तेमाल ना केवल आम आदमी बल्कि इस इलाके के जानवर भी पानी पीने के लिए करते हैं. इससे ही कुछ लोग सिंचाई भी कर लेते हैं लेकिन यह पानी कभी खत्म नहीं होता. सदियों से पानी के स्त्रोत की वजह से इस इलाके को धार्मिक स्वरूप दे दिया गया है और यहां पर मंदिर और आश्रम बन गए हैं.
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तपस्या का फल है झरना: स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मां नर्मदा का जल है और सदियों पहले यहां एक तपस्वी रहा करते थे जो रोज यहां से लगभग 10 किलोमीटर दूर मां नर्मदा के दर्शन के लिए रोज जाते थे और रोज आते थे. जब बुजुर्ग हो गए तो उन्होंने नर्मदा मां से ऐसी प्रार्थना की थी कि वह अब नहीं आ सकते और उसके बाद मां नर्मदा ने उनकी तपस्या स्थली से ही निकल कर मानी देना शुरू कर दिया, जिसे अब गोमुख कहा जाता है. वहीं एक दूसरी मान्यता यह है कि इस प्राकृतिक पानी के पीने से लोगों के और रोग ठीक हो जाते हैं इसलिए लोग इस पानी को दवा के रूप में भी इस्तेमाल करके घर ले जाते हैं. प्राकृतिक झरने जंगलों में देखने को मिलते हैं पहाड़ों पर भी देखने को मिलते हैं लेकिन इस समतल इलाके का यह झरना प्रकृति का अनूठा नमूना है इसी वजह से जबलपुर के लोग यहां इसे देखने के लिए आते हैं.