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MP: जनता को लूटने की तैयारी कर रहीं बिजली कंपनी, 18 प्रतिशत तक दाम बढ़ने की आशंका

बिजली कंपनियों ने टैरिफ पर 12 प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी कर ली है. जिसके तहत अब आपको मौजूदा बिल में 12 प्रतिशत दाम बढ़ाकर पेमेंट करना होगा. टैरिफ पर 12 प्रतिशत का मतलब है कि कुल मिलाकर 18 प्रतिशत बिजली के दाम बढ़ेंगे.

बढ़ सकते हैं बिजली के दाम
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Published : Jun 15, 2019, 4:01 AM IST

जबलपुर। आपका बिजली का बिल अभी 1 हजार रूपये आता है और अगर अगले माह 12 रूपये आये तो चौंकिएगा मत, क्योंकि बिजली कंपनी ने टैरिफ पर 12 प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी कर ली है. जिसके तहत अब आपको मौजूदा बिल में 12 प्रतिशत दाम बढ़ाकर पेमेंट करना होगा.

टैरिफ पर 12 प्रतिशत का मतलब है कि कुल मिलाकर 18 प्रतिशत बिजली के दाम बढ़ेंगे. बीते दिनों विद्युत नियामक आयोग की ओर से अखबारों में आधे पेज का एक लेखा-जोखा प्रचारित किया गया था. जिसमें बिजली कंपनियों की ओर से नियामक आयोग को बिजली कारोबार में लगभग 12% घाटे की जानकारी दी गई थी.

MP: जनता को लूटने की तैयारी कर रहीं बिजली कंपनी

विद्युत नियामक आयोग की ओर से 1 जून को यह सार्वजनिक सूचना जारी की गयी थी. इसके पहले जनवरी महीने में भी नियामक आयोग की ओर से एक सार्वजनिक सूचना जारी की गई थी, जिसमें बिजली के दामो मैं 1.5 प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश की गई थी. जनवरी से लेकर मई के महीने तक इस मामले में थोड़ी ढील दी गई.

चुनाव के दौरान बिजली बिल बढ़ाने की कोई बात नहीं की गई, क्योंकि बिजली बिलों में अचानक से इतनी ज्यादा तेजी जनता को आंदोलित कर सकती थी और सरकार चुनाव आयोग और विद्युत नियामक आयोग के अधिकारी-कर्मचारी जनता को बिजली का झटका चुनाव के बाद देना चाहते थे. इसलिए बिजली कंपनियों को 3 महीना और घाटा सहन करने की हिदायत दी गई. अब जनता से नुकसान एक साथ वसूलने के लिए रणनीति बना ली गई है.

विज्ञापन का प्रचार करना नियामक आयोग की कानूनी जिम्मेवारी है. ताकि यदि किसी को बिजली की दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी पर कोई आपत्ति दर्ज करनी है तो जारी किये गये विज्ञापन को पढ़कर वह अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकता ह, लेकिन आम जनता इस कार्रवाई में कभी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाती.

जबलपुर के कुछ किसान संगठन और कुछ उपभोक्ताओं के हित में लड़ने वाले संगठन ने बिजली कंपनियों के प्रस्तावों पर सवाल खड़े किए हैं. नियामक आयोग में आपत्ति दर्ज करवाई है. जरा सोचिए यदि जनवरी में बिजली कंपनियों ने दाम बढ़ाने का प्रस्ताव रखा होता तो यह मुद्दा चुनाव में उठताय इस पर बहस होती और सरकारों को बिजली के दामों का महत्व समझ में आता, लेकिन पचा चला है कि जानबूझकर बिजली कंपनियों और नियामक आयोग ने इस मुद्दे को चुनाव के बाद तक टाला और अब जब राजनीतिक उथल-पुथल शांत हो गई है तो जनता को लूटने की तैयारी शुरू हो गई है.

जबलपुर। आपका बिजली का बिल अभी 1 हजार रूपये आता है और अगर अगले माह 12 रूपये आये तो चौंकिएगा मत, क्योंकि बिजली कंपनी ने टैरिफ पर 12 प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी कर ली है. जिसके तहत अब आपको मौजूदा बिल में 12 प्रतिशत दाम बढ़ाकर पेमेंट करना होगा.

टैरिफ पर 12 प्रतिशत का मतलब है कि कुल मिलाकर 18 प्रतिशत बिजली के दाम बढ़ेंगे. बीते दिनों विद्युत नियामक आयोग की ओर से अखबारों में आधे पेज का एक लेखा-जोखा प्रचारित किया गया था. जिसमें बिजली कंपनियों की ओर से नियामक आयोग को बिजली कारोबार में लगभग 12% घाटे की जानकारी दी गई थी.

MP: जनता को लूटने की तैयारी कर रहीं बिजली कंपनी

विद्युत नियामक आयोग की ओर से 1 जून को यह सार्वजनिक सूचना जारी की गयी थी. इसके पहले जनवरी महीने में भी नियामक आयोग की ओर से एक सार्वजनिक सूचना जारी की गई थी, जिसमें बिजली के दामो मैं 1.5 प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश की गई थी. जनवरी से लेकर मई के महीने तक इस मामले में थोड़ी ढील दी गई.

चुनाव के दौरान बिजली बिल बढ़ाने की कोई बात नहीं की गई, क्योंकि बिजली बिलों में अचानक से इतनी ज्यादा तेजी जनता को आंदोलित कर सकती थी और सरकार चुनाव आयोग और विद्युत नियामक आयोग के अधिकारी-कर्मचारी जनता को बिजली का झटका चुनाव के बाद देना चाहते थे. इसलिए बिजली कंपनियों को 3 महीना और घाटा सहन करने की हिदायत दी गई. अब जनता से नुकसान एक साथ वसूलने के लिए रणनीति बना ली गई है.

विज्ञापन का प्रचार करना नियामक आयोग की कानूनी जिम्मेवारी है. ताकि यदि किसी को बिजली की दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी पर कोई आपत्ति दर्ज करनी है तो जारी किये गये विज्ञापन को पढ़कर वह अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकता ह, लेकिन आम जनता इस कार्रवाई में कभी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाती.

जबलपुर के कुछ किसान संगठन और कुछ उपभोक्ताओं के हित में लड़ने वाले संगठन ने बिजली कंपनियों के प्रस्तावों पर सवाल खड़े किए हैं. नियामक आयोग में आपत्ति दर्ज करवाई है. जरा सोचिए यदि जनवरी में बिजली कंपनियों ने दाम बढ़ाने का प्रस्ताव रखा होता तो यह मुद्दा चुनाव में उठताय इस पर बहस होती और सरकारों को बिजली के दामों का महत्व समझ में आता, लेकिन पचा चला है कि जानबूझकर बिजली कंपनियों और नियामक आयोग ने इस मुद्दे को चुनाव के बाद तक टाला और अब जब राजनीतिक उथल-पुथल शांत हो गई है तो जनता को लूटने की तैयारी शुरू हो गई है.

Intro:विद्युत नियामक आयोग और बिजली कंपनियों ने जनता से किया छल चुनाव में बिजली के बढ़े हुए दामों को मुद्दा बनने से रोका अब 20% तक दाम बढ़ाकर जनता को लूटने की तैयारी


Body:जबलपुर यदि आप का बिजली का बिल ₹1000 आता है तो अगले महीने से इतनी ही बिजली की खपत करने पर आपको लगभग 12 सौ रुपया चुकाने होंगे क्योंकि बिजली कंपनियों ने टैरिफ पर 12% दाम बढ़ाने की तैयारी कर ली है टेरिफ पर 12% का मतलब है कि कुल मिलाकर 18% के लगभग बिजली के दाम बढ़ेंगे

आयोग ने छिपाई सच्चाई
बीते दिनों विद्युत नियामक आयोग की ओर से अखबारों में आधे पेज का एक लेखा जोखा प्रचारित किया गया था इसमें बिजली कंपनियों की ओर से नियामक आयोग को बिजली कारोबार में लगभग 12% की घाटे की जानकारी दी गई थी विद्युत नियामक आयोग की ओर से 1 जून को यह सार्वजनिक सूचना जारी किया गया था इसके पहले जनवरी के महीने में भी नियामक आयोग की ओर से एक सार्वजनिक सूचना जारी की गई थी जिसमें बिजली के दामो मैं 1.5 प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश की गई थी जनवरी से लेकर मई के महीने तक इस मामले में थोड़ी ढील दी गई जाहिर सी बात है बिजली बिल में यदि 20% का इजाफा होता है इस बात से जनता नाराज हो सकती है इसलिए चुनाव के दौरान बिजली बिल बढ़ाने की कोई बात नहीं की गई क्योंकि बिजली बिलों में अचानक से इतनी ज्यादा तेजी जनता को आंदोलित कर सकती थी और सरकार चुनाव आयोग और विद्युत नियामक आयोग के अधिकारी कर्मचारी जनता को बिजली का झटका चुनाव के बाद देना चाहते थे इसलिए बिजली कंपनियों को 3 महीना और घाटा सहन करने की हिदायत दी गई और अब जनता पर पूरा नुकसान एक साथ वसूलने के लिए रणनीति बना ली गई है

इस विज्ञापन का प्रचार करना नियामक आयोग की कानूनी जिम्मेवारी है ताकि यदि किसी को बिजली की दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी पर कोई आपत्ति दर्ज करनी है तो इस विज्ञापन को पढ़कर वह अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकता है लेकिन आम जनता इस कार्यवाही में कभी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाती जबलपुर के कुछ किसान संगठन और कुछ उपभोक्ताओं के हित में लड़ने वाले संगठन ने बिजली कंपनियों के प्रस्तावों पर सवाल खड़े किए हैं और नियामक आयोग में अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है




Conclusion:जरा सोचिए यदि जनवरी में बिजली कंपनियों ने दाम बढ़ाने का प्रस्ताव रखा होता तो यह मुद्दा चुनाव में उठता इस पर बहस होती और सरकारों को बिजली के दामों का महत्व समझ में आता लेकिन जानबूझकर बिजली कंपनियों और नियामक आयोग ने इस मुद्दे को चुनाव के बाद तक टाला और अब जब राजनीतिक उथल-पुथल शांत हो गई है तो जनता को लूटने की तैयारी शुरू हो गई है
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