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अनलॉक के बाद भी कुलियों को यात्रियों का इंतजार, सरकारी मदद की दरकार

जबलपुर स्टेशन पर 160 कुली हुआ करते थे, लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद सिर्फ 20-25 कुली यहां बचे हुए हैं. अनलॉक के बाद भी इन पर रोजी-रोटी का संकट बना हुआ है.

Porter upset even after unlock
अनलॉक के बाद भी कुली परेशान
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Published : Jul 28, 2020, 2:42 PM IST

जबलपुर। बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों पर लाल कलर के बिल्ला धारी कुली हर यात्री का मददगार होता है. जबलपुर स्टेशन पर 160 कुली हुआ करते थे और 24 घंटे स्टेशन पर आम यात्रियों के लिए चलता फिरता पूछताछ केंद्र थे और खास यात्रियों के लिए मददगार भी थे, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने इनकी जिंदगी पटरी से उतार दी है. जो कुली अपने कंधों पर 70-80 किलो का वजन उठा लेता था, उसे अब दो वक्त की रोटी का वजन उठा पाना कठिन लगने लगा है. जबलपुर में पहले 100 से ज्यादा रेलगाड़ियां आती जाती थीं और हजारों यात्री आते जाते थे. वहां मात्र 10 गाड़ियां आ रही हैं, इनमें भी रेल यात्रा करने वालों की संख्या बहुत कम हो गई है. जिसका सबसे ज्यादा असर कुलियों पर पड़ा है.

अनलॉक के बाद भी कुली परेशान

जहां पहले 160 कुली हुआ करते थे, अब स्टेशन पर मात्र 20 से 25 कुली ही बचे हैं. बचे हुए कुलियों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से बहुत सारे लोग घरों को लौट गए हैं, कोई खेतीवाड़ी करने लगा तो बहुत सारे लोग बेरोजगार भी हैं. स्टेशन पर इतना अधिक काम नहीं होता कि सब को पर्याप्त पैसा मिल जाए, जो लोग काम कर रहे हैं, उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

कुछ कुलियों का कहना है शुरुआत में रेलवे अधिकारियों ने रेड क्रॉस के जरिए राशन दिलवाने की व्यवस्था की थी, लेकिन बाद में राशन मिलना भी बंद हो गया. इन लोगों का कहना है कि इनकी भर्ती रेलवे के डी ग्रेट कर्मचारियों की तरह होती है. कुलियों की भर्ती निकाली जाती है, फिजिकल टेस्ट लिया जाता है, इसके बाद कुली का काम करने की अनुमति मिलती है. इसलिए इन लोगों को लगता है कि कभी रेलवे उन्हें अपना नियमित कर्मचारी मान लेगा, लेकिन अब इनकी ये आस भी टूट गई है और इन्हें लगने लगा है कि रेलवे खुद निजी हाथों में जाने की तैयारी में है, ऐसे में उन्हें नौकरी मिलेगी इसकी कोई उम्मीद नहीं है.

रेलगाड़ी आवागमन का बड़ा साधन था, लेकिन असंगठित क्षेत्र का भी बहुत बड़ा रोजगार रेलगाड़ी के जरिए लोगों को मिला हुआ था. इसमें न सिर्फ कुली बल्कि स्टेशन पर सामान बेचने वाले वेंडर, रेलगाड़ियों में सामान बेचने वाले वेंडर, साफ सफाई करने वाले लोग यहां तक की बड़ी तादाद में भिखारियों का पेट भी रेलवे के जरिए भर रहा था, लेकिन रेलगाड़ियां बंद हो जाने से या कम हो जाने से इन सभी के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है और बहुत सारे लोग भूखे मरने की कगार पर आ गए हैं.

जबलपुर। बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों पर लाल कलर के बिल्ला धारी कुली हर यात्री का मददगार होता है. जबलपुर स्टेशन पर 160 कुली हुआ करते थे और 24 घंटे स्टेशन पर आम यात्रियों के लिए चलता फिरता पूछताछ केंद्र थे और खास यात्रियों के लिए मददगार भी थे, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने इनकी जिंदगी पटरी से उतार दी है. जो कुली अपने कंधों पर 70-80 किलो का वजन उठा लेता था, उसे अब दो वक्त की रोटी का वजन उठा पाना कठिन लगने लगा है. जबलपुर में पहले 100 से ज्यादा रेलगाड़ियां आती जाती थीं और हजारों यात्री आते जाते थे. वहां मात्र 10 गाड़ियां आ रही हैं, इनमें भी रेल यात्रा करने वालों की संख्या बहुत कम हो गई है. जिसका सबसे ज्यादा असर कुलियों पर पड़ा है.

अनलॉक के बाद भी कुली परेशान

जहां पहले 160 कुली हुआ करते थे, अब स्टेशन पर मात्र 20 से 25 कुली ही बचे हैं. बचे हुए कुलियों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से बहुत सारे लोग घरों को लौट गए हैं, कोई खेतीवाड़ी करने लगा तो बहुत सारे लोग बेरोजगार भी हैं. स्टेशन पर इतना अधिक काम नहीं होता कि सब को पर्याप्त पैसा मिल जाए, जो लोग काम कर रहे हैं, उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

कुछ कुलियों का कहना है शुरुआत में रेलवे अधिकारियों ने रेड क्रॉस के जरिए राशन दिलवाने की व्यवस्था की थी, लेकिन बाद में राशन मिलना भी बंद हो गया. इन लोगों का कहना है कि इनकी भर्ती रेलवे के डी ग्रेट कर्मचारियों की तरह होती है. कुलियों की भर्ती निकाली जाती है, फिजिकल टेस्ट लिया जाता है, इसके बाद कुली का काम करने की अनुमति मिलती है. इसलिए इन लोगों को लगता है कि कभी रेलवे उन्हें अपना नियमित कर्मचारी मान लेगा, लेकिन अब इनकी ये आस भी टूट गई है और इन्हें लगने लगा है कि रेलवे खुद निजी हाथों में जाने की तैयारी में है, ऐसे में उन्हें नौकरी मिलेगी इसकी कोई उम्मीद नहीं है.

रेलगाड़ी आवागमन का बड़ा साधन था, लेकिन असंगठित क्षेत्र का भी बहुत बड़ा रोजगार रेलगाड़ी के जरिए लोगों को मिला हुआ था. इसमें न सिर्फ कुली बल्कि स्टेशन पर सामान बेचने वाले वेंडर, रेलगाड़ियों में सामान बेचने वाले वेंडर, साफ सफाई करने वाले लोग यहां तक की बड़ी तादाद में भिखारियों का पेट भी रेलवे के जरिए भर रहा था, लेकिन रेलगाड़ियां बंद हो जाने से या कम हो जाने से इन सभी के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है और बहुत सारे लोग भूखे मरने की कगार पर आ गए हैं.

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