जबलपुर। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले गोवा से विक्टर फैमिली जबलपुर आई थी, इन लोगों ने यहां पर परंपरागत तरीके से केक बनाने का काम शुरू किया था. आज भी इस परिवार में केक बनाने का काम होता है, हालांकि इनकी कोई दुकान नहीं है, लेकिन लोग घर पर ही इनसे केक बनवाने के लिए सामान लेकर पहुंचते हैं.
देसी भट्टी में बनता है केक
यूं तो बाजार में गैस से चलने वाली बिजली से चलने वाली और तेल से चलने वाली कई भटियां आ गई है, ऑटोमेटिक ओवन आ गए हैं, लेकिन इसके बावजूद जबलपुर के सिविल लाइन इलाके में देसी भट्टी में ही केक पकाया जाता है. देसी ओवन को ईंट की दीवार से बनाया जाता है, नीचे पत्थर लगाए जाते हैं. पूरे ओवन में पहले आग जलाई जाती है. जब अंदर पत्थर और ईंट गर्म हो जाती है. तब इसमें केक को पकने के लिए रखा जाता है. यह केक लगभग ढाई घंटे तक पकता है, इसलिए इसका स्वाद बाजार के दूसरे नरम केक से अलग होता है.
लोग घरों से लाते हैं सामान
क्रिसमस पर यीशु मसीह को मानने वाले केक काटते हैं और परिवार और रिश्तेदारों में यह केक बांटा जाता है. इसलिए लोगों को ज्यादा केक की जरूरत पड़ती है, यही वजह है कि विक्टर के ओवन में इन दिनों में जगह नहीं रहती. लोग मैदा, ड्राई फ्रूट्स, शक्कर और मक्खन लेकर विक्टर के घर पहुंचते हैं. जिसे विक्टर एक खूबसूरत केक में बदल देता है.
वाइन केक
इसके अलावा एक वाइन केक भी बनाया जाता है. इसमें ड्राई फ्रूट्स को पानी में डुबोकर रखा जाता है. इसके बाद इन्हें केक में डाल दिया जाता है. विक्टर कहते हैं कि वह एक बहुत अच्छा प्रिजर्वेटिव है और वाइन केक को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है. लोग शौक से यह केक बनवाते हैं.
जबलपुर के अलावा आसपास के शहरों से भी स्पेशल केक बनवाने के लिए लोग यहां आते हैं और इस लजीज स्वाद को महसूस करते हैं. जिसकी शुरुआत आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले हुई थी.