जबलपुर। भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रियांश विश्वकर्मा को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से जमानत नहीं मिली है. 6 माह पहले प्रियांश विश्वकर्मा ने एमबीए की छात्रा वेदिका ठाकुर की हत्या की थी, कोर्ट ने प्रियांश विश्वकर्मा को मदद करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ और उन निजी अस्पतालों के खिलाफ भी कार्यवाही करने की बात कही है, जिन्होंने प्रियांश विश्वकर्मा की मदद की थी.
क्या है वेदिका ठाकुर हत्याकांड: घटना 16 जून 2023 की है, जब मास्टर बिजनेस मैनेजमेंट की छात्रा वेदिका ठाकुर प्रियांश विश्वकर्मा से मिलने गई थी. इसी दौरान एक गोली चली और वेदिका के शरीर में यह गोली लगी, इसके बाद प्रियांश विश्वकर्मा ने इस मामले को छुपाने के लिए वेदिका को कुछ निजी अस्पतालों में इलाज के लिए लेकर गया, लेकिन जब निजी अस्पतालों में वेदिका का इलाज नहीं हो सका तो उसे छोड़कर भाग गया. 11 दिनों के इलाज के बाद वेदिका ठाकुर की अस्पताल में ही मृत्यु हो गई थी, इस मामले के बाद प्रियांश विश्वकर्मा को हिरासत में ले लिया गया था जो 6 महीने से जेल में है. प्रियांश विश्वकर्मा भारतीय जनता पार्टी का नेता था, इसलिए राजनीतिक दबाव के चलते प्रियांश विश्वकर्मा के खिलाफ पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं कर रही थी. वेदिका ठाकुर के परिवार के लोगों ने कई बार आंदोलन किया, तब जाकर प्रियांश विश्वकर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और उसे हिरासत में पहुंचाया जा सका.
प्रियांश विश्वकर्मा को नहीं मिली जमानत: 6 महीने बीत जाने के बाद प्रियांश की ओर से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जमानत याचिका लगाई गई थी, लेकिन वेदिका ठाकुर की ओर से पैरवी करने वाले हाई कोर्ट के एडवोकेट मनीष दत्त ने बताया कि "प्रियांश विश्वकर्मा का जुर्म संगीन है, उसने न केवल वेदिका ठाकुर की हत्या की बल्कि अपने जुर्म को छुपाने के लिए वह उसे ऐसे अस्पतालों में लेकर गया जहां उसे सही इलाज नहीं मिल पाया और 24 घंटे तक वेदिका तड़पती रही. इसलिए प्रियांश के हत्या और हत्या को छुपाने के अपराध को कोर्ट ने गंभीर मानते हुए प्रियांश को जमानत देने से मना कर दिया है."
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निजी अस्पतालों और पुलिस पर होगी कार्यवाही: इस हाई प्रोफाइल मामले में कोर्ट का कहना है कि "केस में राजनीतिक दखल भी हुआ और कुछ निजी अस्पतालों की भूमिका भी संदिग्ध है, इसलिए निजी अस्पतालों के खिलाफ और पुलिस के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी. इसमें उन पुलिस वालों के खिलाफ कार्यवाही होगी, जिन्होंने वेदिका के परिजनों की शिकायत लिखने में देरी की थी और प्रियांश विश्वकर्मा को बचाने की कोशिश की थी."