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कृषि विश्वविद्यालय का कमाल: आयुर्वेदिक पौधे की DNA बारकोडिंग सफल - डॉक्टर कीर्ति तंतु वाय

जबलपुर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की डॉक्टर कीर्ति तंतु वाय ने मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे की डीएनए की बारकोडिंग की है. जानिए पूरी खबर

जबलपुर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय
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Published : Feb 24, 2021, 7:43 AM IST

जबलपुर: जिले के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की डॉक्टर कीर्ति तंतु वाय ने मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे की डीएनए की बारकोडिंग की है. साथ ही इस तकनीक और मोथा प्रजाति पेटेंट करवा लिया है. जबलपुर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की कुलपति पीके बिसेन का कहना है की अब दुनिया में कोई भी मोथा का इस्तेमाल करेगा तो इसके लिए उसे हम से अनुमति लेनी होगी और हमें पैसा देने होंगे.

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जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की डॉक्टर कीर्ति तंतु वाय ने मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे की डीएनए की बारकोडिंग की है

जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय 10 प्रजातियों पर ले चुका है पेटेंट

मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे पर इससे पहले 10 प्रजातियों पर पेटेंट ले चुका है. कुलपति पी के बिसने का कहना है कि ये हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. वहीं बारकोडिंग के डीएनए निकालने की तकनीक भी शोध कार्य के लिए बहुत उपयोगी साबित होने वाली है. कुलपति का कहना है कि इसके जरिए हम कम समय में नई प्रजातियां विकसित कर पाएंगे, क्योंकि अब प्रकृति नई चुनौतियां पेश कर रही है. वातावरण का तापमान बढ़ रहा है, ऐसे हालात में गेहूं और चने जैसी फसलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इसलिए नई तकनीक से नई प्रजातियों की खोज की जा रही है जो गर्म वातावरण में भी अच्छा उत्पादन दे सकें. हालांकि मोथा के आयुर्वेदिक गुणों के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है.

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किसानों के लिए कैसा है मोथा ?

मोथा किसानों के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब है और एक खरपतवार है. ये बात जरूर अच्छी है कि अब इसके वैज्ञानिक गुणों के बारे में जानकारी लग गई है तो किसान इस खरपतवार को आसानी से नष्ट करने के लिए दवाएं पा सकेंगे. इसके लिए भी मोथा पर प्रयोग जारी है, यहां सवाल ये भी है कि अगर कृषि विश्वविद्यालय और शोध संस्थाएं इतनी अच्छी शोध कर रही हैं तो फिर किसान परेशान क्यों है, उसकी आय में इजाफा क्यों नहीं होता. लोग खेती क्यों छोड़ रहे हैं.

जबलपुर: जिले के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की डॉक्टर कीर्ति तंतु वाय ने मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे की डीएनए की बारकोडिंग की है. साथ ही इस तकनीक और मोथा प्रजाति पेटेंट करवा लिया है. जबलपुर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की कुलपति पीके बिसेन का कहना है की अब दुनिया में कोई भी मोथा का इस्तेमाल करेगा तो इसके लिए उसे हम से अनुमति लेनी होगी और हमें पैसा देने होंगे.

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जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की डॉक्टर कीर्ति तंतु वाय ने मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे की डीएनए की बारकोडिंग की है

जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय 10 प्रजातियों पर ले चुका है पेटेंट

मोथा नाम के एक आयुर्वेदिक पौधे पर इससे पहले 10 प्रजातियों पर पेटेंट ले चुका है. कुलपति पी के बिसने का कहना है कि ये हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. वहीं बारकोडिंग के डीएनए निकालने की तकनीक भी शोध कार्य के लिए बहुत उपयोगी साबित होने वाली है. कुलपति का कहना है कि इसके जरिए हम कम समय में नई प्रजातियां विकसित कर पाएंगे, क्योंकि अब प्रकृति नई चुनौतियां पेश कर रही है. वातावरण का तापमान बढ़ रहा है, ऐसे हालात में गेहूं और चने जैसी फसलों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इसलिए नई तकनीक से नई प्रजातियों की खोज की जा रही है जो गर्म वातावरण में भी अच्छा उत्पादन दे सकें. हालांकि मोथा के आयुर्वेदिक गुणों के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है.

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किसानों के लिए कैसा है मोथा ?

मोथा किसानों के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब है और एक खरपतवार है. ये बात जरूर अच्छी है कि अब इसके वैज्ञानिक गुणों के बारे में जानकारी लग गई है तो किसान इस खरपतवार को आसानी से नष्ट करने के लिए दवाएं पा सकेंगे. इसके लिए भी मोथा पर प्रयोग जारी है, यहां सवाल ये भी है कि अगर कृषि विश्वविद्यालय और शोध संस्थाएं इतनी अच्छी शोध कर रही हैं तो फिर किसान परेशान क्यों है, उसकी आय में इजाफा क्यों नहीं होता. लोग खेती क्यों छोड़ रहे हैं.

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