जबलपुर। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई परिजन अपने गंभीर मरीजों को अस्पताल में ही छोड़कर भाग जाया करते है, जिसे देखकर मेडिकल कॉलेज में नौकरी करने वाले एक युवा ने समाज में लावारिश लोगों का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया हुआ है. आशीष यह पूरा काम अपने जेब खर्च से करते हैं.
25 सालों से शहर में रिक्शा चला रहे एक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई थी. इसका जानने वाला कोई नहीं था. आशीष अपने दोस्तों के साथ जबलपुर के चौहान श्मशान घाट पर पहुंचे और बुजुर्ग का अंतिम संस्कार किया. आशीष के इस नेक काम में फेसबुक के जरिए लोग जुड़ते हैं. प्रशासन हर साल आशीष को 15 अगस्त पर सम्मानित करती है, लेकिन किसी किस्म की आर्थिक मदद नहीं करती. यहां तक कि लावारिस लाशों को दफनाने के लिए जगह तक मुहैया नहीं करवाई जाती है.
आशीष का कहना है कि वह बीते 18 सालों में 5500 से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार वह अपने हाथों से कर चुके हैं. इसमें लगभग दो हजार नाबालिगों के भ्रूण भी हैं, जो पुलिस आशीष को सौंप कर चली जाती है. कई ऐसे परिवार हैं जो आपसी विवाद के चक्कर में लाशें शमशान घाट पर छोड़ कर चले जाते हैं. इन सब का अंतिम संस्कार आशीष ही करते हैं.