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यह युवक लावारिश शवों को देता है मुखाग्नि, अब तक 5500 लोगों का कर चुका है अंतिम संस्कार - cremat

मेडिकल कॉलेज में नौकरी करने वाले आशीष ने समाज में लावारिश लोगों का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया हुआ है. वह अब तक 5500 से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं.

लावारिस लाशों का क्रियाकर्म
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Published : Jul 27, 2019, 6:38 PM IST

जबलपुर। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई परिजन अपने गंभीर मरीजों को अस्पताल में ही छोड़कर भाग जाया करते है, जिसे देखकर मेडिकल कॉलेज में नौकरी करने वाले एक युवा ने समाज में लावारिश लोगों का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया हुआ है. आशीष यह पूरा काम अपने जेब खर्च से करते हैं.

लावारिस लाशों का क्रियाकर्म


25 सालों से शहर में रिक्शा चला रहे एक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई थी. इसका जानने वाला कोई नहीं था. आशीष अपने दोस्तों के साथ जबलपुर के चौहान श्मशान घाट पर पहुंचे और बुजुर्ग का अंतिम संस्कार किया. आशीष के इस नेक काम में फेसबुक के जरिए लोग जुड़ते हैं. प्रशासन हर साल आशीष को 15 अगस्त पर सम्मानित करती है, लेकिन किसी किस्म की आर्थिक मदद नहीं करती. यहां तक कि लावारिस लाशों को दफनाने के लिए जगह तक मुहैया नहीं करवाई जाती है.


आशीष का कहना है कि वह बीते 18 सालों में 5500 से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार वह अपने हाथों से कर चुके हैं. इसमें लगभग दो हजार नाबालिगों के भ्रूण भी हैं, जो पुलिस आशीष को सौंप कर चली जाती है. कई ऐसे परिवार हैं जो आपसी विवाद के चक्कर में लाशें शमशान घाट पर छोड़ कर चले जाते हैं. इन सब का अंतिम संस्कार आशीष ही करते हैं.

जबलपुर। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई परिजन अपने गंभीर मरीजों को अस्पताल में ही छोड़कर भाग जाया करते है, जिसे देखकर मेडिकल कॉलेज में नौकरी करने वाले एक युवा ने समाज में लावारिश लोगों का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया हुआ है. आशीष यह पूरा काम अपने जेब खर्च से करते हैं.

लावारिस लाशों का क्रियाकर्म


25 सालों से शहर में रिक्शा चला रहे एक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई थी. इसका जानने वाला कोई नहीं था. आशीष अपने दोस्तों के साथ जबलपुर के चौहान श्मशान घाट पर पहुंचे और बुजुर्ग का अंतिम संस्कार किया. आशीष के इस नेक काम में फेसबुक के जरिए लोग जुड़ते हैं. प्रशासन हर साल आशीष को 15 अगस्त पर सम्मानित करती है, लेकिन किसी किस्म की आर्थिक मदद नहीं करती. यहां तक कि लावारिस लाशों को दफनाने के लिए जगह तक मुहैया नहीं करवाई जाती है.


आशीष का कहना है कि वह बीते 18 सालों में 5500 से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार वह अपने हाथों से कर चुके हैं. इसमें लगभग दो हजार नाबालिगों के भ्रूण भी हैं, जो पुलिस आशीष को सौंप कर चली जाती है. कई ऐसे परिवार हैं जो आपसी विवाद के चक्कर में लाशें शमशान घाट पर छोड़ कर चले जाते हैं. इन सब का अंतिम संस्कार आशीष ही करते हैं.

Intro:जबलपुर के एक युवा ने अब तक 5500 लावारिस लाशों का क्रिया कर्म किया अपनी जेब खर्च के पैसे से लावारिस लाशों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार करवाता है आशीष ठाकुर


Body:जबलपुर हम जब समाज सेवा की बात करते हैं तो अक्सर समाज सेवक कुर्ते पजामे यह धोती पहने हुए गंभीर से दिखने वाले लोग होते हैं लेकिन जबलपुर की आशीष ठाकुर टिप टॉप दिखने वाले युवा हैं लेकिन इनके सामने बड़े-बड़े समाजसेवी बौनी साबित होते हैं आशीष एक निजी कंपनी में काम करते हैं और यहीं से समय और पैसा निकाल कर एक ऐसा काम कर रहे हैं जिसे करने के लिए ना तो समाज में कोई है और ना सरकार में लावारिस लाशों का क्रिया कर्म या कफन दफन करना

आशीष ठाकुर मेडिकल कॉलेज में एक छोटी सी नौकरी किया करते थे इसी दौरान मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई परिजन अपने गंभीर मरीजों को अस्पताल में ही छोड़कर भाग जाया करते थे आज भी ऐसा होता है इनमें से कई लोगों की मृत्यु हो जाती थी इसके बाद इस लावारिस लाश का क्रिया कर्म कौन करें यह एक बड़ी समस्या थी तब आशीष ने यह बीड़ा उठाया और लावारिस लाशों का दाह संस्कार या कफन दफन करने लगे

जबलपुर जैसे बड़े शहर में लगभग रोज लावारिस लाश से मिलते हैं ज्यादातर पुलिस को कुछ मेडिकल कॉलेज अस्पताल में और रेलवे प्लेटफॉर्म और ट्रैक पर पुलिस इन्हें लावारिस लाश के रूप में दर्ज करती है लेकिन कफन दफन नहीं करती कहीं पुलिस के पास पैसा नहीं है वहीं ज्यादातर लोग श्मशान घाट पर क्रिया कर्म करने से डरते हैं यही हाल नगर निगम और रेलवे का भी है इनके पास अमला होने के बाद भी यह लावारिस लाशों का कफन दफन नहीं करते

आज बीते 25 सालों से शहर में रिक्शा चला रही एक बुजुर्ग की मृत्यु हो गई थी इसका जानने वाला कोई नहीं था आशीष अपने दोस्तों के साथ जबलपुर के चौहान श्मशान घाट पर पहुंचे आशीष के इस नेक काम में फेसबुक के जरिए लोग जुड़ते हैं रोहित नाम के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर आज इस बुजुर्ग के दाह संस्कार का सामान ले आए थे सब ने मिलकर इस अनजान बुजुर्ग शख्स का पूरे नियम धर्म से अंतिम संस्कार किया अक्सर यह पैसा आशीष अपनी जेब से खर्च करता है हालांकि आशीष ने मोक्ष नाम की एक संस्था बना रखी है लेकिन इसे कहीं से कोई मदद नहीं मिलती

आशीष का कहना है कि बीते 18 सालों में 5500 से ज्यादा लावारिस शवों का क्रिया कर्म वह अपने हाथों से कर चुका है इसमें लगभग दो हजार दो नाबालिगों के भ्रूण भी हैं जो पुलिस आशीष को सौंप कर चली जाती है कई ऐसे परिवार हैं जो आपसी विवाद के चक्कर में लाशें शमशान घाट पर छोड़ कर चले जाते हैं इन सब का अंतिम संस्कार आशीष ही करता है



Conclusion:प्रशासन हर साल आशीष को 15 अगस्त पर सम्मानित करती है लेकिन किसी किस्म की आर्थिक मदद नहीं करती यहां तक कि लावारिस लाशों को दफनाने के लिए जगह तक मुहैया नहीं करवाई जा रही है समाज का और सरकार की बेरुखी को देखकर आशीष का मन अब इस समाज सेवा से डिगने लगा है और लावारिस लाशों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है
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