इंदौर। जीते जी दूसरों को अपना अंगदान या किडनी देना करीबी रिश्तों में ही संभव है. हालांकि दूसरों को जीवन दान देने की यह सामाजिक धारणा अब बदल रही है. हमारे बीच ही कई लोग ऐसे हैं जो अपनों के अलावा दूसरों की भी जिंदगी बचाने के लिए खुशी खुशी अपने अंगों का दान कर रहे हैं. बड़वानी की सीताबाई की कहानी ऐसी ही है. जिसने अपनी किडनी दान करके भतीजे की जान बचाई है. फिलहाल ऑपरेशन के बाद बुआ भतीजे दोनों स्वस्थ हैं. (Aunt saves Nephew life by Donating Kidney).
बुआ ने दी भतीजे को नई जिंदगी: दरअसल बड़वानी में रहने वाली सीताबाई यादव के 30 साल के भतीजे की दोनों किडनी किसी संक्रमण के कारण खराब हो गईं. देखते ही देखते जब भतीजे की तबीयत बिगड़ने लगी तो माता-पिता ने अपने बच्चों की जान बचाने के लिए किडनी देने का फैसला किया तो पता चला पिता की दोनों किडनी में पथरी है. जबकि मां डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की बीमारियों से ग्रसित है. ऐसे में अपने परिवार के बच्चों को बचाने के लिए सीताबाई जो खुद 60 साल की हैं वह आगे आईं और उन्होंने हंसी-खुशी अपनी एक किडनी अपने भतीजे को दान करने का फैसला किया. इसके बाद अपोलो हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जय कृपलानी ने बुआ भतीजी को किडनी डोनेशन के हिसाब से फिट पाया और दोनों का सफल ऑपरेशन किया. फिलहाल बुआ और भतीजा दोनों स्वस्थ हैं.
जिंदगी बचाने वालों का आत्मीय सम्मान: आज 13 अगस्त को वर्ल्ड ऑर्गन डोनेशन डे पर अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांट द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में सीताबाई सहित इंदौर शहर के ऐसे तमाम डोनरों का सम्मान किया गया जिन्होंने अंगदान करके अपने ही नहीं बल्कि दूसरों की भी जान बचाई है. इस अवसर पर सांसद शंकर लालवानी एवं शहर के गणमान्य नेफ्रोलॉजिस्ट समाजसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि दानदाताओं के अलावा वे लोग भी शामिल हुए जिनकी जान किसी न किसी के अंगदान से बच सकी है. इस दौरान अपोलो इंस्टीट्यूट प्रबंधन ने उन दानदाताओं के सम्मान में सूची जारी की जिन्होंने अंग दान देकर लोगों की जान बचाई है.
इंदौर में 6 साल में 51 ग्रीन कॉरिडोर बने: इस अवसर पर इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने बताया ''इंदौर प्रदेश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां 6 साल में 51 ग्रीन कॉरिडोर बने हैं और लोगों के अंगदान की बदौलत ढ़ाई सौ लोगों की जान बच सकती है.'' उन्होंने कहा ''फिलहाल कोशिश की जा रही है कि सालाना कम से कम एक करोड़ अनुदान हो जिससे कि अंगों की उम्मीद में जिंदगी और मौत से जूझने वाले लोगों को जीवन दान मिल सके.''
यह है देश में अंगदान की स्थिति: जन जागरूकता के अभाव में भारत जैसे देश में 175000 लोगों को किडनी की जरूरत है. वहीं, लीवर की उम्मीद में जिंदगी और मौत से जूझ रहे 50000 लोग अभी भी वेटिंग में है. जबकि 25000 लोगों को पेनक्रियाज चाहिए. डॉ. जय कृपलानी बताते हैं कि ''फिलहाल आबादी के मान से 10 लाख में से एक ही व्यक्ति दान कर रहा है जबकि औसत अंगदान की संख्या कम से कम प्रति लाख लोगों के बीच 62 होना चाहिए.'' उन्होंने बताया ''हर साल ब्रेन डेड या अन्य कारणों से डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन उनमें से भी अंगदान करने वाले मात्र डेढ़ हजार लोग ही हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी 2021 में 144000 अंगदान हुए. इनमें भारत में होने वाले अंगदान की संख्या 12,220 ही थी.
एक व्यक्ति के अंगदान से 8 लोगों की बचती है जिंदगी: डॉ. कृपलानी ने बताया ''अंगदान करने को लेकर भारत जैसे देश में लोगों की जागरूकता बड़ी है. हालांकि ऐसे लोगों का अब अलग से सामाजिक स्तर पर या स्थानीय स्तर पर मान सम्मान होना चाहिए, जिससे कि उन्हें देखकर अन्य लोग भी अंगदान के लिए प्रेरित हो सकें. क्योंकि एक व्यक्ति के अंगदान से आठ लोगों को अनुदान का लाभ मिल सकता है.''