इंदौर। कहते हैं कि हौसला अगर बुलंद है, तो शारीरिक बाधा भी आपकी राह नहीं रोक सकती. इसी मान्यता की मिसाल हैं इंदौर की वह दिव्यांग दृष्टिहीन बालिकाएं (blind girls) जो देख नहीं सकने के बावजूद अब प्रदेश की पहली ब्लाइंड क्रिकेट टीम (Blind cricket team) में शामिल होकर अपने बुलंद हौसलों से स्टेट से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल मैचों में चौके छक्के (fours and sixes) लगाने को तैयार हैं. दरअसल, प्रदेश में पहली बार तैयार हो रही ब्लाइंड क्रिकेट टीम में इंदौर की विभिन्न दृष्टिहीन बालिकाएं चयनित हुई हैं. ट्रेनिंग के बाद सभी खिलाड़ी दिव्यांग क्रिकेट की दुनिया में प्रदेश का नाम रोशन करेंगी.
ब्लाइंड गर्ल सपना करेंगी पूरा
प्रदेश की ऐसी दृष्टिहीन और दिव्यांग बालिकाएं, जिन्होंने बचपन से अब तक सिर्फ क्रिकेट कमेंट्री सुनकर इस खेल की कल्पना की थी, उनकी आंखों में क्रिकेट खेलने का सपना अब साकार होता नजर आ रहा है. दरअसल, मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड (Madhya Pradesh Cricket Association for the Blind) प्रदेश स्तरीय एक ऐसी टीम बना रहा है, जिसे ट्रेनिंग के बाद ब्लाइंड गर्ल क्रिकेट के नेशनल इंटरनेशनल मैचों में उतारा जाएगा.
महिला दिवस पर हुई थी घोषणा
लिहाजा, हाल ही में महिला दिवस पर हुई घोषणा के बाद भोपाल में लगाए गए क्रिकेट कैंप में 12 बालिकाओं के सलेक्शन के बाद इंदौर के कैंप में करीब 34 बालिकाओं का चयन जिला स्तरीय टीम के लिए हुआ है. इनमें से 31 बालिकाएं महेश दृष्टिहीन कल्याण संघ की हैं. सलेक्शन के बाद अब यह तमाम दृष्टिहीन बालिकाएं 8 दिन का ट्रेनिंग कैंप अटेंड करेंगी. ट्रेनिंग के बाद जिला एवं इंटर स्टेट क्रिकेट मैचों में शामिल होने के बाद चयनित खिलाड़ी प्रदेश की पहली दृष्टिहीन बालिकाओं की क्रिकेट टीम का हिस्सा बनेंगी. भविष्य में इसी टीम को नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर होने वाले गर्ल्स ब्लाइंड क्रिकेट वर्ल्ड कप मैच (Girls Blind Cricket World Cup Match) में उतारा जाएगा.
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इसी तरह बैटिंग के दौरान 2 प्लेयर उतारना पड़ते हैं. यह खिलाड़ी जो भी चौका छक्का लगाते हैं, उसमें दुगने रन मिलते हैं. इनके क्रिकेट में घुंघरू वाली बॉल होती है, जिससे आवाज के जरिए बॉलिंग बैटिंग अथवा फील्डिंग की जाती है. इन खिलाड़ियों की पिच-66 फीट की होती है, जिसमें 33 फीट में एक साइड लाइन डाली जाती है. इस लाइन के अंदर ही बॉलिंग के दौरान गेंद का टप्पा होना चाहिए. यदि गेंद लाइन के बाहर टप्पा खाती है, तो नो बॉल मानी जाती है. पूरे खेल के दौरान दोनों टीमों के खिलाड़ी बॉल को घुंघरू की आवाज से ही पहचान कर पूरा क्रिकेट मैच खेलते हैं.