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इस जेल में 180 साल बाद बनने जा रहा निगरानी कक्ष, जानें क्यों है जरूरत

जिला जेल में 180 साल बाद अष्टकोण यानी निगरानी कक्ष बनने जा रहा है, इस ऑफिस में बैठकर पूरे जेल परिसर पर निगरानी रखी जा सकती है.

Monitoring room is being built in Indore jail after 180 years
जेल में 180 साल बाद बनेगा निगरानी कक्ष
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Published : Feb 25, 2020, 9:34 AM IST

इंदौर. जिला जेल में 180 साल बाद अष्टकोण यानी निगरानी कक्ष बनने जा रहा है. इसके लिए मुख्यालय से जल विभाग को औपचारिक अनुमति भी मिल गई है. निर्माण कार्य शुरू भी हो गया है और जल्दी ये काम पूरा भी हो जाएगा. अष्टकोण जेल में ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस दफ्तर में बैठे-बैठे ही पूरी जेल परिसर पर आसानी से निगाह रखी जा सकती है.

अंग्रेजों के समय से नहीं था कोई निगरानी दफ्तर

साल 1839 में जिला जेल का निर्माण किया गया था. अंग्रेजों के द्वारा इसे कैदियों के रखने के लिए बनाया गया था, इसमें सभी जरूरी स्थान जहां तक की खतरनाक बंदियों को रखने के लिए सेल्किर्क बनाए गए थे, यहां पर सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती थी. वहां पर अष्टकोण का दफ्तर नहीं बनाया गया था, इतनें सालों से ये बिना अष्टकोण यानी बिना निगरानी दफ्तर के ही चल रही थी.

यहां से पूरी जेल पर रखी जा सकती है नजर

जेल अधीक्षक अदिति चतुर्वेदी ने बताया कि नया अष्टकोण दफ्तर बनाया जा रहा है. जिला जेल में बीच में एक खाली जगह है, वहां पर इसे बनाया जा रहा है. दफ्तर में एक टावर भी बनाया जाएगा. जहां से पूरे जेल पर नजर रखी जा सकेगी. वहीं आने वाले समय में कंट्रोल रूम को भी यहीं पर शिफ्ट कर दिया जाएगा. इसके बन जाने से अंदर एक स्थान पर बैठा व्यक्ति पूरे जेल पर नजर रख सकेगा, इसके लिए मुख्यालय से अनुमति मिल गई है और अब इसका निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा, इस निगरानी दफ्तर से पुणे जेल परिसर पर नजर रखी जा सकती है.

कैदियों की निगरानी के लिए बेहद जरूरी

जेल अफसरों की मानें तो अष्टकोण का दफ्तर महत्वपूर्ण स्थान रहता है. इसे ऐसा बनाया जाता है कि दूसरे सभी सेक्टर के गेट यहां पर आकर खुलते हैं, कोई भी कैदी अगर अपने सेक्टर से बाहर आता है तो वहां पर मौजूद अफसर या सिपाही की नजर में आ जाता है.यहां पर इंट्री होने के बाद ही उसे कहीं और जाने की इजाजत मिलती है इस तरह हर सेक्टर पर नजर रहती है जिला जेल में फिलहाल खाली पड़े बैरक में अष्टकोण यानी की निगरानी दफ्तर चल रहा है, लेकिन जिस जगह पर अभी निगरानी दफ्तर चल रहा है. वहां से पूरे जेल परिसर की निगरानी नहीं हो पा रही है, जिसके कारण कई गंभीर घटनाएं भी जेल में हो चुकी है. इसी को देखते हुए निगरानी दफ्तर अष्टकोण की जगह पर बनाया जा रहा है. जहां से पूरी जेल परिसर पर नजर के साथ सुरक्षा भी की जा सके, वहीं जिस तरह का निगरानी दफ्तर बनाया जा रहा है वह काफी हाईटेक रहेगा.

180 साल पहले हुआ था जेल का निर्माण

बता दे कि इंदौर की जिला जेल का निर्माण 1839 यानी कि 180 साल पहले अंग्रेजों के द्वारा किया गया था, उस समय से इस जेल में कैदियों को रखा जाता था, समय के साथ-साथ यहां पर कई तरह के सुरक्षा व्यवस्था की गई लेकिन जो बुनियादी सुरक्षा व्यवस्थाओं में से एक होती है. अष्टकोण यानी निगरानी दफ्तर वह यहां पर काफी सालों से नहीं बना था लेकिन काफी प्रयासों के बाद अब इंदौर की जिला जेल में निगरानी दफ्तर बनाया जा रहा है.

इंदौर. जिला जेल में 180 साल बाद अष्टकोण यानी निगरानी कक्ष बनने जा रहा है. इसके लिए मुख्यालय से जल विभाग को औपचारिक अनुमति भी मिल गई है. निर्माण कार्य शुरू भी हो गया है और जल्दी ये काम पूरा भी हो जाएगा. अष्टकोण जेल में ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस दफ्तर में बैठे-बैठे ही पूरी जेल परिसर पर आसानी से निगाह रखी जा सकती है.

अंग्रेजों के समय से नहीं था कोई निगरानी दफ्तर

साल 1839 में जिला जेल का निर्माण किया गया था. अंग्रेजों के द्वारा इसे कैदियों के रखने के लिए बनाया गया था, इसमें सभी जरूरी स्थान जहां तक की खतरनाक बंदियों को रखने के लिए सेल्किर्क बनाए गए थे, यहां पर सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती थी. वहां पर अष्टकोण का दफ्तर नहीं बनाया गया था, इतनें सालों से ये बिना अष्टकोण यानी बिना निगरानी दफ्तर के ही चल रही थी.

यहां से पूरी जेल पर रखी जा सकती है नजर

जेल अधीक्षक अदिति चतुर्वेदी ने बताया कि नया अष्टकोण दफ्तर बनाया जा रहा है. जिला जेल में बीच में एक खाली जगह है, वहां पर इसे बनाया जा रहा है. दफ्तर में एक टावर भी बनाया जाएगा. जहां से पूरे जेल पर नजर रखी जा सकेगी. वहीं आने वाले समय में कंट्रोल रूम को भी यहीं पर शिफ्ट कर दिया जाएगा. इसके बन जाने से अंदर एक स्थान पर बैठा व्यक्ति पूरे जेल पर नजर रख सकेगा, इसके लिए मुख्यालय से अनुमति मिल गई है और अब इसका निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा, इस निगरानी दफ्तर से पुणे जेल परिसर पर नजर रखी जा सकती है.

कैदियों की निगरानी के लिए बेहद जरूरी

जेल अफसरों की मानें तो अष्टकोण का दफ्तर महत्वपूर्ण स्थान रहता है. इसे ऐसा बनाया जाता है कि दूसरे सभी सेक्टर के गेट यहां पर आकर खुलते हैं, कोई भी कैदी अगर अपने सेक्टर से बाहर आता है तो वहां पर मौजूद अफसर या सिपाही की नजर में आ जाता है.यहां पर इंट्री होने के बाद ही उसे कहीं और जाने की इजाजत मिलती है इस तरह हर सेक्टर पर नजर रहती है जिला जेल में फिलहाल खाली पड़े बैरक में अष्टकोण यानी की निगरानी दफ्तर चल रहा है, लेकिन जिस जगह पर अभी निगरानी दफ्तर चल रहा है. वहां से पूरे जेल परिसर की निगरानी नहीं हो पा रही है, जिसके कारण कई गंभीर घटनाएं भी जेल में हो चुकी है. इसी को देखते हुए निगरानी दफ्तर अष्टकोण की जगह पर बनाया जा रहा है. जहां से पूरी जेल परिसर पर नजर के साथ सुरक्षा भी की जा सके, वहीं जिस तरह का निगरानी दफ्तर बनाया जा रहा है वह काफी हाईटेक रहेगा.

180 साल पहले हुआ था जेल का निर्माण

बता दे कि इंदौर की जिला जेल का निर्माण 1839 यानी कि 180 साल पहले अंग्रेजों के द्वारा किया गया था, उस समय से इस जेल में कैदियों को रखा जाता था, समय के साथ-साथ यहां पर कई तरह के सुरक्षा व्यवस्था की गई लेकिन जो बुनियादी सुरक्षा व्यवस्थाओं में से एक होती है. अष्टकोण यानी निगरानी दफ्तर वह यहां पर काफी सालों से नहीं बना था लेकिन काफी प्रयासों के बाद अब इंदौर की जिला जेल में निगरानी दफ्तर बनाया जा रहा है.

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