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दत्तात्रेय होसबाले का बयान, देश के लिए छत्रपति शिवाजी का संघर्ष नहीं होता तो आज काशी नहीं होता

छत्रपति शिवाजी महाराज जनकल्याण और साहस को लेकर जितने अपने जमाने में चर्चित रहे वह आज भी राष्ट्र निर्माण के लिहाज से प्रासंगिक हैं. यही वजह है कि स्वयंसेवक संघ आज शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा और शिवराज्याभिषेक की महत्ता पर चिंतन कर रहा है. यह कहना है संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का. उन्होंने इंदौर में कहा कि ''देश के लिए यदि छत्रपति शिवाजी का संघर्ष नहीं होता तो आज काशी भी नहीं होता.''

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दत्तात्रेय होसबाले का बयान
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Published : Jul 3, 2023, 7:04 AM IST

Updated : Jul 3, 2023, 7:21 AM IST

दत्तात्रेय होसबाले का बयान

इंदौर। शहर में डॉक्टर हेडगेवार स्मारक समिति द्वारा आयोजित 'चिंतन यज्ञ' में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने ''शिवराज्याभिषेक का संदेश'' विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि ''हिन्दी स्वराज्य की पुन: स्थापना के लिए शिवाजी राज्य अभिषेक किया जाना अत्यंत आवश्यक था. उस दौर में मुगल शासक शिवाजी महाराज को राजा नहीं मान रहें थे, लेकिन उनके राज्य अभिषेक से मिले संदेश के बाद औरंगजेब को उन्हें पराक्रमी राजा मानना पड़ा. क्योंकि शिवाजी के राज में स्त्री की रक्षा, मंदिरों की पुर्नस्थापना, मस्जिदों की हिफाजत और कुरान का भी सम्मान हुआ है.''

शिवाजी ने अपने राज्य को सर्वगुण सम्पन्न बनाया: सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने व्याख्यान में आगे कहा कि ''शिवाजी महाराज ने अपने राज्य को सर्वगुण सम्पन्न बनाया. आर्थिक क्षेत्र में अपने राज्य को समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने ओमान की राजधानी मस्कट से व्यापार किया. हिन्दवी स्वराज्य के लिए यदि छत्रिपति शिवाजी का संघर्ष नहीं होता तो आज काशी नहीं होता. यही कारण है कि आज के राजपथ को कर्तव्य पथ कहना एक संदेश है. इसलिए फैजाबाद को साकेत और औरंगाबाद को छत्रपति संभाजी नगर कहना पड़ता है. क्योंकि इससे परिर्वतन का संदेश जाता है, हमें आत्म विश्वास आता है, स्वदेशी का भाव जागृत होता है.''

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महापुरूषों ने ली शिवाजी से प्रेरणा: दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि ''देश में किसी भी राजा को छत्रपति के नाम से नहीं जाना गया, शिवाजी महाराज ही छत्र सिंहासन पर विराजे. यह मुगल और हिन्दू राजाओं के लिए एक संदेश था. शिवाजी के पराक्रम से आकर्षित होकर कवि भूषण ने उनके पराक्रम का गुण-गान अपने काव्य में किया है. शिवाजी ने अपने राज्य के साथ अपने साथी राज्यों के पालन में आर्थिक सहयोग का चिंतन किया. शिवाजी से महापुरूष रबीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद ने प्ररेणा लेकर और हिन्दवी राज्य के गौरव को बढ़ाने का काम किया. बंगाल में रबीन्द्रनाथ टैगोर ने शिव जयंती महोत्सव की शुरूआत देश भक्ति और जन जागरण के लिए की थी.''

कार्यक्रम में यह रहे मौजूद: कार्यक्रम का आयोजन डेली कालेज के सभागार में किया गया. अध्यक्षता प्रकाश केमकर द्वारा की गई. विशेष अतिथि के रूप में प्रोफेसर दिलीप पटनायक थे. इसके साथ ही मंत्री तुलसी सिलावट, सांसद शंकर लालवानी, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक मालिनी गौड़ सहित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोग मोजूद रहे.

दत्तात्रेय होसबाले का बयान

इंदौर। शहर में डॉक्टर हेडगेवार स्मारक समिति द्वारा आयोजित 'चिंतन यज्ञ' में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने ''शिवराज्याभिषेक का संदेश'' विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि ''हिन्दी स्वराज्य की पुन: स्थापना के लिए शिवाजी राज्य अभिषेक किया जाना अत्यंत आवश्यक था. उस दौर में मुगल शासक शिवाजी महाराज को राजा नहीं मान रहें थे, लेकिन उनके राज्य अभिषेक से मिले संदेश के बाद औरंगजेब को उन्हें पराक्रमी राजा मानना पड़ा. क्योंकि शिवाजी के राज में स्त्री की रक्षा, मंदिरों की पुर्नस्थापना, मस्जिदों की हिफाजत और कुरान का भी सम्मान हुआ है.''

शिवाजी ने अपने राज्य को सर्वगुण सम्पन्न बनाया: सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने व्याख्यान में आगे कहा कि ''शिवाजी महाराज ने अपने राज्य को सर्वगुण सम्पन्न बनाया. आर्थिक क्षेत्र में अपने राज्य को समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने ओमान की राजधानी मस्कट से व्यापार किया. हिन्दवी स्वराज्य के लिए यदि छत्रिपति शिवाजी का संघर्ष नहीं होता तो आज काशी नहीं होता. यही कारण है कि आज के राजपथ को कर्तव्य पथ कहना एक संदेश है. इसलिए फैजाबाद को साकेत और औरंगाबाद को छत्रपति संभाजी नगर कहना पड़ता है. क्योंकि इससे परिर्वतन का संदेश जाता है, हमें आत्म विश्वास आता है, स्वदेशी का भाव जागृत होता है.''

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महापुरूषों ने ली शिवाजी से प्रेरणा: दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि ''देश में किसी भी राजा को छत्रपति के नाम से नहीं जाना गया, शिवाजी महाराज ही छत्र सिंहासन पर विराजे. यह मुगल और हिन्दू राजाओं के लिए एक संदेश था. शिवाजी के पराक्रम से आकर्षित होकर कवि भूषण ने उनके पराक्रम का गुण-गान अपने काव्य में किया है. शिवाजी ने अपने राज्य के साथ अपने साथी राज्यों के पालन में आर्थिक सहयोग का चिंतन किया. शिवाजी से महापुरूष रबीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद ने प्ररेणा लेकर और हिन्दवी राज्य के गौरव को बढ़ाने का काम किया. बंगाल में रबीन्द्रनाथ टैगोर ने शिव जयंती महोत्सव की शुरूआत देश भक्ति और जन जागरण के लिए की थी.''

कार्यक्रम में यह रहे मौजूद: कार्यक्रम का आयोजन डेली कालेज के सभागार में किया गया. अध्यक्षता प्रकाश केमकर द्वारा की गई. विशेष अतिथि के रूप में प्रोफेसर दिलीप पटनायक थे. इसके साथ ही मंत्री तुलसी सिलावट, सांसद शंकर लालवानी, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक मालिनी गौड़ सहित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोग मोजूद रहे.

Last Updated : Jul 3, 2023, 7:21 AM IST
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