शहडोल (अखिलेश शुक्ला): मध्य प्रदेश के शहडोल जिला में रहने वाले एक युवा ने अपने काम से अलग मुकाम हासिल किया है. आज हम बात एक ऐसे युवा की करेंगे जो कभी लंदन में लाखों रुपए की नौकरी किया करते थे. वहां की नौकरी को छोड़ा, कुछ साल बिजनेस किया और अब इसी आदिवासी अंचल में जैविक खेती कर दूसरे किसानों के लिए मिसाल तो बन ही रहे हैं. साथ ही खेती में एक ऐसा मॉडल तैयार कर दिया है, जिससे खेत के हर कोने से अब पैसों की बरसात होगी.
कौन है लंदन रिटर्न किसान?
लंदन रिटर्न जिस युवा कि हम बात कर रहे हैं, इनका नाम मनोज अहूजा है. शहडोल जिले के बुढार के रहने वाले हैं. मनोज अहूजा बताते हैं कि "उन्होंने 12 साल रायपुर में पढ़ाई की. उसके बाद बेंगलुरु में हायर एजुकेशन लिया और फिर अपने एक्सपर्टीज के हिसाब से उन्हें कंपनी वालों ने लंदन भेज दिया था. वहां पर उन्होंने 2 साल नौकरी की और 2011 में वहां से वापस आए थे."
मनोज अहूजा बताते हैं कि "ब्रिटेन में वो लंदन इंश्योरेंस मार्केट में ब्रोकिंग करते थे. अंडरराइटर (वित्तीय उद्योग में काम करने वाला एक विशेषज्ञ होता है) अकाउंटेंट के पोस्ट पर पदस्थ थे. जहां उस दौर में ही उनकी सैलरी लाखों रुपए में हुआ करती थी."
ऐसे हुई घर वापसी
मनोज अहूजा बताते हैं कि "2011 तक तो वहां नौकरी कर रहे थे, लेकिन जब वो अपने देश भारत लौटे, तो फिर दोबारा वापस लंदन नौकरी करने के लिए नहीं गए. उन्होंने अपने गृह नगर बुढ़ार में ही लोहे का व्यापार शुरू कर दिया, लेकिन शुरू से उनकी इच्छा खेती में कुछ नया करने की थी. वहीं इस दौरान उन्होंने व्यापार में अच्छा सेटअप तैयार कर लिया था और लोहे का व्यापार भी अच्छा खासा चल रहा था."
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ऐसे हुई खेती में एंट्री
मनोज अहूजा ने बताया कि "2020 में जब कोरोना काल आया तो उनके बड़े पिताजी जो कि पुणे में रहते हैं. उन्होंने शहडोल जिले के पड़री गांव में आकर के अपनी जमीन को डेवलप किया. उनको देखकर मेरा भी मन खेती करने का हुआ. वहीं कोरोना की वजह से धंधा भी बंद था. कोरोना काल में जब मुझे ये मौका मिला, तो मैंने इस बार यह मौका हाथ से जाने नहीं दिया और खेती शुरू कर दी."
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मनोज अहूजा ने बताया कि "सब्जी और दूसरे ट्रेडिशनल खेती मैं करना शुरू किया. वहीं दूसरी तरफ जमीन को और डेवलप करने लगा. इसके लिए मैंने कई कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से मिला और जैविक खेती के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी एकत्रित कर खेती करना जारी रखा." उन्होंने बताया कि "अब वो पूरी तरह से यहां धान, गेहूं जैसे ट्रेडिशनल खेती तो करते ही हैं. इसके साथ ही जैविक सब्जियां भी उगा रहे हैं, जिसकी अच्छी खासी मार्केट में डिमांड भी है."
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खेत के हर हिस्से का उपयोग
मनोज अहूजा बताते हैं कि "उनका रकबा तो बहुत बड़ा है, लेकिन जो कल्टीवेशन एरिया है वह 30 एकड़ का है. जिसमें 8 एकड़ में वह जैविक सब्जियों की खेती करते हैं. जिसमें बैगन, टमाटर, खीरा, करेला, सेमी रेरुआ, बरबटी इस तरह की सब्जियां उगा रहे हैं, इसके अलावा 22 एकड़ के बचे रकबे में वे ट्रेडिशनल खेती करते हैं, जैसे अभी रबी सीजन में गेहूं की फसल लगाए हुए हैं, खरीफ सीजन में धान की फसल लगाते हैं. इसके अलावा उन्होंने कई सारे बारह मासी मुनगा के पेड़ सहित नारियल आदि के भी पेड़ लगाए हुए हैं."
पानी सरंक्षण का भी काम
मनोज अहूजा बताते हैं कि "उन्होंने पानी के संरक्षण के लिए भी प्रयास किया है. बरसाती नाले के पानी को खेत में एक जगह एकत्रित करते हैं. पानी के एकत्रित करने के लिए उन्होंने खेत में एक छोटा सा बांध टाइप डेवलप कर लिया है. इस पानी का उपयोग फसलों की सिंचाई में करते हैं. साथ ही इसमें उन्होंने मछली पालन भी किया है. जिससे उनकी कमाई भी अच्छी खासी हो रही है."
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कई लोगों को काम, कितना मुनाफा?
मनोज अहूजा ने बताया कि "जैविक खेती में भी कमाई तो है. ऐसा नहीं है कि इसमें मुनाफा नहीं है, उनका कहना है कि उन्होंने रासायनिक खेती नहीं की है इसलिए इसका अंदाजा नहीं है कि उसमें कितना मुनाफा होता है, लेकिन जो वो जैविक खेती कर रहे हैं. उसे लेकर उनका कहना है कि जैविक खेती के अपने ही फायदे हैं. किसी तरह का केमिकल उपयोग नहीं करते तो लागत कम लगती है.
साथ ही जैविक खेती कर रहे हैं, तो कीड़े मकोड़े और रोगों का प्रकोप भी कम होता है और एक अच्छी फसल निकालकर वो लोगों को दे भी रहे हैं. इस बात की उन्हें संतुष्टि रहती है. उन्होंने बताया कि खेत में अभी 20 से 25 लोगों को काम भी दे रखा है और जरूरत के हिसाब से कम ज्यादा कर्मचारी होते रहते हैं. कुल मिलाकर अगर तरीके से जैविक खेती की जाए तो 60 से 70% तक कमाई इसमें हो सकती है."
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अभी आगे बहुत कुछ करना है
मनोज अहूजा कहते हैं कि "अभी तो उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत की है, और एक मॉडल तैयार कर रहे हैं. उनकी कोशिश ये है कि उनके पास जितनी भी जमीन है. उसका इस्तेमाल किया जाए और जहां जो इस्तेमाल हो सकता है वो करने की कोशिश की जा रही है. अभी जो उनका 30 एकड़ का कल्टीवेशन एरिया है, उसमें वे पूरी तरह से जैविक वेजिटेबल्स फार्मिंग करना चाहते हैं. इसके अलावा वे बीज उत्पादन का भी काम शुरू करना चाहते हैं इसके लिए प्रयासरत हैं."
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जैविक फार्मिंग काबिले तारीफ
उद्यान विस्तार अधिकारी विक्रम कलमे बताते हैं कि "मनोज अहूजा जिस तरह से 8 एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं और सब्जियां लगा रहे हैं काबिले तारीफ है. उनका जो ये पूरा सेटअप है बहुत ही शानदार है. वो किसी तरह का केमिकल उपयोग नहीं कर रहे हैं, ये किसानों के लिए एक बड़ी अच्छी उपलब्धि है. अगर किसान ऑर्गेनिक खेती करते हैं, तो उसमें लागत कम लगती है और उत्पादन भी ठीक होता है. मनोज अहूजा जैविक फार्मिंग के क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं."