इंदौर। अब तक मोतियों का उत्पादन भले समुद्र में होता हो लेकिन अब राज्यों के जल स्रोतों में भी पर्ल कल्चर की शुरुआत हुई है. राजस्थान के बाद अब मध्य प्रदेश में भी कोशिश की जा रही है कि शासन स्तर पर मदद के जरिए मछली पालन से जुड़े किसानों को मोतियों की खेती यानी पर्ल कल्चर की दिशा में प्रोत्साहित किया जाए. इसलिए राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश ऐसा राज्य होगा जहां पायलट प्रोजेक्ट के तहत मोतियों की खेती या पर्ल कल्चर किया जा सकेगा.
पर्ल कल्चर को बढ़ावा देने का फैसला: दरअसल राज्य शासन के मछली पालन विभाग ने मध्य प्रदेश में पर्ल कल्चर की बढ़ती संभावनाओं के मद्दे नजर पायलट प्रोजेक्ट के तहत इसकी तैयारी शुरू की है. हाल ही में राजस्थान के कुछ मछली उत्पादकों ने पर्ल कल्चर की शुरुआत की है. हालांकि इसके पहले निजी स्तर पर उड़ीसा में भी ऐसा किया जा चुका है. लेकिन मध्य प्रदेश शासन ने अब मध्य प्रदेश में मोतियों के स्थानीय तौर पर उत्पादन और आपूर्ति के लिए पर्ल कल्चर को बढ़ावा देने का फैसला किया है. अब पर्ल कल्चर के जरिए डिजाइनर मोती भी तैयार हो रहे हैं. वहीं विभिन्न स्थानों के जल स्रोतों में भी मोतियों के उत्पादन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.
मध्य प्रदेश में हैच कल्चर, बायो फ्लोट प्लांट हो रहे तैयार: मध्य प्रदेश शासन के मत्स्य पालन विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव के मुताबिक ''फिलहाल मध्य प्रदेश में हैच कल्चर, बायो फ्लोट प्लांट भी तैयार हो रहे हैं. इसके अलावा फिश फीड और फिश मील हर जिले में तैयार हो सके इसके लिए भी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.'' उन्होंने बताया मछलियों के बीच का भी मध्य प्रदेश में बाहर से आयात करना पड़ता है लेकिन अब कोशिश की जा रही है कि उन्नत किस्म की मछलियों के बीच स्थानीय स्तर पर भी तैयार किया जा सके. जिससे कि मध्य प्रदेश में मत्स्य उत्पादन को बढ़ाया जा सके. इसके लिए राज्य की विभिन्न मछली पालन समिति और मछली उत्पादक किसानों को प्राथमिकता दी जा रही है.''
राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश की जलवायु: जहां तक पर्ल कल्चर का सवाल है तो फिलहाल छोटे पैमाने पर यह इनोवेशन मध्य प्रदेश में होने जा रहा है. इसके लिए पानी चिन्हित करने के साथ अन्य तैयारियां की जा रही हैं. क्योंकि राजस्थान की जलवायु मध्य प्रदेश की तरह ही है, इसलिए मध्य प्रदेश में भी इसकी व्यापक संभावना है. मध्य प्रदेश में राजस्थान से ज्यादा जल स्रोत भी हैं, इसलिए यहां पर अन्य राज्यों की तुलना में बड़े पैमाने पर पर्ल कल्चर किया जा सकता है.