इंदौर। हाई कोर्ट में जमानत के लिए याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर की थी, जिस पर हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में सुनवाई हुई. आत्महत्या करने के लिए प्रेरित या मजबूर करने के मामले में सुसाइड नोट में नाम का उल्लेख होने पर कोर्ट की एकलपीठ ने एक अहम फैसला दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि सिर्फ सुसाइड नोट में किसी के नाम का उल्लेख होना अपराध का प्रमाण नहीं है. घटना से जुड़े हुए अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखना होगा. फिलहाल इस पूरे मामले को सुनने के बाद एक याचिकाकर्ता को कोर्ट ने जमानत दे दी है.
दरअसल, 22 अक्टूबर 2020 को एक युवक ने ट्रेन के सामने आकर आत्महत्या कर लगी थी. इस पूरे मामले में 2 लोगों के खिलाफ जीआरपी पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया था. उसके बाद उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष याचिका लगाई थी. उस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है.
अन्य केसों के आधार पर दी जमानत
कोर्ट ने इस पूरे मामले में दोनों पक्षों के वकीलों के विभिन्न तरह के तर्क वितर्क सुने. उसके बाद जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज हुआ था, उन लोगों को अग्रिम जमानत दी गई. कोर्ट ने जमानत देने के साथ ही अपने आदेश में पिछली घटनाओं का भी उल्लेख किया, जिसमें सबसे अधिक सुर्खियों में रहने वाले अर्नव गोस्वामी सुसाइड केस के बारे में भी उल्लेख किया गया. जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने उस पूरे मामले में जमानत दी हैं, उसका उल्लेख किया गया है. इसी को देखते हुए कोर्ट ने सुनवाई करते हुए युवक द्वारा ट्रेन के सामने आकर आत्महत्या करने के मामले में बालकृष्ण गुलाटी और सुनील लड्ढा को अग्रिम जमानत दी है.
जिस तरह से कोर्ट ने सुसाइड के मामले में आदेश जारी किया है, तो अब पुलिस सुसाइड नोट में नामों का जिक्र होने के बाद भी बारीकी से जांच पड़ताल करेगी. उसके बाद संबंधित के खिलाफ प्रकरण दर्ज करेगी, क्योंकि अभी तक अधिकतर मामलों में सुसाइड नोट में नाम आने के बाद ही पुलिस संबंधित के ऊपर कार्रवाई कर देती है, लेकिन कोर्ट ने अहम आदेश जारी करते हुए ऐसे मामलों में बारीकी से जांच पड़ताल करने के बाद ही संबंधित के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने की बात कही है.