इंदौर। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 9 फरवरी 2017 को नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान ओंकारेश्वर में तीन संकल्प लिए थे. इसमें ओंकारेश्वर के मांधाता पर्वत पर 108 फीट भगवान आदि शंकराचार्य की मूर्ति स्टेचू ऑफ़ वननेस का निर्माण समेत शंकराचार्य जी के जीवन दर्शन को अभिव्यक्त करने के लिए संग्रहालय और यहां शंकराचार्य अंतरराष्ट्रीय वेदांत संस्थान की स्थापना की घोषणा की थी. इसके लिए यहां करीब 2000 करोड रुपए खर्च किए जा रहे हैं. घोषणा के बाद से ही यहां निर्माण एजेंसी पर्यटन विकास निगम के जरिए निर्माण किया जा रहा है. यहां पर मांधाता पर्वत पर 108 फीट की शंकराचार्य जी की मूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर खुदाई की गई है इस खुदाई के कारण मां नर्मदा का अभिषेक मार्ग बंद हो गया है.
परिक्रमा मार्ग बंद होने से श्रद्धालु नाराज : आम श्रद्धालुओं की भी परिक्रमा मार्ग बंद होने से नाराजगी है. इधर, इंदौर में श्रद्धालुओं ने परशुराम सेना के माध्यम से विरोध करके संभागायुक्त कार्यालय को ज्ञापन भी सौंपा था. परशुराम सेना का आरोप है कि खुद कुछ वर्ष पहले मुख्यमंत्री ने यहां लाखों पौधों का रोपण किया था, लेकिन अब स्टेचू निर्माण के नाम पर करोड़ों रुपए के पौधों का नाश कर दिया गया है. इसके अलावा बंदर एवं वन्य प्राणियों का भी आश्रय स्थल छीना जा रहा है. इसके विरोध में भूतड़ी अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने यहां अपनी मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाया. ये अभियान अभी चल रहा है. हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजा जाएगा.
इसलिए स्थापित हो रही है मूर्ति : देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर तीर्थ नर्मदा नदी के किनारे स्थित है. नर्मदा नदी के दो धारा में बंटने से यहां एक टापू का निर्माण हुआ था, जिसका नाम मांधाता पर्वत पड़ा. इसी पर्वत पर भगवान ओंकारेश्वर महादेव विराजमान हैं. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट ही अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग है. इन दोनों ज्योतिर्लिंगों की गिनती एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है. मान्यता है कि भगवान शंकर के महान भक्त अमरीश और मुचुकंद के पिता सूर्यवंशी राजा मांधाता ने इस पर्वत पर कठोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया था. शिव जी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान भी मांग लिया था, तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओंकार मांधाता के रूप में पुकारी जाने लगी.
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शंकराचार्य ने यहीं ली थी दीक्षा : आदि गुरु शंकराचार्य 8 साल की उम्र में केरल से ओंकारेश्वर पहुंचे थे, जहां उन्होंने अपने गुरु गोविंद भगवत पाद से दीक्षा ली थी. ओंकारेश्वर मंदिर के नीचे उनकी एक गुफा है. बताया जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य नर्मदा नदी में स्नान कर भगवान ओंकारेश्वर के दर्शन करने के लिए इसी गुफा से होकर पहुंचते थे. आदि गुरु शंकराचार्य ने यूं तो देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा की है पर ओंकारेश्वर का महत्व इसलिए है क्योंकि उन्होंने यहीं से दीक्षा ली थी और यात्रा की शुरुआत भी ओंकारेश्वर से की थी.
प्रतिमा स्थल के साथ विकसित होगा रिसर्च केंद्र : प्रतिमा की स्थापना के साथ यहां नर्मदा में एक नौका विहार केंद्र भी बनाया जाएगा, जिसमें अमरकंटक से लेकर भरूच तक की यात्रा कराई जाएगी. इसके अलावा यहां एक इंटरनेशनल सेंटर की भी स्थापना प्रस्तावित है, जहां रिसर्च और शिक्षा से लेकर दूसरे अहम काम किए जाएंगे. इसके लिए पूरी परियोजना का डीपीआर तैयार किए जाने के बाद कोशिश की जा रही है कि 2023 तक यहां का कार्य पूर्ण कर लिया जाए. (opposition of statue of Shankaracharya) (statue of Shankaracharya in Omkareshwar)