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एमपी में प्लाज्मा थैरेपी का पहला मामला, रिजल्ट पर देशभर की नजर

इंदौर के अरविंदो मेडिकल कॉलेज में तीन कोरोना संक्रमितों को पहली बार प्लाज्मा थेरेपी दी गई है. इस थैरेपी पर देश भर की नजरें हैं, क्योंकि इसके पहले दिल्ली और चंडीगढ़ में प्लाज्मा थेरेपी का परिणाम उत्साहजनक आया था. कोरोना को मात देकर जंग जीत चुके तीन लोग, इसमें प्लाज्मा डोनर बने हैं.

First case of plasma therapy in MP
एमपी में प्लाज्मा थेरेपी का पहला मामला
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Published : Apr 26, 2020, 11:55 PM IST

इंदौर। एमपी में पहली बार कोरोना संक्रमित मरीजों के ऊपर प्लाज्मा थैरेपी की शुरुआत इंदौर में की गई है. दिल्ली और चंडीगढ़ के बाद एमपी का इंदौर तीसरा स्थान है, जहां पर इस थैरेपी की शुरुआत हुई है. इंदौर के अरविंदो मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की टीम ने गंभीर रूप से संक्रमित 3 लोगों पर इसका ट्रायल शुरू किया है.

इस प्लाज्मा को देने के लिए तीन डोनर सामने आए हैं, जो कि संक्रमण को मात देकर 14 दिन का क्वॉरेंटाइन पीरियड भी पूरा कर चुके हैं. डॉक्टरों के मुताबिक संक्रमण से ठीक होने वाले व्यक्ति के खून में एंटीबॉडी विकसित हो जाती है, यही एंटीबॉडी जब कोई व्यक्ति के शरीर से निकालकर संक्रमित के शरीर में डाली जाती है, तो उसे भी संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है.

इस थेरेपी के लिए अरविंदो मेडिकल कॉलेज में संक्रमण से जूझ रहे तीन गंभीर संक्रमित मरीजों का चयन किया गया. इन तीनों के फेफड़े में गंभीर संक्रमण पाया गया है. इन सभी को 200 मिलीलीटर प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा है.

प्लाज्मा क्या है?

इंसानी शरीर के खून में मुख्यत चार चीजें होती हैं. रेड ब्लड सेल (RBC), व्हाइट ब्लड सेल (WBC), तीसरी प्लेट्लेट्स और चौथी प्लाज्मा. यह प्लाज्मा खून का तरल वाला हिस्सा होता है, जिसके जरिए एंटीबॉडी शरीर में भ्रमण करते हैं.

प्लाज्मा थेरेपी क्या है?

कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से पूरी तरह ठीक हुए लोगों के खून में एंटीबॉडीज बन जाती हैं. जो उसे संक्रमण को मात देने में मदद करती हैं. प्लाज्मा थेरेपी में यही एंटीबॉडीज, प्लाज्मा डोनर यानी संक्रमण को मात दे चुके व्यक्ति के खून से निकाल कर, संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है.

प्लाज्मा डोनर और संक्रमित का ब्लड ग्रुप एक होना चाहिए. प्लाज्मा चढ़ाने का काम विशेषज्ञों की निगरानी में अतिरिक्त सावधानी के साथ किया जाता है. यह एंटीबॉडी संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति खून में मिलकर, रोग से लड़ने में मदद करती है.

हालांकि अभी तक इस थेरेपी से कोरोना के मरीज ठीक होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. लेकिन इसके पहले भी स्वाइन फ्लू जैसे दूसरे तरह के वायरस संक्रमण मे इसका सफल प्रयोग हो चुका है. कोरोना के मामले में भी देश विदेश में इस थैरेपी के उत्साहवर्धक नतीजे मिले हैं.

भारत में बहुत गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित पर इसका पहला प्रयोग 14 अप्रैल को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में हुआ था. दूसरों की तुलना में उसमें तेजी से सुधार हुआ.

इंदौर। एमपी में पहली बार कोरोना संक्रमित मरीजों के ऊपर प्लाज्मा थैरेपी की शुरुआत इंदौर में की गई है. दिल्ली और चंडीगढ़ के बाद एमपी का इंदौर तीसरा स्थान है, जहां पर इस थैरेपी की शुरुआत हुई है. इंदौर के अरविंदो मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की टीम ने गंभीर रूप से संक्रमित 3 लोगों पर इसका ट्रायल शुरू किया है.

इस प्लाज्मा को देने के लिए तीन डोनर सामने आए हैं, जो कि संक्रमण को मात देकर 14 दिन का क्वॉरेंटाइन पीरियड भी पूरा कर चुके हैं. डॉक्टरों के मुताबिक संक्रमण से ठीक होने वाले व्यक्ति के खून में एंटीबॉडी विकसित हो जाती है, यही एंटीबॉडी जब कोई व्यक्ति के शरीर से निकालकर संक्रमित के शरीर में डाली जाती है, तो उसे भी संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है.

इस थेरेपी के लिए अरविंदो मेडिकल कॉलेज में संक्रमण से जूझ रहे तीन गंभीर संक्रमित मरीजों का चयन किया गया. इन तीनों के फेफड़े में गंभीर संक्रमण पाया गया है. इन सभी को 200 मिलीलीटर प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा है.

प्लाज्मा क्या है?

इंसानी शरीर के खून में मुख्यत चार चीजें होती हैं. रेड ब्लड सेल (RBC), व्हाइट ब्लड सेल (WBC), तीसरी प्लेट्लेट्स और चौथी प्लाज्मा. यह प्लाज्मा खून का तरल वाला हिस्सा होता है, जिसके जरिए एंटीबॉडी शरीर में भ्रमण करते हैं.

प्लाज्मा थेरेपी क्या है?

कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से पूरी तरह ठीक हुए लोगों के खून में एंटीबॉडीज बन जाती हैं. जो उसे संक्रमण को मात देने में मदद करती हैं. प्लाज्मा थेरेपी में यही एंटीबॉडीज, प्लाज्मा डोनर यानी संक्रमण को मात दे चुके व्यक्ति के खून से निकाल कर, संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है.

प्लाज्मा डोनर और संक्रमित का ब्लड ग्रुप एक होना चाहिए. प्लाज्मा चढ़ाने का काम विशेषज्ञों की निगरानी में अतिरिक्त सावधानी के साथ किया जाता है. यह एंटीबॉडी संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति खून में मिलकर, रोग से लड़ने में मदद करती है.

हालांकि अभी तक इस थेरेपी से कोरोना के मरीज ठीक होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. लेकिन इसके पहले भी स्वाइन फ्लू जैसे दूसरे तरह के वायरस संक्रमण मे इसका सफल प्रयोग हो चुका है. कोरोना के मामले में भी देश विदेश में इस थैरेपी के उत्साहवर्धक नतीजे मिले हैं.

भारत में बहुत गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित पर इसका पहला प्रयोग 14 अप्रैल को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में हुआ था. दूसरों की तुलना में उसमें तेजी से सुधार हुआ.

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