इंदौर। शायरी की दुनिया में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाले राहत इंदौरी हम सब को छोड़कर चले गए. वे कोरोना से संक्रमित होने के चलते अरविदों अस्पताल में भर्ती हुए थे. लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं था कि ये वायरस उन्हें दुनिया से रुखस्त कर देगा. और शाम को उनके निधन की खबर गई, जिसके बाद देर रात उनको सुपुर्द ए खाक किया गया, कोरोना के चलते सिर्फ 20 लोगों को शामिल होने की अनुमति प्रशासन के द्वारा दी गई थी.
जैसे ही राहत साहब के मौत की खबर सामने आई. एक पल के लिए लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हुआ. राहत इंदौरी अपने बेबाक अंदाज और बेहतरीन शायरी के लिए जाने जाते रहे हैं. अब राहत साहब की केवल यादें औऱ शायरी ही हमारे बीच हैं. राहत साहब की पहली किताब धूप थी, इसके एक शेर ने उन्हें राहत से राहत इंदौरी बना किया. वह शेर था हमारे सिर की फटी टोपियों पर तंज ना कर, हमारे ताज अजायब घरों में रखे हैं... वे जब इसे पढ़ते थे तो लोग दीवाने हो जाया करते थे. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बचपन से ही बहुत मेहनत की थी.
कहां से शुरू हुआ शायरी का सफर
70 के दशक में स्कूल पास करने के बाद राहत साहब कॉलेज पहुंचे, तब उन्हें शायरी का शौक लगा. वे शायरी तो नहीं करते थे, लेकिन शौक ऐसा था कि उन्होंने नए-पुराने शायरों की एक हजार से ज्यादा शायरी याद कर ली थीं और कॉलेज में कुछ शायरी करते थे. राहत इंदौरी अपनी चर्चित शायरियों में हमेशा जिंदा रहेंगे. जब भी वह शायरी सुनाने के लिए मंच पर होते थे तो सबकी नजरें उन पर टिकी रहती थीं. उनके संवाद अदायगी का अंदाज भी काफी निराला था जो लोगों को बेहद पसंद आया करता था.