इंदौर। जिला कोर्ट में साढ़े 5 एकड़ जमीन विवाद को लेकर एक याचिका दायर की गई थी. इस पूरे मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई होने के बाद संबंधित याचिका को खारिज कर दिया गया.
बता दें कि, अयोध्यापुरी क्षेत्र में साढ़े 5 एकड़ जमीन को लेकर कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी. इस याचिका के माध्यम से जहां रहवासी संघ अयोध्यापुरी की साढ़े 5 एकड़ जमीन को अपना बता रहे थे, तो वहीं संबंधित कंपनी उक्त जमीन को अपना बताते हुए हक जता रही थी. इस पूरे मामले में जिला कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना. सुनने के बाद दोनों पक्षों ने अपने-अपने जवाब कोर्ट के समक्ष पेश किए. इसके बाद कोर्ट ने इस याचिका को ही खारिज कर दिया.
रहवासी संघ को मिली राहत
साढ़े 5 एकड़ जमीन पर सिंपलेक्स इन्वेस्टमेंट एंड मेगा फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड ने अपना हक जताया था. इससे संबंधित जवाब भी कोर्ट में पेश किए गए थे, लेकिन रहवासी संघ ने इस पूरे मामले में कोर्ट के समक्ष जवाब पेश किया था कि संस्था ने साल 2000-2001 में 2 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन साल 2018 में कुछ लोगों द्वारा मलबा डाल दिया गया. जो कंपनी इस जमीन पर अपना दावा पेश कर रही है, उस कंपनी का उक्त जमीन पर किसी तरह का कोई स्वामित्व नहीं है.
जमीन विवाद मामला: कोर्ट ने खारिज की याचिका - जमीन विवाद
इंदौर जिला कोर्ट में साढ़े 5 एकड़ जमीन विवाद को लेकर एक याचिका दायर की गई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.
इंदौर। जिला कोर्ट में साढ़े 5 एकड़ जमीन विवाद को लेकर एक याचिका दायर की गई थी. इस पूरे मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई होने के बाद संबंधित याचिका को खारिज कर दिया गया.
बता दें कि, अयोध्यापुरी क्षेत्र में साढ़े 5 एकड़ जमीन को लेकर कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी. इस याचिका के माध्यम से जहां रहवासी संघ अयोध्यापुरी की साढ़े 5 एकड़ जमीन को अपना बता रहे थे, तो वहीं संबंधित कंपनी उक्त जमीन को अपना बताते हुए हक जता रही थी. इस पूरे मामले में जिला कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना. सुनने के बाद दोनों पक्षों ने अपने-अपने जवाब कोर्ट के समक्ष पेश किए. इसके बाद कोर्ट ने इस याचिका को ही खारिज कर दिया.
रहवासी संघ को मिली राहत
साढ़े 5 एकड़ जमीन पर सिंपलेक्स इन्वेस्टमेंट एंड मेगा फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड ने अपना हक जताया था. इससे संबंधित जवाब भी कोर्ट में पेश किए गए थे, लेकिन रहवासी संघ ने इस पूरे मामले में कोर्ट के समक्ष जवाब पेश किया था कि संस्था ने साल 2000-2001 में 2 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन साल 2018 में कुछ लोगों द्वारा मलबा डाल दिया गया. जो कंपनी इस जमीन पर अपना दावा पेश कर रही है, उस कंपनी का उक्त जमीन पर किसी तरह का कोई स्वामित्व नहीं है.