इंदौर। कहते हैं अपने माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई अमानत, कोई संपत्ति नहीं होती. यह बात और है कि कोरोना काल में आत्मीय रिश्तों की मान्यता छिन्न-भिन्न हो गई. शहर में स्थिति यह है कि जो बच्चे अपने माता-पिता के संक्रमित हो जाने पर खुद संक्रमित होने के डर से अस्पताल में उनके पास जाने को भी तैयार नहीं हैं, वहीं बच्चे अंतिम संस्कार के दौरान अपने माता-पिता के शवों से एक-एक गहने उतार कर रख रहे है. बीते कोरोना काल में ऐसे कई मामले सामने आए, जिसे देखकर मुक्तिधामों में शवों का अंतिम संस्कार करने वाले कर्मचारी भी इंसानी लालच को देखकर हैरान है.
शहर में लगातार कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों के बाद मरने वालों का अंतिम संस्कार भी महज औपचारिकता बन चुका है. फिलहाल अस्पतालों में जिन लोगों की मौतें हो रही हैं, उनके शवों को एंबुलेंस के जरिए दहन करने या दफनाने के लिए सीधे श्मशान या कब्रिस्तान भेजा जा रहा है. ऐसी स्थिति में न तो अंतिम संस्कार की रस्में हो पा रही हैं और न ही शव यात्रा निकल पा रही हैं. हालांकि, इन मामलों में सबसे दुखद और मार्मिक पहलू यह है कि एक बार संक्रमण होने के बाद मरीजों के बच्चे मदद करने की बजाय किनारा करते नजर आ रहे हैं.
रामबाग स्थित मुक्तिधाम में बीते साल से अब तक ऐसे कई मामले सामने आए, जिसमें बच्चों ने अपने माता-पिता के शव के पास जाकर अंतिम संस्कार करने की बजाय पीपीई किट पहनकर सोशल डिस्टेंस के नाम पर खुद का बचाव किया, लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि उनके माता-पिता मृत्यु के दौरान भी अपनी ज्वेलरी पहने हुए थे, तो बच्चे श्मशान और कब्रिस्तान में जाकर संक्रमण की परवाह न करते हुए खुद ही ज्वेलरी उतारने पहुंच गए.
शव को उठाने के लिए बच्चों ने बुलाए मजदूर
बीते साल ऐसे भी कई मामले सामने आए, जिसमें अस्पताल से मुक्तिधाम पहुंची एंबुलेंस से भी मृतक का कोई रिश्तेदार शव को उतारने के लिए तैयार नहीं हुआ. लिहाजा कई बार एंबुलेंस कर्मी मुक्तिधाम में शवों को वहीं छोड़कर रवाना हो गए. इस दौरान कई ऐसे मामले भी सामने आए, जब मृतक के परिजनों ने शव को उठाने से लेकर अंतिम संस्कार की रस्मों को पूरी करने के लिए किराए से बुलाए गए मजदूरों का सहारा लिया.
रामबाग मुक्तिधाम के कर्मचारी बताते हैं कि बीते साल से अब तक ऐसे दर्जनों मामले सामने आए, जिसमें मृतकों को दाग ही नहीं दिया जा सका. इसके अलावा कई मामले ऐसे हैं, जिसमें शव के अंतिम संस्कार के लिए कोई भी अस्थि संचय के लिए नहीं पहुंचा और न ही किसी ने मृतकों की अस्थियों को विसर्जित करना उचित समझा. ऐसी स्थिति में मुक्तिधाम के कर्मचारियों ने मानवीय पहल करते हुए ऐसे तमाम मृतकों की अस्थियों को नदियों में विसर्जित कर विधि विधान से पूजा की.
बच्चों ने अंतिम संस्कार से किया किनारा
बेसहारा बुजुर्गों का अंतिम संस्कार करने वाले स्वयंसेवी संगठनों के पास भी अब ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें बच्चे ही अपने माता-पिता को कोरोना संक्रमित होने के कारण सहारा देना तो दूर मृत्यु पर उनका अंतिम संस्कार भी नहीं करना चाहते. एक ऐसे ही परिवार के बच्चों ने अपनी मृत मां को इसलिए लावारिस मानकर स्वयंसेवी संगठनों को सौंपने का फैसला कर लिया कि वह कोरोना संक्रमित हैं. हालांकि बाद में नेगेटिव रिपोर्ट आने पर कुछ बच्चों ने ही मां का अंतिम संस्कार किया, लेकिन इस स्थिति को लेकर स्वयंसेवी संगठन भी मानते हैं कि कोरोना काल में लोगों की मानवीय संवेदनाएं शून्य हो चुकी हैं.